पगडण्डी विकास - 1

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हाय दिल्ली की सर्दी कह कर ठंड से कुड़कुड़ाने वाले लोग अगर एक बार महोबा के रेलवे स्टेशन पर रात गुजार लें, तो निश्चित ही कहेंगे ‘हाय महोबा की सर्दी। इससे तो अच्छी है अपनी दिल्ली की सर्दी।’ महोबा स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक की बेंच पर बैठा मैं ठंड से कांप रहा था। दिल्ली में पांच साल रह कर मैं वहां की पांच सर्दियां झेल चुका था। किंतु इतनी ठंड मैंने वहां कभी महसूस नहीं की थी। ना ही उतना कोहरा उन पांच सालों में मैंने वहां कभी देखा था जितना कि इकत्तीस दिसंबर की रात को उस वक्त वहां देख रहा था।