पगडण्डी विकास - 3

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मैं वापस आकर बैठा ही था कि एनाउंसर की आवाज़ फिर गूंजी, यात्री गण कृपया ध्यान दें। मेरे कान खड़े हो गए। ध्यान से सुनने लगा कि कितनी देर में आ रही है ट्रेन। मगर जो एनाउंस हुआ उससे मैंने खीझ कर सिर पीट लिया। ट्रेन लेट नहीं हुई थी। कैंसिल कर दी गई थी। यह सुन कर प्लेटफॉर्म पर जो गिने-चुने यात्री बैठे थे ठंड से सिकुड़े, उन सब में एक हलचल सी उत्पन्न हो गई। धीरज उठकर फिर वहीं पिच्च से थूक कर आया। और मुझसे पूछा-