हिम स्पर्श - 65

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65 मैं बार बार क्यूँ अकेला हो जाता हूँ? जब भी कोई मेरा साथी बन जाएगा ऐसी अपेक्षा जागती है तब ही वह मुझसे बिछड़ जाता है। यह कैसा खेल है मेरे साथ, ए जिंदगी तेरा? किन्तु यह अकेलापन तो तुमने ही पसंद किया था। तुम ही तो चले आए थे इस मरुभूमि में। तो अब क्या हो गया? मेरे इस अकेलेपन को क्यूँ भंग कर देता है मेरा भाग्य? क्यूँ बार बार कोई आशा जगा कर चला जाता है? ना तो तुम अकेले हो और ना ही कोई तुम्हें छोड़ कर गया है। तो यह क्या है?