अदृश्य हमसफ़र - 4

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कन्यादान की रस्म आरम्भ हो चुकी थी। ममता अमु के साथ बातों में अन्तस् की पीड़ा को भूल चुकी थी। अमु के साथ घण्टों तोतली भाषा में बतियाना उसका सबसे पसंदीदा शगल था। ममता की बातों का सिलसिला टूटा जब बड़ी भाभी उसे अनु की बिदाई की रस्म के लिए बुलाने आयी। बड़ी भाभी- जिज्जी, चलिए न। अनु की विदाई का वक़्त हो चला है। उसकी नजरें आपको खोज रही हैं।