गीता

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श्रीमद्भगवतगीता के हर अध्याय को यदि गम्भीरता से पढ़ें तो पायेंगे कि यह जीवात्मा और परमात्मा के बीच संवाद है । अर्जुन मर्त्यलोक में रह रही समस्त जीवात्माओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और भगवान श्री कृष्ण परमात्मा का साक्षात रूप हैं । जीवात्मा की हर भटकन का समाधान कृष्ण दे रहे हैं । दैहिक आवरण में बद्ध आत्मा भी उसी तरह स्वतंत्र है जैसे श्री कृष्ण ,किन्तु कर्म बंधन में रहकर उसे अनिवार्यतः कुछ कर्मो का निमित्त बनना पड़ता है । इस यात्रा में विवध घटनाओं का सामना करते हुए जब वह प्रबल जिज्ञासु हो जाता है