अदृश्य हमसफ़र - 30 - अंतिम भाग

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रास्ते भर भैया और ममता चुपचाप रहे। दोनो को कुछ सूझ ही नही रहा था कि बात करें भी तो क्या। बीच बीच में एक दूसरे की तरफ देखकर बस हल्के से मुस्कुरा देते थे। जैसे ही एयरपोर्ट पहुँचे बड़े भैया की नसीहतें शुरू हो गयी। देख ममता, अपना ध्यान रखना। मुझे उम्मीद ही नही यकीन है तुम सम्भाल ही लोगी। अगर फिर भी बात न बने तो मुझे फोन कर देना। दो दिन के लिए मैं मुम्बई चला आऊंगा। मोटी रकम है बच्चों को इस मामले से दूर ही रखना।