मनचाहा - 36

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रात को हम दिल्ली पहुंचे। अवि और निशु को लेने ड्राईवर आया था कार लेकर। रवि भाई अपनी कार हॉस्पिटल में ही छोड़ गए थे तो रवि भाई और मै साथ में ही घर चले गए। घर पर सब इंतजार करते ही बैठे थे। जैसे ही घर पहुंची चंटू-बंटू दोनों आकर लिपट गए। सब के साथ कुछ देर बैठकर सोने चली गई। सुबह उठी तब भी थकान नहीं गई थी। पर कब तक थककर बैठी रहूंगी। वहा साकेत भी अकेला पड़ जाएगा। चलो जाती ही हुं। सुबह नहा धोकर तैयार होकर नीचे जा रही थी अपना वॉट्सऐप चैक करते हुए।