आसपास से गुजरते हुए - 22

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पंद्रह मिनट बाद मैं तैयार होकर बाहर निकली। आदित्य गाड़ी स्टार्ट कर चुके थे। मैं उनकी बगल की सीट पर जाकर ऐसे बैठ गई मानों बरसों से मैं यही करती आई हूं। आदित्य ने बात शुरू की, ‘तुम्हारे भैया, क्या नाम है उनका?’ ‘सुरेश...’ ‘हूं! लगता है उनको मेरी शक्ल देखते ही एंटीपथि हो गई!’ ‘क्यों?’ मैं मुस्कुराने लगी। ‘देखा नहीं, एक शब्द नहीं बोले...क्या तुम्हारे घर में सब ऐसे ही हैं?’ ‘कैसे?’