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Aaspas se gujarate hue by Jayanti Ranganathan | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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आसपास से गुजरते हुए by Jayanti Ranganathan in Hindi
Novels

आसपास से गुजरते हुए - Novels

by Jayanti Ranganathan Matrubharti Verified in Hindi Moral Stories

(190)
  • 65.8k

  • 166k

  • 69

1999, 27 साल की अनु सॉफ्टवेअर प्रोफेशनल, राजधानी में एक ऊंचे पद पर काम करती है। अकेली अपने शर्तों पर रहती है। पिता गोपालन केरल से हैं और मां निशिगंधा पुणे से। अनु की जिंदगी में माता-पिता के बीच ...Read Moreदूरी, कल्चर का अलग होना बहुत प्रभाव डालता है। अपने प्रेमी से छले जाने के बाद वह विभिन्न मोर्चों से गुजरते हुए अपने लिए एक जगह बनाने की कोशिश कर रही है। उसकी जिंदगी में उस समय उथल-पुथल मच जाता है जब उसे पता चलता है कि उसके अप्पा दूसरी शादी करने जा रहे हैं और उसी समय में अपने कलीग के साथ एक रात गुजारने के एवज में वह प्रेगनेंट हो गई है। वह अपने भाई, भाभी के साल दिल्ली से केरल जा रही है अपने अप्पा से मिलने और उनकी शादी रोकने के लिए। लेकिन उसका प्रेग्नेंट होना सब पर भारी पड़ जाता है। उसे आखिरकार अनकंडीशनल सपोर्ट मिलता है अपनी आई से। पुणे में आई जिस नाटक मंडली में काम कर रही है उसके ऑनल आदित्य से मिलने के बाद उसे रिश्तों की एक नई परिभाषा का भी पता चलता है। अनु यंग है, बेसब्र है, कन्फ्यूज्ड है, जजमेंटल है और हर चीज अपने हिसाब से होते देखना चाहती है। हमारे आसपास रहने वाली एक आम, खुले सोच की करियरवूमन है अनु। उसकी जिंदगी के इस सफर में उतार-चढ़ाव के साथ, इमोशन से भरपूर वैल्यूज भी हैं और किरदार भी।

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आसपास से गुजरते हुए - Novels

आसपास से गुजरते हुए - 1
मुझे पता चल गया था कि मैं प्रेग्नेंट हूं। मैं शारीरिक रूप से पूरी तरह सामान्य थी। ना शरीर में कोई हलचल हो रही थी, ना मन में। मैं अपनी लम्बी कोचीन यात्रा के लिए सामान बांध रही थी। ...Read Moreदिनों बाद मैंने अटारी में से अपना सबसे बड़ा सूटकेस निकाला। झाड़-झूड़कर बैठी, तो चाय पीने की तलब हो आई। मैंने लिस्ट बना रखी है कि मुझे क्या-क्या लेकर जाना है। वरना पता नहीं कितनी चीजें मिस कर दूंगी। चाय का पानी गैस पर खौलाने रखा और मैं लिस्ट पर नजर दौड़ाने लगी। दूसरे ही नम्बर पर था सेनेटरी...।
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आसपास से गुजरते हुए - 2
रात के बारह बजने को थे। मैंने फुर्ती से अलमारी से वोद्का की बोतल निकाली और दोनों के लिए एक-एक पैग बना लिया, ‘नए साल का पहला जाम, मेरी तरफ से!’ शेखर ने मुझे अजीब निगाहों से देखा, ‘अनु, मुझे ...Read Moreजाना है। चलो, एग पैग सही!’ मैंने घूंट भरा। सामने शेखर था। मुझे अच्छी तरह पता था वह शेखर ही है, अमरीश नहीं। मेरे होंठों के कोरों पर हल्की-सी मुस्कान आकर थम-सी गई। शेखर ने एक झटके में गिलास खत्म कर दिया और मेरा हाथ थामकर कहा, ‘विश यू ए वेरी हैप्पी न्यू इयर!’
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आसपास से गुजरते हुए - 3
मेरी आई निशिगन्धा नाइक महाराष्ट्र की सारस्वत ब्राह्मण थीं। पुणे में उने बाबा थियेटर कम्पनी चलाते थे। आई भी थियेटर में काम करती थीं। उनका पूरा परिवार नाटक में मगन रहता था। मेरे अप्पा गोपालन स्वामी केरल के पालक्काड ...Read Moreके नायर सम्प्रदाय के थे। वे छोटी उम्र में घर से भागकर पहले मुम्बई आए, फिर वहां से पुणे आ गए। उस समय शायद वे दसवीं भी पास नहीं थे। टाइपिंग-शार्टहैंड सीखने के बाद वे नौकरी पर लगे और प्राइवेट बारहवीं, बी.ए. और फिर एम.ए. किया।
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आसपास से गुजरते हुए - 4
हॉस्टल आने के बाद भी मैं कई दिनों तक पौधों को याद करती रही। अब आई को लम्बे-लम्बे खत लिखना मेरा शगल बन गया था। विद्या दीदी और सुरेश भैया को समझ नहीं आता था कि मेरे और आई ...Read Moreबीच क्या चल रहा था। सुरेश भैया को मैं आई के बारे में बताती, तो उन्हें विश्वास ही नहीं होता। हालांकि मेरी वजह से उनका भी आई के प्रति रवैया बदल गया था। आई मुझसे ही कहती थीं कि सुरेश भैया को छुट्टियों में घर आने को कहूं। सुरेश भैया मन मारकर आने लगे। अब सुरेश भैया पूरे नौजवान लगने लगे थे। हल्की मूंछें, पूरी बांह की टी शर्ट, फुट पैंट, आंखों पर चश्मा। अप्पा से वे बिल्कुल नहीं बोलते थे। उनके सामने अप्पा ने एक बार आई पर हाथ उठाने की कोशिश की, तो सुरेश भैया ने लपककर उनका हाथ पकड़ लिया, उन्होंने सिर्फ इतना कहा, ‘नहीं।’ अप्पा ढीले पड़ गए।
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आसपास से गुजरते हुए - 5
मैंने पहली बार जब अमरीश को देखा, मुझे बड़ा अजीब लगा। तन्दुरुस्त शरीर, चिकना चेहरा, फिल्मी हीरो जैसे हाव-भाव! उसके आंखें छोटी थीं। वह जब हंसता तो आंखें पूरी तरह बंद हो जातीं। वह बहुत बोलता था। अच्छी कसी ...Read Moreआवाज। उसके होंठ भरे-भरे थे। गोरा रंग। धीरे-धीरे मुझे वह आकर्षित करने लगा। मैं कॉलेज के बाद रुककर कम्प्यूटर सीखती थी। अमरीश भी कम्प्यूटर सीख रहा था। वह क्लास की सभी लड़कियों से फ्लर्ट करता। मैं चुप रहती थी। कुछ दिनों बाद वह मुझे लेकर ताने कसने लगा। वह मुझसे तीन साल सीनियर था। मैं बी.एस.सी. के दूसरे वर्ष में थी, वह एम.ए. कर रहा था।
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आसपास से गुजरते हुए - 6
यह अच्छा हुआ कि पुणे लौटने के बाद ना अप्पा ने मुझसे सफाई मांगी, ना आई ने। इन दो-तीन सालों में आई के सिर के लगभग सारे बाल सफेद हो गए थे। अप्पा का वजन बढ़ गया था। सुबह-शाम ...Read Moreसैर पर जाने लगे थे। अप्पा के ममेरे भाई का बेटा अप्पू हमारे यहां रहकर पढ़ रहा था। अप्पा ने उसे रहने के लिए सुरेश भैया का कमरा दे दिया था। मैं कंप्यूटर क्लास से आने के बाद उसके कमरे में चली जाती। इन दिनों आई से भी बात करने का मन नहीं करता था। रसोई में खाना बनाने के लिए अप्पा ने केरल से शान्तम्मा को बुला लिया था।
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आसपास से गुजरते हुए - 7
साल-भर बाद मैंने उस नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। बाटलीवाला मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे, पर मैं अड़ गई कि मैं आगे पढ़ना चाहती हूं। सुरेश भैया ने मुझे इस बात पर लम्बी झाड़ लगाई। हम दोनों उनकी कार ...Read Moreचर्चगेट से अंधेरी आ रहे थे। हाल ही में भैया ने सेकेण्ड हैंड मारुति गाड़ी खरीदी थी। रास्ते में मैंने उन्हें बताया कि मैंने नौकरी छोड़ दी है। सुरेश भैया के माथे पर बल पड़ गए। ‘अनु, तू बहुत जल्दबाज होती जा रही है। ऐसे तो तू कभी किसी नौकरी में जम नहीं पाएगी।’ ‘ऐसा नहीं है। मैं जिन्दगी-भर सिर्फ एक कंप्यूटर ऑपरेटर बनकर नहीं रहना चाहती।’ मैंने तर्क दिया।
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आसपास से गुजरते हुए - 8
चार-पांच महीने बाद अचानक एक दिन अप्पा मुझसे मिलने आ गए। घर पर मैं अकेली थी। शर्ली स्कूल में और सुरेश भैया दफ्तर में थे। अप्पा घर के अंदर नहीं आए, दरवाजे पर खड़े होकर बोले, ‘मोले, आइ नीड ...Read Moreटॉक टु यू।’ ‘अप्पा, अंदर आइए, घर पर कोई नहीं है।’ मैंने इसरार किया। ‘नो, मैं इस घर के अंदर कदम नहीं रखूंगा। मुझे तुमसे बात करनी है। सामने उड़िपी रेस्तरां है, मैं वहीं मिलूंगा! अप्पा लम्बे डग भरते हुए चले गए।’
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आसपास से गुजरते हुए - 9
बस चल पड़ी। हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई। खोपोली के पहले मेरी आंख लग गई। बस झटके से रुकी। मेरी आंख खुल गई। घाट आ चुका था। खण्डाला के घाट पर सफर करना मुझे कभी पसंद ...Read Moreथा। गोल-गोल घूमती बस में मुझे चक्कर आ जाता था। जी मिचलाने लगता था। मैं हैंडबैग में चूरन की गोली ढूंढने लगी। ‘अभी तक तुम्हें यह दिक्कत है?’ अमरीश ने पूछा। मैंने ‘हां’ में सिर हिलाया।
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आसपास से गुजरते हुए - 10
घर पहुंची, तो वहां कोहराम मचा था। सुरेश भैया सुबह की बस पकड़कर पुणे आ पहुंचे थे। मुझे घर में ना पाकर सब लोग घबरा गए थे। मुझे देखते ही आई की जान में जान आई, ‘काय झाला अनु? ...Read Moreगेली होतीस तू? अग, सांग ना?’ सुरेश भैया ने मेरी तरफ तीखी निगाहों से देखा, ‘पता है, मेरी तो जान ही निकल गई थी। कहीं रुक गई थी, तो फोन करना था न।’
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आसपास से गुजरते हुए - 11
सुबह-सुबह अप्पा ने जगा दिया, ‘अनु, उठ! वॉक पर चलते हैं!’ सुबह के छह बज रहे थे। मैं ‘ना नू’ करती हुई उठी। अप्पा ने गर्म झागदार कॉफी का गिलास मुझे पकड़ा दिया। कॉफी पीकर शरीर में चुस्ती आ गई। ...Read Moreमैं जीन्स और टीशर्ट पहनकर तैयार हो गई। अप्पा मुझे नए रास्तों से ले गए। पहले जहां मुरम की सड़क हुआ करती थीं, अब कोलतार की बन गई थीं। घर के पास पहले इतने मकान नहीं थे, अब तो सामने खेल के मैदान में भी बिल्डिंग बन गई थी। पहले हमारा इलाका साफ-सुथरा हुआ करता था। अब यहां भी मुंबई जैसी गंदगी फैलने लगी थी।
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आसपास से गुजरते हुए - 12
मैं दिल्ली आने से पहले साल-भर चेन्नई में थी। मैंने जैसे ही कंप्यूटर का कोर्स पूरा किया, मुझे मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई। जब उन्होंने मेरे सामने चेन्नई जाने की पेशकश की, तो मैंने स्वीकार कर लिया। सुरेश ...Read Moreनाराज हुए कि कोई जरूरत नहीं है जाने की। चेन्नई में तुम किसी को नहीं जानती, कहां रहोगी? कैसे रहोगी? पर मैंने जिद पकड़ ली कि मैं जाऊंगी। जिन्दगी के उस मुकाम पर मैं अकेली रहना चाहती थी। आई, अप्पा, भैया-सबसे दूर, अपने आप से भी दूर।
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आसपास से गुजरते हुए - 13
इस तरह 18 जून, 1997 को मैं दिल्ली पहुंच गई। मुंबई से दिल्ली का सफर मैंने हवाई जहाज से तय किया। शाम के वक्त विमान दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा, गर्मियों की उदास शाम। मैं दिल्ली पहली बार आ रही ...Read Moreक्यों आ रही थी, मुझे भी नहीं पता था। मैं राजधानी में किसी को भी नहीं जानती थी। अजनबी महानगर, नई दिल्ली! एयरपोर्ट पर कंपनी की गाड़ी मुझे लेने आई थी। दिल्ली की सड़कों को पहली बार देखते समय सुखद अहसास हुआ, चौड़ी सड़कें, हरे-भरे पेड़, साफ आबोहवा। ना मुंबई जितनी भीड़, ना चेन्नई जैसी गंदगी।
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आसपास से गुजरते हुए - 14
16 फरवरी, 2000, बुधवार, रात ग्यारह बजकर चालीस मिनट! मैं और शर्ली आमने-सामने बैठे थे। वह चार घंटे पहले घर आई थी। उसे चाय-स्नेक्स(नाथू से समोसा ले आई थी) खिलाने के बाद मैंने संक्षेप में उसे बताया था कि मेरे ...Read Moreक्या हुआ है। शर्ली को स्टेशन लेने जाने से पहले मैं सफदरजंग एन्कलेव में लेडी डॉक्टर आशा बिश्नोई के पास गई थी। मेरा शक सही निकला था!
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आसपास से गुजरते हुए - 15
लगभग एक बजे शर्ली ने मुझे झकझोरकर उठाया, ‘खाना नहीं खाना?’ मैंने ऊंघते हुए कहा, ‘ना! तुम खा लो, मुझे भूख नहीं है।’ ट्रेन के हिचकोले क्लोरोफार्म का काम कर रहे थे या पिछले दिनों की थकान कि आंख खुल ही ...Read Moreरही थी। तीनेक बजे मैं उठी। बाथरूम जाकर चेहरा धो आई। शर्ली पहले की अपेक्षा सामान्य लग रही थी। उसने मुझे देखकर शांत स्वर में पूछा, ‘चाय पिओगी?’
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आसपास से गुजरते हुए - 16
मैं पहली बार अप्पा की पितृभूमि में आ रही थी। हरे-भरे नारियल के वृक्ष, सड़क किनारे कतार से लगे रबर के वृक्ष, नालियों जितनी चौड़ी समुद्र की शाखाएं, उन पर चलती पाल वाली नावें। मैं मंत्रमुग्ध-सी प्रकृति का यह ...Read Moreरूप देखती रही। राह चलते केले के बड़े-बड़े गुच्छे उठाए स्त्री-पुरुष, सफेद धोती, कंधे पर अंगोछा, बड़ी-बड़ी मूंछें, पका आबनूसी रंग। औरतें धोती और ब्लाउज पहने बड़े आत्मविश्वास के साथ अपना काम कर रही थीं। अपने यौवन से बेपरवाह। एरणाकुलम (कोचीन) स्टेशन से दस किलोमीटर की दूरी पर अप्पा के भैया का घर था।
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आसपास से गुजरते हुए - 17
मैं भुनभुनाती हुई कमरे में आ गई। यहां रहने का अब कोई मतलब नहीं। भैया को जो क्रांति करनी हो करें, मुझे नहीं करनी। कमरे में आकर मैं सामान बांधने लगी, मूंज पर से सुबह सुखाए कपड़े उतारे, ड्रेसिंग ...Read Moreपर पड़ी अपनी चीजें समेटने लगी। विद्या दीदी कमरे में आई, ‘क्या कर रही है अनु?’ मैंने उसकी तरफ देखे बिना कहा, ‘मैं जा रही हूं!’ ‘कहां?’ मैंने रुककर कहा, ‘पुणे!’
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आसपास से गुजरते हुए - 18
फ्लाइट डेढ़ घंटे लेट थी। मैं तीन बजे मुंबई एयरपोर्ट पहुंची और रात को दस बजे पुणे। वापसी का सफर ठीक ही था। फ्लाइट में मैंने खाना खा लिया था। दादर बस स्टॉप पर कुछ फल खरीद लिए। इस ...Read Moreना जी मिचलाया, ना किसी ने कोई सवाल किया। अब तक तो विद्या दीदी ने सबको यह बात बता दी होगी! अप्पा, अमम्मा, कोचम्मा, कोचमच्ची! पता नहीं क्या प्रतिक्रिया हुई होगी सबकी? घर पहुंची, तो आई सो चुकी थीं। मेरे बार-बार खटखटाने पर उनींदी आंखों से उन्होंने दरवाजा खोला। मुझे देखते ही उनकी बांछें खिल गईं, ‘अनु, तू? सरप्राइज देला ग मला।’
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आसपास से गुजरते हुए - 19
अगले दिन मैं शो देखने नहीं गई। दिन-भर टीवी देखती रही। शाम को कुछ दूर पैदल चली, अकेले में निराशा फिर घर करने लगी। पता नहीं, अब दिल्ली जाकर अकेली कैसे रह पाऊंगी? वही ऑफिस, वही काम, वही शेखर? ...Read Moreसब कुछ वैसा ही होगा? घर वापस आई, रात के खाने की तैयारी करने लगी। फोन की घंटी बजी। सुरेश भैया का था। मेरे लिए परेशान थे। मैंने धीरे-से कहा, ‘मैं जानती हूं भैया, क्या करना है! आप मेरी फिक्र ना करें।’ भैया रुककर बोले, ‘तूने पूछा नहीं, अप्पा की शादी कैसी हुई?’
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आसपास से गुजरते हुए - 20
आई को इस उम्र में यह जिम्मेदारी सौंपना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। इससे तो अच्छा होता, मैं दिल्ली चली जाती। वहां मैं अकेली संभाल लेती, पर दिल्ली लौटने के नाम से मुझे दहशत होने लगी। अगले दिन ...Read Moreआई ने चाय का कप मेरे हाथ में थमाते हुए कहा, ‘मैंने पता किया है, आज ग्यारह बजे अभ्यंकर आएगा, उसी की पहचान की कोई लेडी डॉक्टर है...’ ‘तुमने आदित्य को बता दिया।’ मैं बुरी तरह से चौंक गई।
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आसपास से गुजरते हुए - 21
उफ, यह क्या हो गया है मेरे साथ। शेखर ने कहा था, मर्दों पर विश्वास करना सीखो। मैं कब कर पाऊंगी उन पर विश्वास। क्या होता जा रहा है मुझे! मेरे दिमाग में हथौड़ियां-सी बजने लगीं। सजा मैं किसी ...Read Moreको नहीं, अपने आपको दे रही हूं। सच कह रहे हैं आदित्य, मेरे अंदर जबर्दस्त कुंठा भरी हुई है। मैं लगभग आधे घंटे यूं ही स्तब्ध-सी बैठी रही। बस, मेरी सांसें आ-जा रही थीं, दिमाग बिल्कुल काम नहीं कर रहा था।
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आसपास से गुजरते हुए - 22
पंद्रह मिनट बाद मैं तैयार होकर बाहर निकली। आदित्य गाड़ी स्टार्ट कर चुके थे। मैं उनकी बगल की सीट पर जाकर ऐसे बैठ गई मानों बरसों से मैं यही करती आई हूं। आदित्य ने बात शुरू की, ‘तुम्हारे भैया, ...Read Moreनाम है उनका?’ ‘सुरेश...’ ‘हूं! लगता है उनको मेरी शक्ल देखते ही एंटीपथि हो गई!’ ‘क्यों?’ मैं मुस्कुराने लगी। ‘देखा नहीं, एक शब्द नहीं बोले...क्या तुम्हारे घर में सब ऐसे ही हैं?’ ‘कैसे?’
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आसपास से गुजरते हुए - 23
घर में सबको पता चल गया था कि मेरा एबॉर्शन नहीं हो सकता। सबकी अलग-अलग प्रतिक्रिया हुई। अप्पा खूब गरजे-बरसे कि मैं उनके खानदान का नाम डुबो रही हूं। आई मेरे बचाव के लिए आगे आई, तो अप्पा उन ...Read Moreनाराज हो गए। लेकिन इस बार आई के तेवर अलग थे, उन्होंने साफ कह दिया कि चाहे जो हो, वे मेरा साथ देंगी!
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आसपास से गुजरते हुए - 24
मैं भारी मन से घर लौटी। आदित्य आए हुए थे। मुझे देखते ही पूछा, ‘तुम कब से शुरू कर रही हो मेरे कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में काम करना?’ मैं थकी-सी कुर्सी पर बैठ गई। ‘हूं, क्या हुआ अनु?’ आदित्य उठकर मेरे पास ...Read Moreगए। ‘मैं दिल्ली जाना चाहती हूं, ऑफिस में काफी काम पड़ा है।’ आई पानी का गिलास लेकर कमरे में आ रही थीं, वे ठिठककर रुक गईं, ‘ये क्या? अता काय झाला?’ ‘तुम दिल्ली जाना चाहती हो?’ आदित्य भी चौंके।
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आसपास से गुजरते हुए - 25
सब कुछ आनन-फानन हो गया। 31 मार्च को रात की फ्लाइट से मैं दिल्ली आ गई। जब दिल्ली एयरपोर्ट पर प्लेन ने लैंड किया, रात के दस बज रहे थे। मैं टैक्सी करके घर आई। मकान मालिक मुझे देखकर ...Read Moreगए, ‘अरे अनु तुम! दो दिन पहले तुम्हारे ऑफिस से किसी का फोन आया था कि तुम महीना-भर नहीं आओगी...!’ ‘जी...मैं आ गई।’
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आसपास से गुजरते हुए - 26
तीन-चार महीने पहले तक लगता था, जिंदगी का सफर तन्हा ही काटना है, किसी की उस तरह कमी महसूस नहीं हुई। अकेले जीना सीख लिया, अब...लगता है आस-पास हर वक्त किसी को होना चाहिए, ताकि मेरे होने का अहसास ...Read Moreरहे। इतवार की सुबह जल्दी आंख खुली। दो ब्रेड टोस्ट में खूब मक्खन लगाकर खाया। दसेक बजे तैयार होकर मैंने गाड़ी निकाली। पेट्रोल था, लेकिन इंजन से ‘घर्र’ की आवाज आ रही थी, साकेत में द टॉप गैराज में मैं हमेशा गाड़ी ठीक कराने ले जाती थी। ग्यारह बजे वहां पहुंची, मेरा हमेशा का मैकेनिक जॉन मिल गया। उसने बोनेट खोलकर गाड़ी का मुआयना किया और कहा, ‘घंटा-भर तो लगेगा। ऑइल-वॉइल डालना है, पानी चैक करना है...’
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आसपास से गुजरते हुए - 27
आई को गुजरे छह महीने हो गए हैं। शायद आप भी जानना चाहेंगे कि मेरा क्या हुआ? मैंने क्या किया? मेरे साथ जो हुआ, इस बात का खुद मुझे विश्वास नहीं हो रहा। मैं पिछले पांच महीने से कोचीन में ...Read Moreअप्पा के गांव में। आई के निधन के बाद अप्पा ने मुझे मना लिया था कि मैं उनके साथ पुणे चलूं। मैंने आनन-फानन अपना सामान पैक किया था। अगले दिन मैं ऑफिस गई थी रेजिगनेशन देने के लिए। श्रीधर से काफी बहस हुई। उसका कहना था कि तुम चाहे तो कुछ दिन और छुट्टी ले लो, पर जॉब मत छोड़ो। मैंने मन बना लिया था। यहां किसी महीने धागे के सहारे अपने आपको जोड़े रखने का कोई मतलब नहीं है।
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आसपास से गुजरते हुए - 28 - Last part
मुझे लगा था कि अप्पा अब मेरी शादी की बात नहीं उठाएंगे। पर दो दिन बाद बहरीन से त्रिवेन्द्रम आया, नगेन्द्रन अपनी बड़ी बहन के साथ मुझे देखने चला अया। बड़ी बहन मेरे रूप-रंग को लेकर काफी प्रसन्न थीं। ...Read Moreबार उन्होंने कहा कि मलयाली परिवारों में ये रंग कम देखने को मिलता है। वे दोनों भाई-बहन खासे काले थे। अप्पा खुद लड़के में खास रुचि नहीं ले रहे थे। उनके जाने के बाद अमम्मा ने आक्रोश से कहा, ‘गोपालन, तुम लड़के में इतना मीन-मेख निकालोगे, तो कैसे चलेगा? क्या बुराई है लड़के में? रंग काला है तो क्या हुआ? वो गोरे परिवार को तो तुम्हारी लड़की नहीं पसंद आई ना...’
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