आखिरी गंतव्य

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शान्त चित्त और सधे हुये कदमों से वो रेलवे स्टेशन की तरफ़ बढ़ रही थी। अपनी उलझनों के खत्म होने की संभावना और संतोष की छाया, उसके चेहरे की गोरी रंगत को और निखार रही थी उसकी आँखों में एक चमक और चेहरे पर हल्की झुर्रियों की लकीरें ,उसके अनुभव और धैर्य की परिभाषा पढ़ रही थीं । चौड़े गोल्डेन बार्डर की क्रीम कलर की साड़ी में पचपन वर्षीय समिधा सूरज की किरणों सी प्रतीत होती थी । रेलवे स्टेशन पर भीड़ भाड़ में वो अलग ही दिख रही थी ।एक खाली बैंच पर बैठकर वो अपनी ट्रेन का इन्तजार करने