मेगा 325 - 8

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मेगा 325 हरीश कुमार 'अमित' (8) अगले दो दिनों में बड़े दादा जी, शशांक और मेगा 325 ने दिल्ली से आगरा की ख़ूब सैर की. होटल के एक बड़े-से कमरे में वे तीनों दिल्ली से सवार हुए. यह कमरा हवा में उड़ता रहता था. इसकी दीवारें शीशे की थीं, जिनके आगे परदे लगे हुए थे. कमरे में बैठने, सोने, खाने वग़ैरह के सब इन्तज़ाम थे. कमरे में टी.वी., कम्प्यूटर वग़ैरह भी थे. कमरा लगातार उड़ता रहता था. कमरे में ठहरने वाले लोग अपनी मर्ज़ी से बैठकर, लेटकर या खड़े होकर बाहर के दृश्यों का आनन्द ले सकते थे. रास्ते में