एबॉन्डेण्ड - 8

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एबॉन्डेण्ड - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 8 युवती फिर बहुत भावुक हो रही है। युवक गम्भीर होकर कह रहा है। ‘तुम बार-बार केवल अपने को ही क्यों कहती हो। अब हम दोनों की ज़िंदगी एक-दूसरे के सहारे ही चलेगी। अब अकेले कोई भी नहीं रहेगा।’ उसकी बात सुनते ही युवती उससे लिपटकर फिर प्यार उड़ेलने लगी तो वह उसे संभालते हुए कह रहा है। ‘ओफ्फ हो! सारा प्यार यहीं कर डालोगी क्या? मना करती हो फिर करने लगती हो। दिल्ली के लिए कुछ बचाकर नहीं रखोगी?’ ‘सब बचाकर रखे हुए हूं। तुम्हारे लिए मुझमें कितना प्यार भरा है, यह तुम अभी