एबॉन्डेण्ड - 9

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एबॉन्डेण्ड - प्रदीप श्रीवास्तव भाग 9 बड़ा अजीब दृश्य है। दोनों उकंड़़ू बैठे-बैठे आगे बढ़ रहे हैं। असल में अंधेरा बोगी के कुछ हिस्सों में थोड़ा कम है। बाहर दूर-दूर तक रेलवे ने जो लाइट लगा रखी हैं उनका थोड़ा असर दूर खड़ी इस बोगी के दरवाजे, टूटी-फूटी खिड़कियों से अन्दर तक होता है। दोनों बाथरूम की ओर आगे बढ़ रहे हैं। बोलते भी जा रहे हैं, ‘इस तरह वहां तक पहुंचने में तो पता नहीं कितना टाइम लग जाएगा।’ ‘कुछ टाइम नहीं लगेगा, लो पहुंच गए।’ ‘कहां पहुंच गए, बाथरूम किधर है। मुझे कुछ दिख नहीं रहा। मोबाइल ऑन