लौट आओ तुम... ! - 2

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लौट आओ तुम... ! ज़किया ज़ुबैरी (2) आपा भी बीबी के साथ ज़मीन ही पर सिकुड़ कर बैठ गईं। साबजी के कमरे का गहरा लाल दहकता हुआ दुल्हन के रंग का मोटा गदीला क़ालीन ! आपा को आज महसूस हो रहा था कि जैसे उस क़ालीन ने उनको कितनी इज़्ज़त बख्श दी है कि वे आज बीबी के साथ वहां बैठ सकी हैं। “यह क़ालीन कब बदला गया?” आपा आज बहुत दिनों बाद अपने शौहर के कमरे में दाख़िल हुई थीं। “आप जब बाहर-गांव गई हुई थीं।” “यह रंग किसने चुना? ” “मैंने...! ” आपा चाहते हुए भी आगे कुछ