स्वप्न जैसे पाँव

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स्वप्न जैसे पाँव हृषीकेश सुलभ यह एक हरा-भरा क़स्बाई शहर था, जिसे कोशी नदी की उपधाराओं ने चारों तरफ़ से घेर रखा था। एक तो, जिसका नाम सौरा था, शहर को दो भागों में बाँटती हुई ठीक बीचोंबीच बहती थी। महल्ले दूर-दूर बसे थे। बीच-बीच में धान के हरे-भरे खेत थे और बेतरतीब उगे जंगली पेड़ों और झाड़ियों का सघन विस्तार था। सड़कों के किनारे भी पेड़ थे - कदम्ब और सेमल के ऊँचे-ऊँचे छायादार पेड़। कदम्ब जब फ़ूलते, गोल-गोल लट्टुओं जैसे फ़ूलों से सजी-सँवरी हरियाली की छटा और खिल उठती। फि़र कदम्ब ललछौंहा पीलापन लिये पककर तैयार