बहीखाता - 46

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 46 एक लेखक की मौत चंदन साहब चले गए। कुछ दिन उनके धुंधले-से अक्स दिखते रहे। कभी फोन बजता तो लगता कि शायद उन्होंने ही गालियाँ देने के लिए किया होगा। कभी बाहर जाती तो किसी की ओर देखकर लगता कि शायद वही हों। कुछ दिन मुझे अजीब-सी उदासी और एकाकीपन भी महसूस होता रहा। यद्यपि मैं पहले भी अकेली ही थी, पर कुछ गुम हो गया-सा महसूस होने लगा। फिर शीघ्र ही यह सब बिसरने लगा। ज़िन्दगी आम-सी हो गई। यह हादसा जैसे हुआ ही न हो। चंदन साहब के