कुफ़्र

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कुफ़्र (कहानी पंकज सुबीर) ज़फ़र आज भी घर नहीं लौटा है। ऐसा अक्सर ही होता है। दिन भर का थका हारा ज़फ़र देर रात घर लौटता है। घर लौट कर एक ही बात कहता है आज खाना नहीं खाऊँगा दोस्त नहीं माने तो उनके साथ खा लिया था। मुमताज भी कुछ नहीं बोलती। मालूम है कि उसका शौहर उसे शर्मिंदगी से बचाने के लिए ऐसा कह रहा है। वरना क्या वो इतना भी नहीं जानती कि ग़रीबी और दोस्त ये दोनों चीज़ें एक साथ कभी नहीं रह सकतीं। भूख का पेड़ जब पेट में उगा हो तो चेहरा ख़ुद ही