भदूकड़ा - 40

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सुमित्रा जी ने कैलेन्डर की ओर देखा. आज शुक्रवार है. अगर आज की ड्यूटी कर लें, तो शनिवार की छुट्टी ले के दो दिन के लिये जा सकती हैं. अब तक तिवारी जी भी उठ गये थे, और चुपचाप सारी कहानी सुन रहे थे. किसी भी काम से गांव जाने की बात पर वे हमेशा सहमत रहते थे. पता नहीं क्यों, उनके मन में अपना गां, अपना घर छोड़ के शहर आ जाने पर एक अपराधबोध सा था जिसे वे अक्सर गांव जा के कम करने की कोशिश करते थे शायद. सुमित्रा जी उसी दिन छुट्टी की अर्ज़ी लगा के