OR

The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.

Matrubharti Loading...

Your daily story limit is finished please upgrade your plan
Yes
Matrubharti
  • English
    • English
    • हिंदी
    • ગુજરાતી
    • मराठी
    • தமிழ்
    • తెలుగు
    • বাংলা
    • മലയാളം
    • ಕನ್ನಡ
    • اُردُو
  • About Us
  • Books
      • Best Novels
      • New Released
      • Top Author
  • Videos
      • Motivational
      • Natak
      • Sangeet
      • Mushayra
      • Web Series
      • Short Film
  • Contest
  • Advertise
  • Subscription
  • Contact Us
Publish Free
  • Log In
Artboard

To read all the chapters,
Please Sign In

Bhadukada by vandana A dubey | Read Hindi Best Novels and Download PDF

  1. Home
  2. Novels
  3. Hindi Novels
  4. भदूकड़ा - Novels
भदूकड़ा by vandana A dubey in Hindi
Novels

भदूकड़ा - Novels

by vandana A dubey Matrubharti Verified in Hindi Fiction Stories

(967)
  • 71.9k

  • 285.9k

  • 89

जिज्जी….. हमें अपने पास बुला लो…” बस ये एक वाक्य कहते-कहते ही कुंती की आवाज़ भर्रा गयी थी. और इस भर्राई आवाज़ ने सुमित्रा जी को विचलित कर दिया. मन उद्विग्न हो गया उनका, जैसा कि हमेशा होता है. ...Read Moreपरेशान कुंती न हो रही होंगीं, उतनी सुमित्रा जी हो गयी थीं. मोबाइल पर तो बस इतना ही कह पाईं-“ का हुआ कुंती? इतनी परेशान काय हो? का हो गओ? आवै की का है, आ जाओ ई मैं पूछनै का है?”आगे और भी कुछ कहना चाहती थीं सुमित्रा जी, लेकिन दूसरी तरफ़ से फोन कट गया. सुमित्रा जी ने

Read Full Story
Download on Mobile

भदूकड़ा - Novels

भदूकड़ा - 1
जिज्जी….. हमें अपने पास बुला लो…” बस ये एक वाक्य कहते-कहते ही कुंती की आवाज़ भर्रा गयी थी. और इस भर्राई आवाज़ ने सुमित्रा जी को विचलित कर दिया. मन उद्विग्न हो गया उनका, जैसा कि हमेशा होता है. ...Read Moreपरेशान कुंती न हो रही होंगीं, उतनी सुमित्रा जी हो गयी थीं. मोबाइल पर तो बस इतना ही कह पाईं-“ का हुआ कुंती? इतनी परेशान काय हो? का हो गओ? आवै की का है, आ जाओ ई मैं पूछनै का है?”आगे और भी कुछ कहना चाहती थीं सुमित्रा जी, लेकिन दूसरी तरफ़ से फोन कट गया. सुमित्रा जी ने
  • Read Free
भदूकड़ा - 2
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे की कहानी है ये. कस्बा छोटा, लेकिन रुतबे वाला था. और उससे भी अधिक रुतबे वाले थे वहां के तहसीलदार साब - केदारनाथ पांडे. लम्बी-चौड़ी कद काठी के पांडे जी देखने में ...Read Moreकम, थानेदार ज़्यादा लगते थे. बेहद ईमानदार और शास्त्रों के ज्ञाता पांडे जी बेटों से ज़्यादा अपनी बेटियों को प्यार करते थे. उनकी शिक्षा-दीक्षा, कपड़े, मनोरंजन हर चीज़ का ख़याल था उन्हें. अंग्रेज़ों के ज़माने के तहसीलदार पांडे जी, वैसे तो काफ़ी ज़मीन-जायदाद के मालिक थे, उनके अपने पुश्तैनी गांव में उनकी अस्सी एकड़ उपजाऊ ज़मीन थी, हवेलीनुमा मकान था,
  • Read Free
भदूकड़ा - 3
छुट्टी के बाद जब दोनों लड़कियां घर पहुंचतीं, तो कुंती घर के दरवाज़े पर पहुंचते ही सुबकना शुरु कर देती, जो भीतर पहुंचते-पहुंचते रुदन में तब्दील हो जाता. आंखों से आंसू भी धारोंधार बह रहे होते. रो-रो के मां ...Read Moreबताया जाता कि ’बहन जी’ ने आज सुमित्रा की ज़रा सी ग़लती (!) पर कितनी बेरहमी से पिटाई की और इस पिटाई से कुंती को कितनी तकलीफ़ हुई. कुंती हिचक-हिचक के पूरी बात बता रही होती और सुमित्रा अवाक हो उसका मुंह देखती रह जाती! कुंती की ये हरकत सुमित्रा को दोतरफा दंड दिलाती. एक तो स्कूल में, दूसरी डांट
  • Read Free
भदूकड़ा - 4
खूबसूरत तो अम्मा भी बहुत थीं. खूब गोरी, दुबली-पतली अम्मा, लम्बी भी खूब थीं. सुमित्रा उन्हीं को तो पड़ी थी. पांच बच्चे ग़ज़ब के सुन्दर और अकेली कुंती.............. बोलने वाले भी ऐसे कि कुंती के मुंह पे ही कह ...Read More’मां-बाप इतने सुन्दर हैं, फिर जे कुंती किस पे पड़ गयी ?’ उनके बोलने में इतनी चिन्ता होती, जैसे कुंती को ब्याहने की ज़िम्मेदारी तो उन्हीं के सिर पर है. अब आप ये न कहने लगना कि लड़कियां केवल ब्याहने के लिये होती हैं क्या? अरे भाई ब्याहने का उदाहरण इसलिये दिया, कि वो समय लड़कियों को बहुत जल्दी ब्याह
  • Read Free
भदूकड़ा - 5
वो कुंती मौसी का फोन था बेटा.’ ’हूं........’ मन ही मन मुस्कुराया अज्जू. जानता था मम्मी बतायेंगी ही. वैसे वो भी जान गया था कि फोन किसका रहा होगा. ’क्या कह रही थीं? आना चाहती होंगीं, या बीमार होंगीं, ...Read Moreबहुत परेशान....’ सुमित्रा जी के बताने के पहले ही अज्जू ने फोन की रटी रटाई वजहें गिनानी शुरु कर दीं. ’कुंती मौसी और परेशान!! हम लोग जानते तो हैं मम्मी उनकी आदत. उनकी वजह से दूसरे ही परेशानी उठाते हैं. वे ही सबको परेशान करती हैं, वो खुद कब से परेशान होने लगीं? और हां, अब तुम उन्हें बुला न
  • Read Free
भदूकड़ा - 6
तब सुमित्रा जी की शादी हुए एक साल भी नहीं हुआ था. शादी तो उनकी चौदह बरस में हो गयी थी, लेकिन पांडे जी ने विदाई से साफ़ इंकार कर दिया था. बोले कि जब तक लड़की सोलह साल ...Read Moreनहीं हो जाती, तब तक हम गौना नहीं करेंगे. इस प्रकार सुमित्रा जी, बचपन की कच्ची उमर में ससुराल जाने से बच गयीं. तो सुमित्रा जी की शादी हुए अभी एक बरस ही बीता होगा. पन्द्रहवें में लगीं सुमित्रा जी ग़ज़ब लावण्या दिखाई देने लगी थीं. देह अब भरने लगी थी. सुडौल काया, कमनीय होने लगी थी. खूब गोरी बाहें
  • Read Free
भदूकड़ा - 7
सुमित्रा जी के घर का माहौल पढ़े-लिखे लोगों का था, जबकि तिवारी के परिवार में अधिकांश महिलायें बहुत कम या बिल्कुल भी नहीं पढ़ी थीं. सो सुमित्रा जी का पढ़ा-लिखा होना यहां के लिये अजूबा था. इज़्ज़त की बात ...Read Moreथी ही. सगी-चचेरी सब तरह की सासें अपनी इस नई दुल्हिन से रामायण सुनने के मंसूबे बांधने लगीं. सुमित्रा जी की ससुराल का रहन-सहन भी उतना परिष्कृत नहीं था जितना सुमित्रा जी के घर का था सुमित्रा जी की ससुराल का रहन-सहन भी उतना परिष्कृत नहीं था जितना सुमित्रा जी के घर का था. . ये वो ज़माना था, जब
  • Read Free
भदूकड़ा - 8
उनकी मां ने उन्हें “स्त्री सुबोधिनी” दी थी पढ़ने को, जिसमें लिखा था कि लड़की का स्वर्ग ससुराल ही है. मायके से डोली और ससुराल से अर्थी निकलती है. पति के चरणों की दासी बनने वाली औरतें सर्वश्रेष्ठ होती ...Read Moreआदि-आदि.... और भोली भाली सुमित्रा जी ने सारी बातें जैसे आत्मसात कर ली थीं. सब मज़े से चल रहा था अगर वो घटना न होती तो..... उस घटना ने तो जैसे सुमित्रा जी का जीवन नर्क बना दिया... ! कितनी बड़ी ग़लती हुई उनसे.... लेकिन अब क्या? अब तो हो गयी. “ मम्मी..... ये लो तुम्हारा नया मोबाइल. सबके पास
  • Read Free
भदूकड़ा - 9
अब आप सोचेंगे कि सुमित्रा जी अपनी ससुराल गयीं, तो वहां चेन ग़ायब हुई. हम कुन्ती को क्यों बीच में फ़ंसा रहे? लेकिन भाईसाब, हम फ़ंसा नहीं रहे, वे तो खुद ही फ़ंसी-फ़साईं हैं. हुआ यूं, कि बड़की बिन्नू ...Read Moreजन्म के बाद सुमित्रा जी की अम्मा ने कुन्ती को भी सुमित्रा के साथ भेज दिया था, मदद के लिये. चेन ग़ायब हुई तो अतिसंकोची सुमित्रा जी ने ये बात केवल कुन्ती को बताई और कुन्ती ने उसका बतंगड़ बना दिया. खूब रोना-धोना मचाया कि चेन हमने चुरा ली क्या? कुन्ती की बुक्का फ़ाड़ रुलाई से घबराई सुमित्रा जी ने
  • Read Free
भदूकड़ा - 10
उधर जब कुन्ती को ये खबर लगी तो जैसे आग लग गयी उसके तन-बदन में. दुहैजू से ब्याहेंगे हमें? वो भी सुमित्रा के जेठ से!! दो-दो बच्चियों के बाप से! बचपन से लेकर सुमित्रा के जाने तक यहां दोनों ...Read Moreरूप-रंग की तुलना होती रही और अब ज़िन्दगी भर के लिये ससुराल में यही यातना भोगें!!! कुन्ती को लगा, हो न हो, सुमित्रा ने बदला लेने के लिये किया है ये सब. कुन्ती का दिमाग़ वैसे भी बदले जैसी बात ही सोच पाता था. खूब रोई-धोई मां के आगे. अम्मा ने समझाया, बड़के दादा ने समझाया, बड़की जिज्जी ने समझाया
  • Read Free
भदूकड़ा - 11
तब कुन्ती ब्याह के आ गयी थी इस घर में. सुमित्रा की वाहवाही सुन के कान पके जा रहे थे उसके. जिसे देखो उसे, वही सुमित्रा की माला फेर रहा!! और तो और, खुद कुन्ती से ही सुमित्रा की ...Read Moreकिये जा रहा! कैसे बर्दाश्त करे कुन्ती!! यहां तक की बड़े दादा ( कुन्ती के पति) भी सुमित्रा की तारीफ़ कर रहे, कुन्ती से!!!! जली-भुनी कुन्ती अब मौक़े की तलाश में जुट गयी कि कैसे इस सुमित्रा को सबके सामने नीचा दिखाया जाये. उधर सुमित्रा जी कुन्ती की चिन्ता में अधमरी हुई जा रही थीं. कुन्ती को तो इतने काम
  • Read Free
भदूकड़ा - 12
घर के सारे आदमियों ने नाश्ता कर लिया तो काकी की आवाज़ गूंजी- ’अबै उठियो नईं लला. बैठे रओ. कछु जरूरी बात करनै है तुम सें.’ थाली में हाथ धोते बड़े दादा ने काकी की तरफ़ देखा, और थाली ...Read Moreके वहीं बैठे रहे. ’इत्ते साल हो गये, हमने सुमित्रा खों कछु दुख दओ का?’ ’आंहां कक्को’ ’ऊए खाबे नईं दओ का?’ काय नईं? ऐन दओ तुमने.’ ’तौ जा बताओ, सुमित्रा, जिए हम राजरानी मानत, जी की तारीफ़ करत मौं नईं पिरात हम औरन कौ, ऊ ने जा चोरी काय करी? औ केवल जा नईं, जानै कितेक दिनन सें कर
  • Read Free
भदूकड़ा - 13
कुन्ती का चेहरा पीला पड़ गया. उसे मालूम ही नहीं था, कि सुमित्रा रमा को बता के सामान लाती है उनके लिये!! पहले सुमित्रा और अब बड़के दादा शर्मिन्दगी से गर्दन झुकाए थे. बस एक वाक्य निकला उनके मुंह ...Read More’हमें माफ़ कर देना छोटी बहू....’ सुमित्रा के लिये तो जैसे तारणहार बन के आई थी रमा! स्नेह तो पहले ही बहुत था दोनों के बीच, अब ये डोर और मजबूत हो गयी. उधर मामला उलट जाने से कुन्ती की रातों की नींद हराम हो गयी. बड़े दादाजी ने कुन्ती से बस इतना कहा था कि-’ अभी जो हुआ सो
  • Read Free
भदूकड़ा - 14
.लभारी शरीर की सुमित्रा जी काहे को उठ पातीं छह साल के चन्ना से? चन्ना के साथ बैठीं सुमित्रा जी, चन्ना में अज्जू को देख रही थीं..... अज्जू, जब एक साल का रहा होगा, तब गरुड़ में दूध भर ...Read Moreपीने की ज़िद पकड़ बैठा. उधर चक्की पर अनाज पीसने की बारी अब सुमित्रा जी की ही थी, तो वे भी हड़बड़ी में थीं, कि अज्जू जल्दी से दूध पी ले, तो वे काम पर लगें. लेकिन इधर उन्होनें कटोरी से दूध गरुड़ में डाला, उधर कुन्ती प्रकट हो गयी! फिर तो जो बवाल हुआ उसका क्या कहें! उस घंटी
  • Read Free
भदूकड़ा - 15
अगले दो दिन तैयरियों में बीते. छोटा-बड़ा तमाम सामान सहेजा गया. अनाज की बोरियां भरी गयीं. मसाले, अचार, पापड़, बड़ियां ....सब कुछ. ज़रूरी बर्तन और बिस्तरों का पुलिंदा बनाया गया. सुमित्रा जी सब देख रही थीं चुपचाप. अन्दर ही ...Read Moreघर से दूर जाने से घबरा भी रही थीं. कैसे सम्भालेंगीं बच्चों और घर को! हमेशा भरे-पूरे घर में रहने की आदी सुमित्रा जी का मन, अकेलेपन की कल्पना से ही दहशत से भरा जा रहा था. लेकिन अब बड़े दादा का आदेश था तो जाना तो पड़ेगा ही. दो दिन बाद जब सामान ट्रैक्टर में लादा जा रहा था
  • Read Free
भदूकड़ा - 16
आज उन्हें अपनी पहली पत्नी भी बहुत याद आ रही थीं. कितनी शान्त-शालीन थी सुशीला....! लगभग सुमित्रा जैसी ही. दोनों में प्यार भी बहुत था. शादी के बाद जब तक सुशीला ज़िन्दा थी, सुमित्रा की चोटी वही किया करती ...Read Moreबिल्कुल मां की तरह. सुशीला के साथ का अनुभव इतना अच्छा था कि वे समझ ही न पाये कि दुनिया में कोई स्त्री इतनी खुराफ़ाती भी हो सकती है!! पूरे खानदान में ऐसी कोई महिला न थी तो तिवारी जी सोच भी कैसे पाते? फिर ये तो सुमित्रा की बहन थी.... कहां सुमित्रा और कहां कुन्ती!!!! उधर कुन्ती भी तिलमिलाई सी
  • Read Free
भदूकड़ा - 17
’कौशल्या, जाओ रानी तुम देख के आओ तो बड़की दुलहिन काय नईं आईं अबै लौ.’ छोटी काकी अब चिन्तित दिखाई दीं. हांलांकि नहीं आने का कारण सब समझ रहे थे, फिर भी उन्हें आना तो चाहिये था न! रमा ...Read Moreचाय का पतीला दोबारा चूल्हे पे चढा दिया, गर्म करने के लिये. एक तो वैसे ही चूल्हे की चाय, उस पर बार-बार गरम हो तो चाय की जगह काढ़े का स्वाद आने लगता है. रमा पतीला नीचे उतारे, उसके पहले ही सामने की अटारी से कौशल्या बदहवास सी, एक सांस में सामने की अटारी की सीढ़ियां उतरती, और रसोई की
  • Read Free
भदूकड़ा - 18
कुन्ती झपाटे से अपनी अटारी में पहुंची. पीछे-पीछे बड़के दादाजी पहुंचे. ’क्या बात है? इस तरह भरी समाज से उठा के लाने का मतलब?’ दादाजी को कुन्ती की हरकत पसन्द नहीं आई थी, ये उनकी आवाज़ से स्पष्ट था. ...Read Moreवो सुमित्रा वहां न केवल ठाठ से रह रही, बल्कि पढ़ाई भी कर रही. और अब तो उसकी नौकरी भी लगने वाली. और मैं यहां बैठ के कंडे पाथ रही. तो कान खोल के सुन लीजिये, मैं भी आगे पढ़ाई करूंगी, और नौकरी भी. ये मेरा फ़ैसला है, सलाह नहीं मांगी है.’ एक सांस में कह गयी कुन्ती, अपनी बात.
  • Read Free
भदूकड़ा - 19
सुमित्रा की नौकरी ने ये तय कर दिया था, कि उसे अब स्थाई रूप से गांव नहीं जाना है. जायेगी, लेकिन मेहमानों की तरह. त्यौहारों पर, या गरमी की छुट्टियों में.’दादी...... आज न तो आप ठीक से खेल रहीं, ...Read Moreमुझे कोई कहानी ही सुना रहीं. आपका मन नहीं लग रहा क्या? ड्रॉइंग करेंगी मेरे साथ?’ चन्ना फिर सुमित्रा जी को झिंझोड़ रहा था. ’अरेरे...... चन्ना, मेरे सिर में दर्द हो रहा हल्का-हल्का इसलिये मन नहीं लग रहा खेलने में. तुम बनाओ न ड्रॉइंग, मैं चैक कर लूंगी बाद में. ठीक है न?’ सुमित्रा जी ने बहाना बनाया. आज वे
  • Read Free
भदूकड़ा - 20
किसी प्रकार गांववालों को समझा-बुझा के बाहर किया गया. बड़के दादा को दिल का दौरा पड़ा था, रात के किसी समय . ये अटैक इतना ज़बर्दस्त था, कि दादाजी किसी से कुछ बोल ही न पाये और चले गये. ...Read Moreवाले ले के गये थे दादाजी को, लौटे खाली हाथ....!पूरा घर जैसे अनाथ हो गया......! पूरे गांव ने जैसे अपना पिता खो दिया...! चारों ओर सन्नाटा. घर में बच्चे तक शोर नहीं कर रहे थे. कुन्ती के दोनों बेटे अभी छोटे थे. शादी को अभी समय ही कितना हुआ था? कुल आठ साल!!!! झटका तो कुन्ती को भी लगा लेकिन
  • Read Free
भदूकड़ा - 21
छुट्टियां हुईं तो सुमित्रा जी ने कुन्ती को मना लिया बड़े भैया के घर चलने के लिये. बड़े भैया उस समय बरुआसागर में पोस्टेड थे. कुन्ती भी जिस सहजता से जाने को तैयार हो गयी, उसने रमा के कान ...Read Moreकर दिये. ये बड़ी जिज्जी तो कहीं जाने को तैयार न थीं, अपने मायके तक न गयीं, ये सुमित्रा जिज्जी के साथ कैसे चल दीं? वो भी बड़े भैया के घर, जिनका स्नेह सुमित्रा जी के ऊपर सबसे अधिक है, वो भी घोषित तौर पर. सुमित्रा जी के बड़े भाईसाब का केवल स्नेह ही नहीं था उनके ऊपर बल्कि वे उनकी
  • Read Free
भदूकड़ा - 22
और ये सुमित्रा! इसे तो मैं खूब पहचानती हूं. इसकी तो रग-रग में मुझे नीचा दिखाने की नीयत भरी है. इसीलिये इसने बुड्ढे से मेरी शादी करवाई, इसीलिये ये यहां ले के आई ताकि मेरे सामने ये दोनों अपनी ...Read Moreबखानती घूमें. इस सुमित्रा को इतना नीचा दिखाया, लेकिन तब भी अकल ठिकाने न आई इसकी. ये बड़े भैया बहुत प्यार करते हैं न सुमित्रा को, बड़ी इज़्ज़त करते हैं न..... देखना सुमित्रा इनकी नज़रों में तुम्हें न गिराया तो मेरा नाम बदल के मंथरा रख देना हां. स्वग्त में लगातार खुद से वार्तालाप करती कुन्ती की अन्तिम पंक्ति फिर
  • Read Free
भदूकड़ा - 23
दिन ठीक-ठाक ही निकल रहे थे बड़े भैया के पास अगर कुन्ती वो कान्ड न कर डालती......! हुआ ये कि भैया अपने सरकारी काम से झांसी गये. वहां से भाभी, सुमित्रा जी और कुन्ती के लिये साड़ियां ले आये. ...Read Moreसाड़ियां लगभग एक जैसी सुन्दर थीं. भाभी की साड़ी देख अनायास ही सुमित्रा जी के मुंह से निकला- ’आहा..... इसका आंचल कितना सुन्दर है!!’ अगले ही दिन जब सुमित्रा जी अपनी बड़ी बेटी-मुनिया को नहला रही थीं तब कुन्ती अपने पल्लू में कुछ छुपा के लाई. ’सुनो
  • Read Free
भदूकड़ा - 24
एक मिनट को दादा कुछ समझ ही नहीं पाये कि कुन्ती कह क्या रही है! सुमित्रा और ऐसी हरक़त! न कभी नहीं. ’अरे तुम्हें ग़लतफ़हमी हुई होगी कुन्ती. सुमित्रा ऐसा नहीं कर सकती.’ ’वही तो....... ये देवी जी ऐसी ...Read Moreकी मूर्ति बनी बैठी हैं कि इनके ग़लत काम को भी कोई मानता नहीं. रुकिये मैं दिखाती हूं. अच्छा चलिये आप ही.’ भैया को लगभग घसीटते हुए कुन्ती पालने तक ले आई और बिस्तर उठा के कपड़ा दिखाया. भैया सन्न! ’अब हुआ भरोसा?’ कुन्ती कुटिलता से मुस्कुरा रही थी. भैया कुछ नहीं बोले. अपनी कुरसी पर वापस बैठते हुए बस
  • Read Free
भदूकड़ा - 25
भैया ने उनकी बात नहीं सुनी, ये बुरा लगा सुमित्रा जी को, लेकिन इस बुरा लगने में कोई दुर्भावना नहीं थी उनके मन में. बस दुख था, कि यदि भैया सुन लेते तो शायद ऐसा अपमान नहीं करते. स्वाभिमानी ...Read Moreकी स्वाभिमानी बेटी थीं सुमित्रा जी. भैया से असीमित स्नेह रखती थीं, आगे भी रखेंगीं, ईश्वर उनका बाल भी बांका न करे, उनकी तक़लीफ़ें सुमित्रा जी को दे दे.... जैसी तमाम बातें मन ही मन दोहराते हुए ही सुमित्रा जी न अब आगे कभी भी भैया घर न आने की क़सम खाई थी. इस घर से अपमानित हो के निकल
  • Read Free
भदूकड़ा - 26
कुन्ती हमेशा की तरह बुक्का फाड़ के रोने लगी. अम्मा ने जल्दी से सबको अन्दर किया. ’का हुआ बेटा? काय रो रईं? कछु बोलो तौ...!’ ’अम्मा..... जे सुमित्रा ने करवाया सब. इसी के कारण हमें भागना पड़ा...!’ अब एक ...Read Moreफिर अम्मा के अवाक होने की बारी थी. अब एक बार फिर अम्मा के अवाक होने की बारी थी. कुन्ती ने जब अपनी करनी सुमित्रा जी पर थोप के कहानी बनाई और अम्मा को सुनाई तो उन्हें ये समझने में एक मिनट भी न लगा कि ये पूरी हरक़त कुन्ती की है और ये फिर उसी तरह सुमित्रा को फंसा रही जैसे
  • Read Free
भदूकड़ा - 27
कुन्ती ये भी जानती थी, कि फिलहाल ये बात टली तो फिर सबके दिमाग़ से उतर भी जायेगी. क्योंकि न तो इस बात का ज़िक्र भैया करेंगे, न भाभी. हां वे दोनों सुमित्रा को जब भी देखेंगे तो उसकी ...Read Moreउन्हें भाभी की साड़ी का फटा हुआ लाल-सुनहरा आंचल लहराता दिखाई देगा, और उसके लिये भैया के मन में स्थाई दूरी बनी रहेगी. यही तो चाहती है कुन्ती. मन ही मन ठठा के हंसती कुन्ती की हंसी ज़ोर से निकल गयी, तो बरामदे में ज़रा दूरी पर बैठे बाऊजी ने सिर उठा के कमरे के अन्दर देखने की कोशिश की,
  • Read Free
भदूकड़ा - 28
’सिर दर्द ठीक हुआ दादी? आखिर कितनी देर तक चम्पी करूं मैं?’ चन्ना की आवाज़ से सुमित्रा जी फिर वापस लौट आई थीं. मुस्कुरा के बोलीं- ’अब तो हवा हो गया सिरदर्द. जाओ तुम बढ़िया सी ड्राइंग बनाओ तितली ...Read Moreफिर हमें दिखाओ. अच्छी बनेगी तो इनाम मिलेगा.’ ’इनाम...... यानी चॉकलेट? बड़ी वाली? है न दादी?’ सुमित्रा जी ने हां में सिर हिलाते हुए चन्ना के सिर पर चपत लगायी और खुद टीवी में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगीं. ये हिन्दुस्तानी सीरियल भी न...... इतनी साजिशें भरी पड़ीं हैं इनमें, जैसा वास्तविक ज़िन्दगी में होता ही नहीं..... मन ही
  • Read Free
भदूकड़ा - 29
बच्चे के साथ कैसी दुश्मनी? क्यों मज़ाक बनायेंगीं उसका? बहुत दुखी हुआ था उनका मन उस दिन. और उसी दिन उन्होंने तय किया था कि अब वे गांव भी बहुत ज़रूरी होने पर ही आयेंगीं. दादाजी तो अब हैं ...Read Moreजिनके स्नेह के चलते आना ज़रूरी हो. छोटी काकी को भी उन्होंने बता दिया था. बच्चे के साथ किये गये दुर्व्यवहार से छोटी काकी भी कम दुखी न थीं. उन्हें भी सुमित्रा जी की बात ठीक ही लगी थी.पिटते, मुंह काला पुतवाते, दिन भर को कोने में खड़े किये जाते, लुढ़कते-पुढ़कते कुन्ती के दोनों बेटे भी बड़े हो गये थे.
  • Read Free
भदूकड़ा - 30
गर्मियों की ही बात है. रमा रोटियां सेंक रही थी, पसीना-पसीना होते हुए. सुमित्रा जी बेलतीं, और रमा सेंकतीं. किशोर उस समय साल भर का भी नहीं था. रसोई के ठीक आगे की छत पर छोटी काकी उसे छोटे ...Read Moreखटोले पर लिटा के हवा कर रही थीं. इसी बीच कुन्ती रसोई में पहुंची और रमा को दूध गरम करने का आदेश दिया- “रमा, बाई ज़रा भैया (किशोर) के लिये दूध कुनकुना कर देना.” “हओ जिज्जी, अब्बई करत. बस जा तवा पे पड़ी रोटी सेंक लें....! बस अब्बई ल्यो.” आदेश की अवहेलना! कुन्ती को ये कहां बर्दाश्त था! “अच्छा! पहले
  • Read Free
भदूकड़ा - 31
समय बदल रहा था. बच्चे उच्च शिक्षा हेतु शहरों में पढ़ रहे थे. नौकरियां भी बाहर ही मिलनी थीं, अब तो उनके खुद के परिवार भी बन गये, शादी के बाद. अब सब तभी इकट्ठे होते जब कोई शादी ...Read Moreसे होनी होती. अधिकांश ने शहरों में ही घर बनवा लिये थे अब सब तभी इकट्ठे होते जब कोई शादी गांव से होनी होती. अधिकांश ने शहरों में ही घर बनवा लिये थे. तिवारी जी के भाइयों ने ज़रूर पुराने मकान में ही तब्दीली कर, उसे पक्का और सुविधाजनक कर लिया था. उन सब का विचार था, कि वे रिटायरमेंट के बाद गांव में ही रहेंगे. रहना
  • Read Free
भदूकड़ा - 32
कुन्ती के इस फ़ैसले का लेकिन कुन्ती कहां किसी की सुनने वाली? यदि सब राज़ी हो जाते तो शायद कुन्ती अपने फ़ैसले से पलट जाती, लेकिन सब के विरोध ने फिर उसके भीतर ज़िद भर दी. खुले आम कहती-“सब ...Read Moreकौन हैं रोकने वाले? सब तो अपनी चैन की बंसी बजा रहे न? तो हमारा सुख क्यों अखरने लगा सबको? शादी तो अब हो के रहेगी.” बेचारा किशोर न हां कह पाता न ना. अजब मुश्किल में थी उसकी जान. स्कूल में पढ़ने वाला किशोर समझ ही नहीं पा रहा था कि ये नयी धुन क्यों सवार हो गयी अम्मा
  • Read Free
भदूकड़ा - 33
“देखो बैन, हमाय पास कौन किशोर के बाबूजी बैठे हैं जौन हम निश्चिंत रहें. इतै तौ एक एक दिन मुश्किल में कट रओ. इन बच्चन की ज़िम्मेदारी सें फ़ारिग होंय तौ गंगा नहायें. अब तुम हो गयीं शहर वालीं, ...Read Moreतुमै तौ ओई हिसाब सें चलनै. बिठाय रओ मौड़ी खों. हमें तौ गांव में रनैं, सो इतईं कौ कायदौ भी देखनै.” सुमित्रा जी कट के रह गयीं. “शहर वाली” तो जैसे अब उनके लिये गाली हो गयी थी. बात-बात में शहर वाली कह के ताना देना कुन्ती कभी न भूलती. किशोर की शादी गर्मियों में ही थी, तो सुमित्रा जी के लिये
  • Read Free
भदूकड़ा - 34
कुन्ती के वाक्य सुमित्रा जी के दिल पर हथौड़े से पड़ रहे थे. जब वे ब्याह के आईं थीं, तब उनकी लम्बाई-चौड़ाई पर भी कई दबी ज़ुबानों से उन्होंने भी ’पहलवान’ जैसा कुछ सुना था. उन्हें कैसा लगा था, ...Read Moreवैसा ही वे अब जानकी के लिये महसूस कर रही थीं. कुन्ती को लोटता छोड़ , वे रमा के हाथ से थाली ले के आगे बढ़ीं. थकान से भरी ज़रा सी बालिका-वधु अब अपनी सास का प्रलाप सुन रही थी वो भी पिता को दी जाने वाली गालियों सहित. घूंघट के भीतर उसके आंसू बह रहे होंगे, सुमित्रा जी जानती थीं. उन्होंने जल्दी से दूल्हा-दुल्हन की आरती उतार, परछन किया और भीतर ले आईं, ये जानते
  • Read Free
भदूकड़ा - 35
कुन्ती और जानकी के गांव के बीच महज पांच किमी की दूरी थी. मिश्रा जी भी स्कूल में शिक्षक थे. ब्लॉक की मीटिंग्स में जब तब उनकी भेंट कुन्ती से हो जाती थी. स्टाफ़ वालों को जब पता चला ...Read Moreकुन्ती अच्छी, सुसंस्कृत लड़की खोज रही, तो उन्होंने मिश्रा जी की बेटी- जानकी का नाम सुझाया. कुन्ती न केवल मिश्रा जी का घर देख आई थी, बल्कि जानकी को भी देख आई थी. जानकी थोड़े से भारी शरीर और गेंहुए रंग की थी, लेकिन नाक-नक्श बहुत प्यारा था उसका. बाल सुमित्रा जी की तरह बहुत लम्बे तो नहीं, लेकिन कमर
  • Read Free
भदूकड़ा - 36
सिर झुकाये, सारी बातें सुनती, समझती जानकी ने बस एक बात कही-“ बे बड़ीं हैं सो ऐन डांट सकतीं. काम सिखा सकतीं, सब कर सकतीं, बस हमाय ऊपर या हमाय मां-बाप के ऊपर कौनऊ गलत इल्ज़ाम लगाओ, तौ हम ...Read Moreन कर हैं. काय सें इतै हम अपने मां-बाप की बेइज्जती करबावे नईं आय. उनै जो कछु काने, हमसें कंयं. बस हमई तक रक्खें अपनौ गुस्सा.”अगले दिन सत्यनारायाण की कथा और सुहागिलें थीं. इस कार्यक्रम के सम्पन्न होने के ठीक अगले ही दिन, कुन्ती जानकी के कमरे में धड़धड़ाती घुसी- “काय बैन तुम अबै लौ इतै नई दुल्हन बनीं बैठीं? उतै
  • Read Free
भदूकड़ा - 37
अगली सुबह फिर जानकी की मुसीबत करने के लिये ही कुन्ती ने सुनिश्चित की थी. सबेरे जब जानकी सबको चाय दे रही थी, तो कुन्ती ने टेढ़ी निगाह कर पूछा-“ चाय कीनै बनाई? तुमनै?”“आंहां अम्मा. चाय तौ सुमित्रा चाची ...Read Moreबनाई. हम तौ बस सब खों दै रय.” जानकी ने सहज उत्तर दिया.छन्न.......... चाय का कप छन्न की आवाज़ के साथ ही आंगन में अपनी चाय बिखेरे औंधा पड़ा था.“तुमै इत्ती अक्कल नइयां कै चाय बना लो? बड़ी जनैं चाय बनायं, औ तुम भकोस लो!! जेई सिखाया का तुमाई मताई नै?”कुन्ती अपने रौद्र अवतार में वापस आ रही थी.“ देखो अम्मा, ऐसी है,
  • Read Free
भदूकड़ा - 38
रमा और सारी देवरानियां अवाक ! इतनी हिम्मत तो किसी ने अब तक न की थी कुन्ती के सामने ! कुन्ती को काटो तो ख़ून नहीं. अभी तक तो उन्होंने कहा और आज्ञा का पालन तुरन्त होता था. जिसे ...Read Moreके सामने से हटने को कहा फिर उसकी हिम्मत न थी, कुन्ती के आदेश के बिना उसका सामना करने की. सुमित्रा जी सारा कांड अब तक चुपचाप देख रहीं थीं. कुन्ती के मामले में कुछ भी बोलने की उनकी कभी हिम्मत ही नहीं होती थी. जानकी का जवाब ठीक ही था, लेकिन पता नहीं क्यों सुमित्रा जी को कुन्ती का अपमान
  • Read Free
भदूकड़ा - 39
दो-चार दिन बाद ही सुमित्रा जी वापस ग्वालियर चली गयी थीं. बाक़ी सब भी अपने –अपने घरों में व्यवस्थित हो गये. गांव से कुन्ती और जानकी के बीच होने वाले बड़े-छोटे झगदों की खबर आती रहती थी. अक्सर ही ...Read Moreसे कोई न कोई आता था, और सारी खबरें दे जाता था. कई बार सुमित्रा जी का मन परेशान होता था कि बताने वाले ने तो केवल घटना बता दी वास्तविकता में पता नहीं क्या-क्या हुआ होगा. बहुत बाद में खबर मिली कि कुन्ती ने गुस्से में आ के जानकी को पीट दिया. फिर अक्सर ऐसी ख़बरें आने लगीं. सुमित्रा
  • Read Free
भदूकड़ा - 40
सुमित्रा जी ने कैलेन्डर की ओर देखा. आज शुक्रवार है. अगर आज की ड्यूटी कर लें, तो शनिवार की छुट्टी ले के दो दिन के लिये जा सकती हैं. अब तक तिवारी जी भी उठ गये थे, और चुपचाप ...Read Moreकहानी सुन रहे थे. किसी भी काम से गांव जाने की बात पर वे हमेशा सहमत रहते थे. पता नहीं क्यों, उनके मन में अपना गां, अपना घर छोड़ के शहर आ जाने पर एक अपराधबोध सा था जिसे वे अक्सर गांव जा के कम करने की कोशिश करते थे शायद. सुमित्रा जी उसी दिन छुट्टी की अर्ज़ी लगा के
  • Read Free
भदूकड़ा - 41
सुमित्रा जी, कुन्ती, सुमित्रा जी की बेटियां रूपा-दीपा और जानकी पीछे वाली अटारी में नीचे गद्दे बिछा के लेटीं, एक लाइन से. कुन्ती तो जल्दी ही सो गयी, लेकिन अब कूलर की आदी हो चुकीं सुमित्रा जी और रूपा-दीपा ...Read Moreकी उमस वाली गरमी में बिना पंखे के सो ही नहीं पा रहे थे. इन तीनों ने जानकी सहित, अटारी के बाहर वाली छोटी छत पर लेटने का मन बनाया.इन तीनों ने जानकी सहित, अटारी के बाहर वाली छोटी छत पर लेटने का मन बनाया. फटाफट बाहर गद्दे लाये गये. यहां कुछ हवा भी थी और कमरे के अन्दर वाली
  • Read Free
भदूकड़ा - 42
"तुम्हारी तबियत तो ठीक है न जानकी?" सुमित्रा जी ने असली मुद्दे पर आने की कोशिश की। "हओ छोटी अम्मा। हमाई तबियत खों का हौने? ठीकई है।" "किशोर बता रहे थे कि पिछले दिनों तुम्हारी तबियत भी बिगड़ गयी ...Read Moreज़रा संकोच से ही पूछा सुमित्रा जी ने। "छोटी अम्मा, का जाने हमें अचानक का हो जात... लगत है जैसें कौनऊ सवार हो गओ होय मूड़ पे। लगत खूब ज़ोर सें चिल्ल्याय, जौन कछु दिखाए, ओई सें फेंक कें मारें। दांत सोई किटकिटात।" जानकी फिर रुआंसी हो आई थी। सुमित्रा जी को लगा हो सकता है परिस्थितियों के चलते जानकी
  • Read Free
भदूकड़ा - 43
अब सबका ध्यान किशोर की ओर गया जो खुद को अपराधी सा मानता, एक ओर बैठा, अपने मोच खाये पैर को सहला रहा था। सुमित्रा जी से नज़र मिलते ही किशोर के आंसू आ गए। "देख रहीं न छोटी ...Read Moreइत्ते दिनों में जे चौथी बार दौरा पड़ा तुम्हारी बहू को। हम तो परेशान हो गए। न अम्मा को रोक पाते न जानकी को रोक पा रय। अब तुमई करौ कुछ।" सुमित्रा जी किशोर के सिर पर हाथ फेरतीं चुपचाप बैठी रहीं। वे और कर ही क्या सकती थीं? सबके इधर-उधर होते ही सुमित्रा जी ने तिवारी जी के सामने
  • Read Free
भदूकड़ा - 44
रात दस बजे के आस पास सुमित्रा जी सपरिवार ग्वालियर पहुंच गईं। जानकी और किशोर के जाने के बाद कुंती बैठका में ही निढाल हो बड़े दादाजी की आराम कुर्सी पर बैठ गयी। आंखें बंद कीं, तो उसे बचपन ...Read Moreलेकर अब तक, अपने द्वारा , सुमित्रा जी के लिए गढ़ी गयी तमाम साजिशें याद आने लगीं। आज उसी सुमित्रा ने एक बार फिर उसे संकट से उबारने की कोशिश की है। पहले भी, बचपन में जब भी कुंती पर कोई संकट आता था तो सुमित्रा ही उसे आगे आकर अपने सिर पर ले लेती थी वो चाहे बच्चों के
  • Read Free
भदूकड़ा - 45
"हे मोरी शारदा मैया, जानकी खों ठीक कर दियो" अपने आप ही कुंती के मुंह से ये दुआ निकली और हाथ स्वतः ही जुड़ गए प्रार्थना में। ये प्रार्थना जानकी के स्वास्थ्य के लिए थी, या अपनी गर्दन की ...Read Moreभगवान जाने...! कुंती को याद तो सुमित्रा के साथ की गईं ज़्यादतियां भी आ रही थीं.....बहुत दुख दिए हैं उसने सुमित्रा को। लेकिन तब भी उसे उआँ पर कोई पछतावा नहीं है। अपनी करनी के आगे, उसे अपने जेठ से ब्याह करवाने का अपराध ज़्यादा बड़ा लगता है। कुंती ये कभी मान ही नकहिं पाई कि सुमित्रा जी ने ये
  • Read Free
भदूकड़ा - 46
एक गहरी राहत की सांस ली सुमित्रा जी ने। जानकी को कोई बीमारी न निकल आये, वे यही मना रही थीं बस। अगर उसने अपने बचाव के लिए बब्बा जू की सवारी का ड्रामा भी किया, तो क्या ग़लत ...Read Moreअपनी सुरक्षा के लिए की गई हत्या को भी तो अपराध नहीं माना जाता। कुंती के जुल्मोसितम से बचने के लिए 17-18 साल की कोई लड़की, और कर भी क्या सकती थी? गाँवों में सासों के अत्याचार से पीड़ित पता नहीं कितनी लड़कियों को इसी प्रकार या तो देवी आने लगती हैं या बब्बा जू। कई तो बाक़ायदा पागल होने
  • Read Free
भदूकड़ा - 47
कुंती ने जब छोटू से शादी बावत बात की तो वो एकदम बिफर गया। "अम्मा, हमें भैया न समझना। उनको तो घेरघार के तुमने शादी कर दी, पर हमारे लिए अभी कुछ न सोचना। परीक्षा की तैयारी कर रहे ...Read Moreसो कर लेने दो। तुम का चाहतीं, एक और जनी आ जायँ, और हर खर्चे के लिए तुम्हारा मूं देखे? और फिर तुम उसे पैसे पैसे को मोहताज करके, अपनी नौकरानी बना लो? भाभी के साथ तुमने जो किया, हमने देखा नहीं है या देख नहीं रहे? ये पूरा किस्सा अब दोबारा रिपीट न होने देंगे हम अम्मा। अबै तुम
  • Read Free
भदूकड़ा - 48
कुंती ने तो देखते ही हां कर दी। शास्त्री जी को कह दिया कि जल्दी ही ओली डालने आएंगीं। किशोर कुंती के फैसले से थोड़ा परेशान भी हुआ लेकिन उसकी कब चली है जो अब चलती? रास्ते में किशोर ...Read Moreदबी जुबान से अपनी बात कहनी चाही तो कुंती ने घुड़क दिया। घर आ के कुंती ने बिना किसी ज़िक्र के ही रमा को टेर लगा लगा के ऊंची आवाज़ में लड़की की सुंदरता का बखान शुरू किया तो छोटू के कान खड़े हुए। उसकी समझ में आ गया कि हो न हो अम्मा उसी के लिए लड़की देख के
  • Read Free
भदूकड़ा - 49
शास्त्री जी जल्दी ही जल चढा के आ गए। तीनों जीप पर सवार हुए और शास्त्री जी के घर पहुंचे। छाया घर के बाहर ही चबूतरा बुहार रही थी। दूर से जीप आती दिखी तो उसे खटका हुआ। ऐसी ...Read Moreजीप से तो उसे देखने वाले आये थे। जब तक वो कुछ तय करती तब तक जीप दरवाज़े पर आ गयी। छाया हाथ की झाड़ू वहीं छोड़ अंदर भाग गई। अंदर दौड़ते जाती छाया की एक हल्की सी झलक मिली छोटू को वो भी पीछे से। बस लहराती लम्बी चोटी ही देख पाया इस आकृति की। शास्त्री जी बड़े आदर,
  • Read Free
भदूकड़ा - 50
उस दिन का पेपर, छोटू ने कैसे दिया, वही जानता है। आंसरशीट पर पर थोड़ी थोड़ी देर में उसे कभी चोटी लहराती, दौड़ती आकृति दिखती तो कभी खिड़की से झाँकतीं दो आंखें...! तीन घण्टे से पहले हॉल से निकल ...Read Moreसकते थे सो मजबूरन छोटू को अंदर ही रुकना पड़ा, वरना पेपर तो दो घण्टे में ही कम्प्लीट हो गया था उसका। एक बजे छोटू जब बाहर निकला, तो किशोर गरम समोसे लिए गाड़ी के पास खड़ा था। दोनों ने एक एक समोसा खाया, चाय पी और वापस हो लिए। एक घण्टे बाद ही वे ठाठीपुरा के मोड़ पर थे।
  • Read Free
भदूकड़ा - 51
छोटू की शादी में कुंती चाह के भी कोई गड़बड़ न कर पाई। कारण, न तो छोटू किशोर की तरह दब्बू था, न ही शास्त्री जी मिश्रा जी की तरह सीधे-साधे। छोटू ने कुंती को पहले ही ताक़ीद कर ...Read Moreथा कि इस बार, भैया के परछन वाला सीन न दोहराया जाए। न ही घर आई लड़की को अनाप शनाप बोला जाए। यदि बोला गया तो फिर तुम जानना अम्मा...! छोटू की धमकी केवल धमकी नहीं थी। वो पूरी तरह कुंती के स्वभाव पर गया था। कुछ भी कर सकता था। शादी के एक महीने बाद ही वन विभाग से
  • Read Free
भदूकड़ा - 52
"मम्मी, देख लीजिए, मौसी का कमरा ठीक कर दिया है। कुछ और चाहिए, तो बताइएगा।" बहू की आवाज़ फिर सुमित्रा जी को ग्वालियर वापस ले आई। सोफे के हत्थों पर हाथ टेक के खड़ी होतीं सुमित्रा जी के पैरों ...Read Moreभी अब तक़लीफ़ रहने लगी है। "उम्र है तो अर्थराइटिस है, अर्थराइटिस है तो डॉक्टर हैं, डॉक्टर हैं तो दवाइयां हैं, दवाइयां हैं, तो मर्ज़ हैं...." पैर आगे बढ़ाते , दर्द महसूस करते अक्सर सुमित्रा जी यही लाइन मुंह ही मुंह में बुदबुदाती हैं। कमरा एकदम चकाचक कर दिया गया था। सब इंतज़ाम था लेकिन कुंती का पैर कहाँ टिकता
  • Read Free
भदूकड़ा - 53
ग्वालियर में सुमित्रा जी का घर ऐसी जगह है, जहाँ से होकर, झांसी से आगरा-ग्वालियर जाने वाली सभी बसें गुजरतीं हैं। यहां स्टॉपेज तो नहीं है लेकिन कुंती बस रुकवा लेती है दो मिनट के लिए और उतर जाती ...Read Moreठीक घर के सामने। गाँव से जितने भी लोग बसों से आते हैं वे सब यहीं उतरते है। काहे को 5 किमी अंदर बस स्टैंड तक जाना? तिवारी जी ने बड़ी लगन से घर बनवाया है। घर के बाहर बड़ा सा बगीचा, पीछे की तरफ किचन गार्डन, आम, अमरूद, अनार, सहजन, जामुन सब लगा है उनके बगीचे में। बाहर लम्बा
  • Read Free
भदूकड़ा - 54
भीषण गर्मी में भी सुमित्रा जी का घर, हरियाली की वजह से ठंडा रहता है। आम के पेड़ों ने चारों तरफ से घर को घेर रखा है। सुबह तिवारी जी पम्प चला देते हैं। क्यारियों में मेड़ बनी है। ...Read Moreचालू होते ही पानी सरसराता हुआ क्यारियों में बहने लगता है। हवा अपने आप ठंडी हो जाती है फिर। दोनों बहनें अपनी अपनी चाय का गिलास ले के झूले पर बैठ गईं। इस वक़्त कुंती का प्यार और सुमित्रा जी के प्रति दर्शाई जाने वाली चिंता से आप अनुमान ही नहीं लगा सकते कि उसने इतने खेल खेले होंगे। "काय
  • Read Free
भदूकड़ा - 55
साल भर तक तो कुंती छोटू के घर गयी ही नहीं। बाद में जब छोटू की बेटी की शादी तय हुई तब छोटू और उसकी पत्नी आ के उसे मना के ले गए। लेकिन अब होता ये है कि ...Read Moreबेटों, और उनके बच्चों को जब भी ज़रूरत होती है, उसे बुला लेते हैं। मन हो न हो, उसे जाना पड़ता है। राहुल के घर जब बच्चा पैदा हुआ तब तो कुंती की हालत बिल्कुल काम वालियों जैसी हो गयी। सारा काम करे, छोटा बच्चा संभाले और कोई गड़बड़ हुई नहीं कि राहुल उसी पर बरस पड़े! राहुल की शादी
  • Read Free
भदूकड़ा - 56
कुंती की समझ मे भी सुमित्रा जी की सलाह आ गयी थी शायद। गाँव पहुंचते ही उसने सबसे पहले ज़मीन के कागज़ात निकलवाये, दोनों लड़कों को बुलाया और अपने हिस्से की 35 एकड़ ज़मीन में से 15-15 एकड़ जमीन ...Read Moreबेटों के नाम कर दी पांच एकड़ अपने लिए रख ली। मगर इस पूरी कार्यवाही ने भी कुंती के लड़कों- बहुओं-पोतों का हृदय परिवर्तन करने का काम न किया। ज़मीन हाथ में आते ही गाँव की 15-15 एकड़ ज़मीन बेच के उन्होंने वहीं शहरों में 5-5 एकड़ ज़मीन लेना उचित समझा। अब गांव से उनका एकदम ही नाता टूट गया।
  • Read Free
भदूकड़ा - 57
कुंती ने पहले कभी ध्यान नहीं दिया था, लेकिन अब देख रही है कि हर आदमी उससे दूर भाग रहा है। भागता पहले भी होगा, लेकिन कुंती ने तब अपनी ताक़त के नशे में चूर थी। क्या बड़ा, क्या ...Read Moreसबको एक लाइन में लगाये रखती थी। अब जब ध्यान गया तो पता चल रहा है कि बच्चे, बड़े सब उसकी पहुंच से बहुत दूर हो गए हैं। उसके खुद के बच्चे ही कहाँ पास हैं अब? होंगे भी कैसे? जानकी के साथ उसने जो व्यवहार किया, जानकी भूलेगी कभी? किशोर को कितना प्रताड़ित किया और ये सारी प्रताड़नाएं देखता
  • Read Free
भदूकड़ा - 58 - अंतिम भाग
दोनों बहनें पहले रक्षाबंधन पर गांव आती थीं , दो-चार दिन आराम से बीतते उनके फिर कुंती की बड़बड़ाहट और फिर सीधे-सीधे तानों से त्रस्त हो के महीने भर की जगह, आठ दिन में ही वापस चली जातीं। फिर ...Read Moreउनका आना, कम होते होते बन्द ही हो गया। अब बस शादी ब्याह में ही आती थीं सिया-मैथिली, वो भी दो दिन के लिए। अपनी गाड़ी से आईं, और उसी से वापस। आज पता नहीं क्यों, कुंती को सिया की बहुत याद आ रही थी। सिया और कुंती की उम्र में केवल दस साल का ही तो फ़र्क़ है। सिया
  • Read Free

Best Hindi Stories | Hindi Books PDF | Hindi Fiction Stories | vandana A dubey Books PDF Matrubharti Verified

More Interesting Options

  • Hindi Short Stories
  • Hindi Spiritual Stories
  • Hindi Fiction Stories
  • Hindi Motivational Stories
  • Hindi Classic Stories
  • Hindi Children Stories
  • Hindi Comedy stories
  • Hindi Magazine
  • Hindi Poems
  • Hindi Travel stories
  • Hindi Women Focused
  • Hindi Drama
  • Hindi Love Stories
  • Hindi Detective stories
  • Hindi Moral Stories
  • Hindi Adventure Stories
  • Hindi Human Science
  • Hindi Philosophy
  • Hindi Health
  • Hindi Biography
  • Hindi Cooking Recipe
  • Hindi Letter
  • Hindi Horror Stories
  • Hindi Film Reviews
  • Hindi Mythological Stories
  • Hindi Book Reviews
  • Hindi Thriller
  • Hindi Science-Fiction
  • Hindi Business
  • Hindi Sports
  • Hindi Animals
  • Hindi Astrology
  • Hindi Science
  • Hindi Anything

Best Novels of 2023

  • Best Novels of 2023
  • Best Novels of January 2023
  • Best Novels of February 2023
  • Best Novels of March 2023
  • Best Novels of April 2023
  • Best Novels of May 2023
  • Best Novels of June 2023

Best Novels of 2022

  • Best Novels of 2022
  • Best Novels of January 2022
  • Best Novels of February 2022
  • Best Novels of March 2022
  • Best Novels of April 2022
  • Best Novels of May 2022
  • Best Novels of June 2022
  • Best Novels of July 2022
  • Best Novels of August 2022
  • Best Novels of September 2022
  • Best Novels of October 2022
  • Best Novels of November 2022
  • Best Novels of December 2022

Best Novels of 2021

  • Best Novels of 2021
  • Best Novels of January 2021
  • Best Novels of February 2021
  • Best Novels of March 2021
  • Best Novels of April 2021
  • Best Novels of May 2021
  • Best Novels of June 2021
  • Best Novels of July 2021
  • Best Novels of August 2021
  • Best Novels of September 2021
  • Best Novels of October 2021
  • Best Novels of November 2021
  • Best Novels of December 2021
vandana A dubey

vandana A dubey Matrubharti Verified

Follow

Welcome

OR

Continue log in with

By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"

Verification


Download App

Get a link to download app

  • About Us
  • Team
  • Gallery
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms of Use
  • Refund Policy
  • FAQ
  • Stories
  • Novels
  • Videos
  • Quotes
  • Authors
  • Short Videos
  • Free Poll Votes
  • Hindi
  • Gujarati
  • Marathi
  • English
  • Bengali
  • Malayalam
  • Tamil
  • Telugu

    Follow Us On:

    Download Our App :

Copyright © 2023,  Matrubharti Technologies Pvt. Ltd.   All Rights Reserved.