अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग 18

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अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे- भाग-18 एक विद्रोह अंधेरी रात। मशालों की लपलपाती रौशनी और भयानक बोझिल सा वातावरण। मेरे प्रेम ने मेरे साथ साथ मेरे मित्र… मेरे अभिन्न मित्र गेरिक के प्राण भी संकट में डाल दिये थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह सब कैसे हो गया। इसमें दोष किसका था? मेरा? मेरे मित्र का? अथवा किसी का नहीं? क्या हम संयोग के किसी भंवर में फंसे हैं और हमारे प्रारब्ध पर हमारा ही नियंत्रण नहीं? मैंने प्रेम किया और प्रेम तो सुख और दुख दोनो का ही कारण बनता है। मेरे साथ जो हुआ