लौट आई पावनी

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लौट आई पावनी -------------------- बहुत बरसों बाद पाँव ज़मीन पर से जैसे हवा के झौंकों के साथ इधर-उधर लहराने लगे |सच्ची ! ज़िंदगी का पता ही कहाँ चलता है ,किस मोड़ पर आकर या तो बिलकुल बेजान कर दे या फिर उन्हीं हवाओं की लहरावदार घुमावदार तरन्नुम भरी राहों पर कोई ऎसी सीढ़ी तैयार कर दे जिसके सबसे ऊपर की मंज़िल पर चढ़कर छलाँग लगाने को जी करने लगे | आदमी दो मन:स्थितियों में ख़ूब ऊँचाई से छलांग लगा लेना चाहता है | या तो उसके हाथ कोई 'खुल जा सिमसिम' लग जाए या फिर वो बिलकुल नकारा