भदूकड़ा - 44

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रात दस बजे के आस पास सुमित्रा जी सपरिवार ग्वालियर पहुंच गईं। जानकी और किशोर के जाने के बाद कुंती बैठका में ही निढाल हो बड़े दादाजी की आराम कुर्सी पर बैठ गयी। आंखें बंद कीं, तो उसे बचपन से लेकर अब तक, अपने द्वारा , सुमित्रा जी के लिए गढ़ी गयी तमाम साजिशें याद आने लगीं। आज उसी सुमित्रा ने एक बार फिर उसे संकट से उबारने की कोशिश की है। पहले भी, बचपन में जब भी कुंती पर कोई संकट आता था तो सुमित्रा ही उसे आगे आकर अपने सिर पर ले लेती थी वो चाहे बच्चों के