अक्कड़ बक्कड़- सुभाष चन्दर

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आम तौर पर हमारे तथाकथित सभ्य समाज दो तरह की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। एक कामकाजी लोगों की और दूसरी निठल्लों की। हमारे यहाँ कामकाजी होने से ये तात्पर्य नहीं है कि...बंदा कोई ना कोई काम करता हो या काम के चक्कर में किसी ना किसी हिल्ले से लगा हो अर्थात व्यस्त रहता हो बल्कि हमारे यहाँ कामकाजी का मतलब सिर्फ और सिर्फ ऐसे व्यक्ति से है जो अपने काम के ज़रिए पैसा कमा रहा हो। ऐसे व्यक्ति जो किसी ना किसी काम में व्यस्त तो रहते हों लेकिन उससे धनोपार्जन बिल्कुल भी ना होता हो तो उन्हें कामकाजी नहीं