दह--शत - 27

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दह--शत [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] एपीसोड ---27 अब वह नोट कर पाती है, अक्सर लंच के समय या कभी-कभी सुबह सात बजे इंटरनल फ़ोन पर एक रिंग आती थी अब वह रिंग आना बंद हो गई है। ऐसा फ़ोन कविता के यहाँ नहीं है। पाँच-छः दिन बाद धीरे-धीरे दोनों का तनाव हल्का होता है तो वह फँसे गले से अभय से कहती है, “अभय ! मेरा शक ठीक था।” “ कौन सा?” “कविता के खेल में बबलू जी का पूरा-पूरा हाथ है। कविता ने ‘इज़ी मनी’ का रास्ता बबलूजी को दिखाया है।” “क्या बक रही हो? कोई पति ऐसा कर