गवाक्ष - 23

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गवाक्ष 23== कॉस्मॉस पीड़ा से भर उठा था किन्तु अब उसे अपना सफ़र आगे बढ़ाना था। सत्यनिधि भीतर से भीग उठी, उसने आगे बढ़कर कॉस्मॉस को आलिंगन में ले लिया, उसके नेत्रों में अश्रुकण टिमटिमा रहे थे। कॉस्मॉस के लिए यह एक और नवीन, संवेदनपूर्ण अनुभव था। कई पलों तक वह एक कोमल सी संवेदना से ओत -प्रोत निधि से चिपका रहा । यमराज के मानस-पुत्रों में इस प्रकार की संवेदना ! कुछ पल पश्चात वह निधि से अलग हुआ और हाथ हिलाते हुए पीछे मुड़ -मुड़कर देखते हुए उसकी दृष्टि से ओझल हो गया । कॉस्मॉस के मन में एक अजीब प्रकार का आलोड़न चल रहा था। मन में कहीं कुछ