राम रचि राखा - 6 - 1

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राम रचि राखा (1) तुम यहाँ बैठकर लील रहे हो…! उधर बछड़ा पगहा छुड़ाकर गाय का सारा दूध पी गया...। आँगन का दरवाजा भड़ाक से खुला और भैया की कर्कश आवाज़ पिघले शीशे की तरह मुन्नर के कानों में उतर गयी। हाथ का कौर थाली में ही ठिठक गया। खेत से लौटे थे भैया, फरसा अभी भी हाथ में ही था। खड़ी दोपहर थी। सूर्यदेव अंगार बरसा रहे थे। आँगन के पूर्वी तरफ थोड़ी सी छाया, जो बुढ़वा नीम की डालियों के आँगन में झुक जाने के कारण थी, वहीं बैठ कर मुन्नर भोजन कर रहे थे। अचानक भैया की