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राम रचि राखा - Novels
by Pratap Narayan Singh
in
Hindi Moral Stories
दोपहर हो चुकी थी। ध्रुव को सुलाकर मैं आफिस के लिए तैयार होने लगी थी। शान्ति खाना बना रही थी। तभी कालबेल बजा। कौन आ गया इस समय...सोचते हुए मैने दरवाजा खोला।
तीन साल बाद अचानक अनुराग को देखकर मेरे पैर वहीं जम से गये। आँखें खुली रह गयीं। पिछले तीन सालों से जो क्रोध, क्षोभ और पीड़ा हिमखंडों सी मन में जमी हुई थी, इन पलों की छुवन पाकर तरल हो गई और उसने आँखों की पुतलियों को ढँक लिया। सामने सब कुछ धुँधला हो गया। इससे पहले कि आँसू पलकों की सीमा लाँघ पाते, मैंने उन्हे वापस अन्दर धकेल दिया।
राम रचि राखा अपराजिता (1) दोपहर हो चुकी थी। ध्रुव को सुलाकर मैं आफिस के लिए तैयार होने लगी थी। शान्ति खाना बना रही थी। तभी कालबेल बजा। कौन आ गया इस समय...सोचते हुए मैने दरवाजा खोला। तीन साल ...Read Moreअचानक अनुराग को देखकर मेरे पैर वहीं जम से गये। आँखें खुली रह गयीं। पिछले तीन सालों से जो क्रोध, क्षोभ और पीड़ा हिमखंडों सी मन में जमी हुई थी, इन पलों की छुवन पाकर तरल हो गई और उसने आँखों की पुतलियों को ढँक लिया। सामने सब कुछ धुँधला हो गया। इससे पहले कि आँसू पलकों की सीमा लाँघ पाते, मैंने उन्हे वापस
राम रचि राखा अपराजिता (2) तीसरे दिन, जब मैंने ऑफिस में अपना मेल बॉक्स खोला तो देखा अनुराग का एक मेल था। सब्जेक्ट में "गुड मोर्निंग" लिखा था- हेलो वाणी! कैसी हो? उम्मीद करता हूँ कि घर पर डांस ...Read Moreकरती होगी। आज मैंने इंटरनेट से सालसा और चा चा चा के कुछ म्यूजिक डाउनलोड किए। मुझे लगता है कि इससे मुझे घर पर प्रैक्टिस करने में मदद होगी। तुम्हें भी भेज रहा हूँ। सच कहूँ, मैंने डांस क्लास ज्वाइन तो कर लिया था लेकिन आश्वस्त नहीं था कि कितने सप्ताह रुक पाउँगा। लेकिन अब अच्छा लगने लगा है। तुम्हारा सहयोग मुझे प्रोत्साहित करता है। अब
राम रचि राखा अपराजिता (3) क्लास में बताया गया था कि अगले हप्ते से वर्कशॉप शुरू होगा। डेढ़ महीने के वर्कशॉप के बाद सिरीफोर्ट आडिटोरियम में लाइव परफोर्मेंस होना था। अगले हप्ते से क्लास का समय एक घंटे बढा ...Read Moreगया था। उस एक दिन के बाद से अनुराग का कोई मेल नहीं आया था। फिर भी जब अपना मेल बॉक्स खोलती थी तो अचेतन मन में कहीं एक प्रतीक्षा सी रहती थी। आजकल ऑफिस में काफी वर्कलोड बढ़ गया था और मुझे रात के बारह-एक बजे तक काम करना पड़ता था। शाम के पाँच बजने वाले थे। मैं ऑफिस में ही थी। काम में
राम रचि राखा अपराजिता (4) दिन बहुत तेजी से निकल रहे थे। दो सप्ताह कब बीत गये पता भी नहीं चला। इस बीच अनुराग से फोन पर और इ-मेल से बातचीत की आवृत्ति बढ़ गई थी। जिस भी रुप ...Read Moreवे मेरी जिन्दगी में थे, सुखद लग रहा था। शायद मुझे उनकी आदत सी पड़ने लगी थी। उस शनिवार को पंद्रह अगस्त था। डांस क्लास बंद था। सुबह के काम निबटाते-निबटाते बारह बज गये। हमलोग आज देर से भी उठे थे। छुट्टी के दिन प्रायः ऐसा ही होता था। हम देर तक सोते रहते थे। पूर्वी को जाना था। उसका कोई दूर का
राम रचि राखा अपराजिता (5) अगले दिन रविवार को डांस क्लास से जब बाहर निकले तो लान से गुजरते हुए एक बेंच पर हम बैठ गये। कुछ देर तक डांस स्टेप्स के बारे में बातें करते रहे। जब हम ...Read Moreको तैयार हुए तो उसने कहा, "अगर तुम्हारे नॉर्मल वोर्किंग आवर्स होते तो हम वीक डेज़ में भी कभी शाम को मिल सकते थे न।" मैं उनकी तरफ देखने लगी थी। ऐसा लगा कि जैसे कोई बच्चा बड़ी मासूमियत से चोकलेट माँग रहा हो। 'हम अब भी मिल सकते हैं...शाम को मैं कभी-कभी जब वर्क लोड ज्यादा न हो तो एक आध