नरोत्तम दास पाणेय ‘‘मधु’’ की मुक्त कृतियां

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नरोत्तम दास पाणेय ‘‘मधु’’ की मुक्त कृतियां काव्य के निर्बन्ध स्वरूप को मुक्तक कहा जाता है। ‘अग्निपुराण’ में ऐसे श्लोक को मुक्तक कहा गया है जो स्वयं में ही चमत्कारक्षम हो- मुक्तकं श्लोक एकैकश्चमत्कारक्षमः सताम्।1 आनन्दवर्द्धन ने रसाभिनिवेश की दृष्टि से मुक्तक काव्य पर जो विचार किया है उसकी व्याख्या करते हुए अभिनयगुप्त ने लिखा है कि मुक्तक पूर्वापर पक्षों से स्वतंत्र पद्य होता है। फिर भी उसमें रस निहित रहता है। उन्होंने मुक्तक में पौर्वापर्यं-निरपेक्षता और इस-चर्वणा को आवश्यक माना है।2 साहित्य दर्पणकार ने भी मुक्तक में मुक्तक को ही प्रधान माना है।3 उपर्युक्त परिभाषाओं के