‘रत्नावली एक अनुभूतिजन्य कृति’- डॉ. अरुण दुवे

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‘रत्नावली एक अनुभूतिजन्य कृति’ समीक्षक- डॉ. अरुण दुवे प्राध्यापक- हिन्दी वृन्दासहाय शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय डबरा, भवभूति नगर जिला ग्वालियर म. प्र. मो0-9926259900 ‘तुलसी, पत्नी का ताना सुनकर घर छोड़कर निकल पड़े।’’ इस वाक्य से शुरू श्री रामगोपाल भावुक जी का उपन्यास ‘रत्नावली’जैसे पूरी उपन्यास के कथानक का पूर्वाभास दे देती है बल्कि मैं तो कहूँगा कि जैसे नाटक में सूत्रधार सम्पूर्ण नाटक के वारे में शुरूआत में ही संकेत दे देता है वैसे ही उपन्यास का पहला वाक्य मानों सम्पूर्ण कथा और आने वाले घटनाक्रमों का संकेत दे देता है। इस तरह कथानक