ये भी एक ज़िंदगी - 2

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अध्याय 2 एक दिन हमारे पिताजी भाइयों को बुला कर कुछ कह रहे थे और मेरे जाते ही चुप हो गए। मुझे तो यह बात बुरी लगी। मैं रोने लगी। पिताजी को मेरा रोना बिल्कुल पसंद नहीं। वे समझाने लगे "रेणुका तुम बहुत सीधी हो। तुम मेरी प्यारी बेटी हो मैं जानता हूं। आज कोई सज्जन आने वाले हैं। मैं उनसे मिलना नहीं चाहता। मैं इन्हें कह रहा था वह आए तो ‘मैं घर पर नहीं हूं कह देना।’ "पर रेणुका तुम तो सीधेपन में कह देती हमारे पापा ने ऐसा कहा है कि वह घर पर नहीं हैं ।"अब