इंसानियत - एक धर्म - 19

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वकिल राजन पंडित अपने दफ्तर में पहुंच चुके थे । उनकी सहायक रश्मि उन्हें आज के दूसरे मुकदमों की जानकारी दे रही थी जिसके लिए उन्हें बहस करनी थी । अपनी कुर्सी पर बैठे वकिल पंडित जी संबंधित मुकदमे का अध्ययन कर रहे थे लेकिन उनके दिमाग में अभी भी असलम का ही चेहरा घूम रहा था । न जाने क्यों उन्हें लग रहा था कि इतनी भोली सी सूरत वाला सीधा सादा सा दिखने वाला यह इंसान इतना क्रूर कैसे हो सकता है कि किसी इंसान को ही पिट पिट कर मार डाले । यह तो किसी वहशी दरिंदे