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Insaaniyat - EK dharm by राज कुमार कांदु | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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इंसानियत - एक धर्म by राज कुमार कांदु in Hindi
Novels

इंसानियत - एक धर्म - Novels

by राज कुमार कांदु Matrubharti Verified in Hindi Fiction Stories

(190)
  • 57.1k

  • 216.8k

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राखी और रमेश अपनी कार में बैठे बड़ी तेजी से अपने घर की तरफ बढे जा रहे थे । शाम का धुंधलका फैलने लगा था और रमेश की कोशिश थी कि अँधेरा गहराने से पहले अपने घर पर सकुशल ...Read Moreजाये इसके लिए कार अपनी पूरी गति से कुशलता पूर्वक चला रहा था । अभी कुछ दिनों पहले इसी इलाके में घटी सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड से इलाके के सभी लोग दहल गए थे और दिन डूबने के बाद यह सड़क सुनसान हो जाती थी ।गाड़ी चलाते हुए वह मन ही मन राखी पर खीझ भी रहा था । मैडम

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इंसानियत - एक धर्म - Novels

इंसानियत - एक धर्म 1
राखी और रमेश अपनी कार में बैठे बड़ी तेजी से अपने घर की तरफ बढे जा रहे थे । शाम का धुंधलका फैलने लगा था और रमेश की कोशिश थी कि अँधेरा गहराने से पहले अपने घर पर सकुशल ...Read Moreजाये इसके लिए कार अपनी पूरी गति से कुशलता पूर्वक चला रहा था । अभी कुछ दिनों पहले इसी इलाके में घटी सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड से इलाके के सभी लोग दहल गए थे और दिन डूबने के बाद यह सड़क सुनसान हो जाती थी ।गाड़ी चलाते हुए वह मन ही मन राखी पर खीझ भी रहा था । मैडम
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इंसानियत - एक धर्म - 2
आलम की गिरफ्त से छूटने के लिए कसमसाती राखी की तरफ बढ़ते हुए मुनीर ने अपनी शंका आलम से साझा की ” लेकिन साहब ! चलो मान लिया कि मुंडा मर जायेगा तो सबूत नहीं रहेगा । लेकिन इस ...Read Moreका क्या करेंगे ? नहीं साहब ! मैं बाल बच्चे वाला आदमी हूँ । कहीं फंस गया तो ……..? ”उसकी बात सुनकर आलम एक ठहाका लगाकर हँस पड़ा ” अबे साले ! तू बेकार में पुलिस में भर्ती हो गया । न तेरे पास अकल है और न ही हिम्मत । अबे गधे मैं क्या कोई फंसने वाला काम करूँगा
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इंसानियत - एक धर्म - 3
सिपाही यादव के पकड़ने के बावजूद असलम उसके काबू में नहीं आ रहा था । वह यादव को धकेल कर लगातार आलम पर वार पर वार किये जा रहा था और जब वह उसे मारते मारते थक गया ...Read Moreहाथ से डंडा फिसल कर निचे गिर पड़ा । अब उसे अपनी सही स्थिति का भान हुआ । अब तक राखी खुद को संभाल चुकी थी । आलम की गिरफ्त से छूटते ही वह जमीन पर निढाल पड़े रमेश की तरफ भागी थी । अँधेरे में भागते हुए वह किसी पत्थर से ठोकर खाकर गिर पड़ी थी । लेकिन अपने दर्द
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इंसानियत - एक धर्म - 4
असलम ने सामने से आ रहे नायब दरोगा पाण्डेय जी को सलूट किया और उनसे कुछ कहने की इजाजत मांगी ।पांडेयजी ने मुस्कुराते हुए बताया ” मुझे अस्पताल के अधिकारी ने बताया कि एक कोई मारपीट का मामला अस्पताल ...Read Moreइलाज के लिए आया है । मैं इसीकी जांच के लिए यहाँ आया हूँ । तुम यहाँ पहले से ही मौजूद हो तो तुम्हें जरुर इस केस के बारे में कुछ जानकारी होगी । बताओ ! तुम इस केस के बारे में क्या बताना चाहते हो ? ”असलम ने कहना शुरू किया ” साहब ! मैं भी रामनगर थाने से
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इंसानियत - एक धर्म - 5
रामनगर से प्रताप गढ़ की तरफ जानेवाले राजमार्ग पर शहर से नजदीक ही उस जगह पर जहाँ रमेश और राखी के साथ यह भयानक वारदात हुयी थी पाण्डेय जी असलम और यादव के साथ अपने दल बल को लिए ...Read Moreगए थे । घटना स्थल पर अब तक कोई बदलाव नहीं आया था । शायद सड़क के किनारे मृत पड़े आलम के शव पर किसी की नजर नहीं पड़ी होगी ।पाण्डेय जी ने वहां रवाना होने से पहले ही अपने उच्चाधिकारियों को वारदात की सुचना दे दी थी और फिर इसी के साथ फोरेंसिक विभाग पुलिस फोटोग्राफर व एम्बुलेंस को
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इंसानियत - एक धर्म - 6
दरोगा श्रीवास्तव ने असलम की पूरी बात ध्यान से सुनी । एक सिपाही ने उसके पुरे बयान को कलम बद्ध किया और दरोगा के इशारे पर उस कागज पर असलम के हस्ताक्षर करा लिया ।साथ ही यादव का बयान ...Read Moreलिया गया । उसने भी असलम के बयान का समर्थन ही किया और आलम की धर्मान्धता का जमकर विरोध किया । इन दोनों सिपाहियों के बयान से यह तो साफ़ हो गया था कि मृतक द्वारा उकसाए जाने के खिलाफ भावावेश में असलम के हाथों आलम की हत्या हो गयी थी ।असलम के इकबालिया बयान और यादव द्वारा उसके बयान
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इंसानियत - एक धर्म - 7
सघन चिकित्सा कक्ष का दरवाजा खुला और उसमें से डॉक्टर मुखर्जी बाहर निकलते हुए अपने हाथों से दस्ताने खींचते हुए दयाल बाबू की तरफ देखते हुए बोले ” शायद रमेश आपका बेटा है । “ ” जी ! डॉक्टर ...Read More! ” दयाल बाबू बोले ” अब कैसा है मेरा बेटा ? “ डॉक्टर मुखर्जी ने अपनत्व से दयाल बाबू के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए बोला ” मैं आपकी मनोदशा को समझ सकता हूं लेकिन आपको निराश होने की कोई जरूरत नहीं है । शुक्र है भगवान का कि लाठी की मार का असर उसके दिमाग तक नहीं पहुंचा है
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इंसानियत - एक धर्म - 8
दयाल बाबू की बातें सुनकर राखी को यह अंदाजा तो हो ही गया था कि उसके ससुर को उसका फैसला नागवार गुजर रहा है लेकिन उसे पता था इंसानियत की राह इतनी आसान भी नहीं होती । मुश्किलें तो ...Read Moreही सो वह अपनी सास सुषमाजी से बोली ” माँ जी ! बाबूजी यह क्या कह रहे हैं ? अब अगर मेरी वजह से उस बहादुर और भले सिपाही की जान बचती है तो इसमें हमारी सामाजिक मान मर्यादा कैसे कम हो जाएगी ? क्या इंसानियत की राह पर चलना गुनाह है ? क्या इंसानियत दिखाने की कीमत उस गरीब
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इंसानियत - एक धर्म - 9
राखी की बात सुनकर पांडेयजी थोड़ा चौंकते हुए से बोले ” क्या कह रही हो बेटा ? उसे कैसे बचा सकते हैं ? उसे बचाने के लिए मैं हर तरह से तुम्हारा सहयोग करूँगा । मैं नहीं चाहता कि ...Read Moreमें गलत सन्देश जाए । लोगों का इंसानियत पर से भरोसा ही उठ जाए । इंसानियत की रक्षा के लिए ही उसको बचाना जरूरी है । कहो मुझे क्या करना पड़ेगा ? “ राखी ने उनकी आंखों में झांकते हुए शांति से पुछा ” आप लोग आज ही असलम भाई को अदालत में पेश करोगे ? “ पांडेय जी ने जवाब दिया
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इंसानियत - एक धर्म - 10
बड़ी देर तक राखी के कानों में उसके दिमाग द्वारा की गई सरगोशी गूंजती रही और फिर अचानक वह एक झटके से उठी । ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई ठोस निर्णय ले चुकी हो लेकिन फिर अगले ...Read Moreपल रमेश के ख्याल ने उसके बढ़ते कदमों को जैसे थाम लीया हो । खौलते हुए पानी में जैसे किसीने ठंडा पानी मिला दिया हो । उसका सारा उबाल खत्म हो गया । हवा का साथ पाकर आसमान छूने का हौसला रखने वाले गुब्बारे का जैसे किसीने हवा ही निकाल दिया हो वैसे ही अब उसका सारा जोश उत्साह रमेश
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इंसानियत - एक धर्म - 11
” हाँ रमेश ! उस इंसानियत के पुजारी का नाम असलम ही है । ” राखी हैरान हो रहे रमेश के चेहरे को मासूमियत से देखते हुए बोली । ” यानी मुसलमान है वह सिपाही ? ” रमेश ...Read Moreचेहरे पर अभी भी अविश्वास के भाव थे । राखी के अधरों पर मुस्कान और गहरी हो गयी ” तुम्हारी कमी यही है रमेश ! तुम हर इंसान को धर्म का चश्मा लगाकर ही देखते हो और उसीके अनुसार उसके बारे में अपनी धारणा बना लेते हो । “ पीड़ा के भाव अब रमेश के चेहरे पर साफ झलक रहा था । साफ दिख
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इंसानियत - एक धर्म - 12
सुबह लगभग ग्यारह बज चुके थे जब राखी कचहरी परिसर में पहुंची थी । परिसर में लोगों की आवाजाही शुरू हो चुकी थी । कचहरी के बाहरी हिस्से में सड़क के किनारे बने छोटे छोटे अधकच्चे कमरों में चलनेवाले ...Read Moreनित खटखटाने वाले टाइप राइटरों की जगह अब कंप्यूटरों ने ले ली थी । लोग इन दुकानों के सामने खड़े अपना अपना काम होने की प्रतीक्षा में खड़े थे । अनमनी सी सुबह के बाद दिन चढ़ते ही अब कुछ लोग उत्साहित तो कुछ लोग सशंकित निगाहों से घूमते नजर आ रहे थे ।इन सभी दृश्यों का अवलोकन करती राखी
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इंसानियत - एक धर्म - 13
राखी पता नहीं कितनी देर तक यूँ ही बैठी रही और दिमाग के हवाई घोड़े दौड़ाती रही लेकिन उसे कोई संतोषजनक जवाब सूझ नहीं रहा था कि आखिर राजन अंकल असलम को कैसे बचा लेंगे ? तनाव की अधिकता ...Read Moreउसके सिर में दर्द शुरू हो गया । तब उसे ध्यान आया कि उसने तो अभी तक मुंह भी नहीं धोया था फिर चाय नाश्ता तो बहुत दुर की बात होती । अब उसे एक बार फिर रमेश की चिंता सताने लगी थी । हड़बड़ी में उठकर वह सघन चिकित्सा कक्ष में पहुंची लेकिन वहां रमेश को न पाकर वह चिंतित हो गयी
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इंसानियत - एक धर्म - 14
अस्पताल से कचहरी की तरफ बढ़ रही राखी के मन में विचित्र सा अंतर्द्वंद चल रहा था । बेचैनी स्पष्ट रूप से उसके चेहरे पर झलक रही थी । ‘ पता नहीं क्या होगा असलम का ? ‘ यही ...Read Moreउसे बेचैन किये हुए थी । तेज गति से चल रही ऑटो भी उसे काफी धीमी से चलती हुई प्रतीत हो रही थी । वह जल्द से जल्द राजन अंकल से मिलकर उनसे असलम की रिहाई सुनिश्चित कर लेना चाहती थी । लगभग पंद्रह मिनट बाद ही वह वकिल राजन पंडित के दफ्तर में बैठ उनसे एक ही बात का
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इंसानियत - एक धर्म - 15
असलम से मिलकर राखी के साथ वकिल साहब पुनः अपने दफ्तर में लौट आये जो कचहरी से ही लगा हुआ था । हवलदार ने उन्हें बताया था कि असलम को लगभग दो बजे अदालत में पेश किया जाएगा ...Read Moreसे उसे रिमांड पर लिया जाएगा ।जैसा कि सभी पाठकों को ज्ञात होगा ही भारतीय कानून के अनुसार किसी भी आरोपी या मुजरिम को चौबीस घंटे से अधिक समय तक किसी भी पुलिस चौकी या पुलिस स्टेशन में पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता । चौबीस घंटे के अंदर हिरासत में लिए गए मुजरिम को अदालत में पेश करके उसके
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इंसानियत - एक धर्म - 16
अदालत कक्ष में फैला सन्नाटा और गहरा गया था । सबकी निगाहें सरकारी वकिल महाजन की तरफ लगी थीं और कान उनके जवाब की प्रतीक्षा कर रहे थे । अपनी जगह पर खड़ा होते हुए महाजन ने झुककर जज ...Read Moreका अभिवादन किया और कहना शुरू किया ” योर ओनर ! भारतीय कानून व्यवस्था के इस गौरवशाली इतिहास में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ जब किसी हत्या के मुजरिम के लिए किसी वकिल द्वारा उसकी पहली ही पेशी में जमानत की अर्जी दी गयी हो । और जब यह अर्जी देनेवाला राजन पंडित जैसा काबिल वकिल हो तो फिर
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इंसानियत - एक धर्म - 17
वकिल राजन पंडित की दलीलें सुनकर दर्शकों में से कुछ हैरान तो कुछ उत्साहित हो रहे थे । लोगों में कानाफूसी शुरू हो चुकी थी । सुगबुगाहट की आवाज पर गौर करते हुए माननीय जज साहब एक बार फिर ...Read Moreलकड़ी का हथौड़ा घनघना बैठे ” आर्डर आर्डर ! ” और फिर पंडित जी से मुखातिब हुए ” now you may proceed advocate pandit please . ” वकिल राजन पंडित ने शालीनता से thank you my lord . कहते हुए आगे कहना जारी रखा ” योर ओनर ! जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं पुलिस के पास अब
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इंसानियत - एक धर्म - 18
अदालत कक्ष से जज साहब के बाहर जाते ही कक्ष में खुसर पुसर शुरू हो गयी । पत्रकारों में जैसे नई जान आ गयी । सभी बाहर की तरफ दौड़ पड़े अपनी अपनी यूनिट की तरफ और पूरे मनोयोग ...Read Moreदर्शकों तक ब्रेकिंग न्यूज़ पहुंचाने की कोशिश करने लगे । खबर थी भी बड़ी खास ! शीशे की तरह साफ दिखाई देनेवाले केस को वकिल राजन पंडित ने अपने दमदार दलीलों से पलटवा दिया था । इधर राखी के साथ बैठी रजिया की आंखें खुशी से छलक पड़ी । भावातिरेक में वह राखी के कदमों में झुक ही जाती कि
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इंसानियत - एक धर्म - 19
वकिल राजन पंडित अपने दफ्तर में पहुंच चुके थे । उनकी सहायक रश्मि उन्हें आज के दूसरे मुकदमों की जानकारी दे रही थी जिसके लिए उन्हें बहस करनी थी । अपनी कुर्सी पर बैठे वकिल पंडित जी संबंधित मुकदमे ...Read Moreअध्ययन कर रहे थे लेकिन उनके दिमाग में अभी भी असलम का ही चेहरा घूम रहा था । न जाने क्यों उन्हें लग रहा था कि इतनी भोली सी सूरत वाला सीधा सादा सा दिखने वाला यह इंसान इतना क्रूर कैसे हो सकता है कि किसी इंसान को ही पिट पिट कर मार डाले । यह तो किसी वहशी दरिंदे
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इंसानियत - एक धर्म - 20
मंद मंद मुस्कुराते हुए वकिल राजन पंडित ने रहस्योद्घाटन किया ” असलम की जमानत के पैसे जमा हो गए हैं । बस ! वो अभी रसीद लेकर आता ही होगा । ”राखी अचानक से चौंक गयी ” पैसे जमा ...Read Moreगए हैं ? किसने दिए ? और ये ‘वो ‘ कौन है ? ”” रिलैक्स रिलैक्स बेबी ! अभी तुम्हारे हर सवाल का जवाब मिल जाएगा । बस थोड़ी धीरज रखो । सुनो ! अदालत कक्ष से बाहर आते हुए ही तुम्हारे पिताजी का फोन आया था । तुम्हारे बारे में जानना चाहते थे । यहां की पूरी खबर जानकर
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इंसानियत - एक धर्म - 21
असलम के कमरे में दाखिल होते ही रजिया कुर्सी से उठकर खड़ी हो गयी । जबकि असलम ने आते ही दरोगा पांडेय जी को आदतन सैलूट किया । मुस्कुरा कर उसका अभिवादन स्वीकार करते हुए पांडेयजी ने उसे कुर्सी ...Read Moreबैठने का आग्रह किया । रजिया के उठकर खड़े होने से खाली हुई कुर्सी पर बैठते हुए असलम ने पांडेय जी को धन्यवाद अदा किया । बिना कुछ कहे पांडेय जी ने एक फाइल खोली और उसमें से कोई कागज निकालकर उसपर असलम से हस्ताक्षर करने के लिए कहा । असलम ने बिना कुछ कहे हस्ताक्षर कर दिया लेकिन रजिया की
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इंसानियत - एक धर्म - 22
थाने के बाहर पत्रकारों की भीड़ जुट चुकी थी औऱ इसी वजह से मुफ्त के तमाशबीनों की भीड़ भी बड़ी संख्या में जमा हो गयी थी ।राखी की बात का जवाब देने की कोशिश कर रहा असलम अंदर घुस ...Read Moreपत्रकारों की टीम से खुद को बचाता बाहर बढ़ा लेकिन बाहर लोगों और मीडिया की भीड़ देखकर घबरा कर फिर से अंदर आ गया । अंदर आये हुए पत्रकार ने कमरे से दरवाजे से ही लाइव रिपोर्टिंग शुरू कर दी ‘ अभी अभी खबर मिली है कि आलम हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त हवलदार असलम को जमानत मिल गयी है औऱ
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इंसानियत - एक धर्म - 23
घटनास्थल से फरार होकर मुनीर पैदल ही अपने गांव की तरफ चल दिया था जो वहां से तकरीबन सात आठ किलोमीटर दूर एक देहात में था । अपनी नौकरी के सिलसिले में वह रामपुर थाने के करीब ही एक ...Read Moreकिराये पर लेकर रहता था । कभी कभार छुट्टी मिलने पर अपने गांव हो आता । सितारों की मद्धिम रोशनी में चलते हुए कच्चे रास्ते पर कभी कभी ठोकर खाकर लड़खड़ाता और फिर संभलते हुए आगे बढ़ना जारी रखता । चलते चलते कभी कभार पिछे भी मुडकर देख लेता और फिर किसी के पीछे आने की शंका निर्मूल समझकर अपने
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इंसानियत - एक धर्म - 24
थोड़ी देर बाद चरमराहट की आवाज के साथ ही मुनीर के घर का दो पल्लों वाला दरवाजा खुल गया । सामने ही शबनम खड़ी थी । हाथों में पकड़ी लालटेन ऊंची करते हुए आगंतुक को देखने का प्रयास कर ...Read Moreथी जो साये की शक्ल में उसके सामने खड़ा था । उसकी परेशानी को भांप कर मुनीर बोल उठा ” अरे बेगम ! ये मैं हूँ ! मुनीर ! ”उसकी आवाज पहचानकर शबनम ने राहत की सांस ली फिर भी उलाहना देते हुए बोली ” हाय रब्बा ! शुक्र है तुम हो ! रात के इस समय भला कौन कुंडी
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इंसानियत - एक धर्म - 25
और फिर काफी उहापोह के बाद मुनीर ने फैसला कर लिया और शबनम से मुखातिब होते हुए बोला ” तुम बेवजह चिंता कर रही हो बेगम ! तुम्हारे होते हुए भला मुझे क्या होने लगा ? अब तुम तो ...Read Moreही हो मैं जिस विभाग में हूं उसमें खतरों से दो चार तो होना ही पड़ता है । बस यूं ही एक वाकया हो गया था , यहीं पास में ही , तो सोचे चलो लगे हाथ अपनी बेगम से मिल आते हैं । ”अब शबनम भला क्या कहती ? लेकिन मुनीर की बात सुनकर वह संतुष्ट नहीं हुई थी
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इंसानियत - एक धर्म - 26
जब शबनम की नींद खुली , दिन काफी चढ़ चुका था । पलंग के सामने ही दीवार पर लगी घड़ी पर उसकी नजर गयी । सुबह के सात बज रहे थे । सूर्य की सुनहरी किरणें खिड़की की जाली ...Read Moreछनकर सीधे उसके चेहरे पर नृत्य कर रही थीं । आंखों में भरपूर नींद होने के बावजूद उसे उठना ही पड़ा था ।दरअसल रात उसे नींद ही नहीं आयी थी । ढेर सारे विचार उसके कानों में शोर मचा रहे थे और करवटें बदलते ही उसकी पूरी रात गुजर गई थी । तकती आंखों से छत को घूरते घूरते वह
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इंसानियत - एक धर्म - 27
सुबह के लगभग आठ बज चुके थे जब बस प्रतापगढ़ के सरकारी बस अड्डे में घुसी थी । मुनीर बस अड्डे से बाहर की तरफ निकला । सिर पर गमछा बांधे वह एक देहाती जैसा ही लग रहा था ...Read Moreबस के खलासी व यात्रियों में से भी उसे कोई पहचानने वाला नहीं मिला था इस बात की उसे बेहद खुशी हो रही थी । अपनी योजना के मुताबिक अब उसे रात के हादसे के बारे में सही वस्तुस्थिति का पता लगाना था । बस अड्डे के बाहर एक पुस्तक विक्रेता की दुकानपर ताजे अखबार भी बेचने के लिए रखे
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इंसानियत - एक धर्म - 28
दरवाजे पर खड़े पांडेय जी को देखते ही उनके सम्मान में अपने दुपट्टे से सिर को ढंकते हुए शबनम ने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया ” आइये ! आइये ! साहब ! अंदर आ जाइये । ” और फिर ...Read Moreकिनारे हटकर उनके अंदर आने का इंतजार करने लगी । चूंकि वह पांडेय जी को पहले से ही पहचानती थी उन्हें देखकर उसे कुछ राहत महसूस हुई थी । पांडेय जी ने दोनों सिपाहियों को बाहर ही रुकने का इशारा किया और अंदर बिछे खटिये पर बैठते हुए शबनम की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगे । उनकी नजरों से
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इंसानियत - एक धर्म - 29
तरह तरह के कयास लगाते रामु काका पांडेय जी के साथ पेड़ के नीचे छांव में खड़े थे । चंद समय में पांडेयजी ने पूरी हकीकत ज्यों की त्यों रामु काका के सामने बयान कर दी थी । पूरी ...Read Moreसुनने के बाद रामु काका ने निराशा भरे स्वर में कहा ” वैसे साहब ! आप कह रहे हैं तो ठीक ही होगा लेकिन हमारा मन यह कभी नहीं मान पायेगा कि मुनिरवा ने ऐसा करने का कोशिश किया होगा जैसा आप बता रहे हैं । अब हकीकत तो वही बता पायेगा । …… ”अपनी बात को समर्थन मिलता नहीं
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इंसानियत - एक धर्म - 30
सिपाहियों ने आकर पांडेय जी को सलूट किया । हल्के से गर्दन हिलाकर पांडेय जी मुनीर के घर से बाहर निकल कर थोड़ी दूर जाकर रुक गए । उनके पीछे दोनों सिपाही भी थे । आसपास कोई भी न ...Read Moreयह देखकर पांडेय जी बोले ” कहो ! क्या खबर लाये हो ! कुछ पता चला ? ”” साहब ! गांव में हमने कई लोगों से पूछताछ की ,मुनीर का पता जानना चाहा लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया । उसके रिश्तेदारों के बारे में भी किसीने नहीं बताया । सबने एक ही बात कही यह छोटे पर से ही
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इंसानियत - एक धर्म - 31
राखी से विदा लेकर असलम और रजिया सीधे अपने गांव पहुंचे थे । उनका गांव रामपुर शहर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित था । असलम जब गांव पहुंचा शाम का धुंधलका छाया हुआ था । गांव में पूरी ...Read Moreछाई हुई थी लेकिन असलम के घर के सामने कुछ गांववालों की भीड़ जमा हुई थी । असलम के पहुंचते ही गांव के मुखिया रहमान चाचा ने असलम को गले से लगा लिया और भर्राए स्वर में बोले ” कैसा है बेटा अब तू ! तेरी गिरफ्तारी की खबर ने तो जान ही निकाल दी थी लेकिन अभी थोड़ी ही
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इंसानियत - एक धर्म - 32
असलम मानो रजिया के जाने का इंतजार ही कर रहा था । उसके जाते ही असलम पूरे जोश में बोला ” बोलिये रहमान चाचा ! आप खामोश क्यों हो गए ? जवाब नहीं है शायद आपके पास । मैं ...Read Moreहूँ रहमान चाचा ध्यान से सुनिए । सबसे पहले अल्लाह ने यह पूरी कायनात बनाई । फरिश्ते भी थे जो रात दिन अल्लाह के सजदे , इबादत किया करते थे लेकिन फरिश्तों को कायनात से या इस दुनिया से क्या लेना देना ? और तब अल्लाह ताला ने इस पूरी दुनिया पर हुकूमत करने के लिए इंसान को पैदा किया
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इंसानियत - एक धर्म - 33
” गलत कह रही है तू बदजात लड़की ! किसी इस्लामी जानकार ने उस क़ानून का इस्तकबाल नहीं किया । खुदा के कहर से डर नाफरमान लड़की ! तुझे इल्म भी है तू क्या फरमा रही है ? खुदा ...Read Moreशान में कोई भी गुस्ताखी यह खुदा का नेक बंदा सहन नहीं कर पायेगा । खुदाई इबारतें जो हमारे कुरान ए पाक में लिखी गयी हैं वो खुदा का हुक्म है इस दुनिया में रहनेवालों के लिए और वही फर्ज है इस दुनिया के हर सच्चे मुसलमान के लिए । हमारे जीने के सलीके हजारों साल पहले खुदावंद करीम अल्लाहताला
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इंसानियत - एक धर्म - 34
अचानक खांसी आ जाने की वजह से असलम की बात अधूरी रह गयी थी । कुछ देर खांसने के बाद असलम थोड़ा सामान्य हो पाया था । उसकी आंखें सुर्ख हो गयी थीं । रजिया भागते हुए जाकर पानी ...Read Moreआयी थी । पानी का गिलास असलम के होठों से लगाते हुए बोली ” या अल्लाह ! ये अचानक आपको क्या हो गया ? अब आप ठीक तो हैं ? ” उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं ।आंखें बंद कर खामोशी से थोड़ा पानी हलक के नीचे उतारने के बाद असलम ने रजिया को सब ठीक
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इंसानियत - एक धर्म - 35
असलम का इशारा पाकर रजिया घर में चली गयी थी । असलम ने क्रोध से दहकते हुए बांगी साहब से मुखातिब होते हुए अपना कहना जारी रखा ” बांगी साहब ! दुनियावी लोगों को इस्लाम का सबक सिखाने के ...Read Moreहजरत मोहम्मद साहब ने अपने शागिर्दों व इस्लाम व अल्लाह में ईमान लानेवाले मोमिनों को जीने के कुछ सलीके बताये जिसे हदीस कहा जाता है । इसमें मोमिनों को अपने ईमान और आमाल के बारे में विस्तार से बताया गया है । इन्हीं हदीसों में जिहाद का भी जिक्र है लेकिन इसमें जिहाद के मायने वह नहीं लिखा है जो
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इंसानियत - एक धर्म - 36
असलम ने बांगी साहब की चीख और दलीलों से प्रभावित हुए बिना कहना जारी रखा ” बांगी साहब ! यह आप नहीं आपका कट्टरपन बोल रहा है । पूरी दुनिया जानती है कि वह एक वहशियाना हरकत थी जिसे ...Read Moreवहशी दरिंदों ने मिलकर अंजाम दिया था । ऐसी हरकतें और भी आये दिन होते रहती हैं लेकिन ये आप कब समझोगे कि वो लोग जो इस तरह के वहशियाना हरकतों को अंजाम देते हैं वो न हिन्दू हो सकते हैं न मुसलमान । वो सिर्फ और सिर्फ एक वहशी ,एक दरिंदा , एक जानवर हो सकता है । हमारे
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इंसानियत - एक धर्म - 37
असलम ने रजिया के हाथ से पानी का गिलास थामते हुए रहमान चाचा की तरफ देखा । उनके चेहरे के भाव बदले हुए थे । वह उनके चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करते हुए पानी पीने लगा ...Read Moreअचानक रहमान चाचा की गंभीर आवाज फिजां में गूंज उठी ” तुम सही कह रहे हो बेटा ! मैं ही भटक गया था । भुल गया था कि एक और एक मिलकर दो नहीं ग्यारह होते हैं । तुमने मेरी आँखें खोल दीं । उस दिन अगर नारंग साहब ने मेरे बेटे आमिर को समय से अस्पताल नहीं पहुंचाया होता
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इंसानियत - एक धर्म - 38
मुनीर बड़ी देर तक उस उद्यान की मखमली घास पर बैठा पुलिस की गिरफ्त में आने से बचने के उपाय सोचता रहा । वह कई योजनाओं पर विचार कर चुका था लेकिन उसे अपनी हर योजना में कोई न ...Read Moreखामी नजर आ रही थी । अंततः उसने काफी देर की सोच विचार के बाद यह तय किया कि सबसे पहले इस शहर से सही सलामत निकल लिया जाए ।उद्यान से निकलकर वह एक बार फिर सड़क पर आ गया और अनायास ही उसके कदम एक तरफ मुड़ गए । दिन के ग्यारह ही बजे होंगे लेकिन सूरज एकदम सिर
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इंसानियत - एक धर्म - 39
मुनीर ने अंदर शौचालय का दृश्य देखकर अपना सिर धुन लिया । अंदर उस छोटी सी जगह में भी पांच आदमी घुसे हुए थे । अभी मुनीर ने कुछ कहा भी नहीं था कि अंदर से एक दुबले पतले ...Read Moreसे अधेड़ आदमी ने बड़े कड़क लहजे में कहा ” ऐ भाई ! क्यों परेशान कर रहा है ? दिख नहीं रहा जरा भी जगह नहीं है । जा ! और कहीं जुगाड़ कर ले ! ”मुनीर का जी तो किया कि उसे कस कर एक तमाचा रसीद कर दे लेकिन खुद को संयत रखते हुए उसने आवाज में मिठास
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इंसानियत - एक धर्म - 40
भीड़ की अधिकता की वजह से मुनीर को आगे बढ़ने में दिक्कत हो रही थी जबकि उस यात्री की बात सुनते ही उस टीसी के तनबदन में आग लग गयी । बिफरते हुए बोला ” तो ठीक है बेटा ...Read Moreजब जेल में चक्की पिसोगे तब तुम्हें आटे दाल का भाव मालूम पड़ेगा । चलो ! स्टेशन आनेवाला है । ”आगे बढ़ते हुए मुनीर के दिमाग ने सरगोशी की ‘ अरे ! तू कहाँ जा रहा है ? अब वह टीसी तो खुद ही उतरने की तैयारी में है । अब वह तेरी कोई बात नहीं सुनेगा । बेहतर होगा
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इंसानियत - एक धर्म - 41
मुनीर को पुकारते हुए ‘ परी ‘ रिक्शे से काफी नीचे की तरफ झुक गयी थी । अपने ही उधेड़बुन में उलझे हुए मुनीर के कानों तक परी की चीख पहुंची थी लेकिन वह यह नहीं समझ सका था ...Read Moreवह बच्ची उसे ही पुकार रही है और वह भी पापा के संबोधन से । इधर रिक्शा तेजी से उसके सामने से होता हुआ मुनीर से विपरीत दिशा में गुजरा ही था कि उस बच्ची ने एक तेज चीख के साथ रिक्शे से नीचे छलांग लगा दी ।बच्ची की तेज चीखें व साथ ही रिक्शे के ब्रेक के साथ ही
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इंसानियत - एक धर्म - 42
मुनीर ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए समझदारी से काम लिया और उसे पुचकारते हुए दुलार करते हुए बोला ” नहीं मेरी नन्हीं परी ! अब मैं तुमको और तुम्हारी मम्मा को भी छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा ...Read More”इतने में रिक्शेवाले को डपटते हुए वह नेता सरीखा आदमी भी आकर मुनीर को सरकाकर रिक्शे पर बैठ गया । रिक्शेवाला भी अपनी सीट पर सवार होकर रिक्शे के पैडलों से जूझने लगा । रिक्शा तेजी से अस्पताल की तरफ बढ़ने लगी । साथ बैठे उस आदमी को देखकर नन्हीं परी ने नाक सिकोड़ लिया था । कुछ पल वह
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इंसानियत - एक धर्म - 43
मुनीर के इतना कहते ही परी ने खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार किया और मुंह फुलाकर बिसूरते हुए बोली ” ना मतलब ना ! अब आप हमें छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे । अब अगर आपने जाने की बात भी ...Read Moreतो हम रोने लगेंगे । ”” बेटा ! हमारा यकीन करो ! आप बिरजू अंकल के साथ घर चलो । हम बस पांच मिनट में ही घर पर आ जाएंगे । ” मुनीर किसी तरह उससे पीछा छुड़ाना चाह रहा था । लेकिन उसके मन का चोर उसका समर्थन नहीं कर पा रहा था जो अच्छी तरह जानता था कि
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इंसानियत - एक धर्म - 44
बिरजू और परी को बंगले के अंदर जाते हुए नंदिनी कुछ देर खड़ी देखती रही । मुनीर के दिमाग में विचारों के अंधड़ चल रहे थे । ‘ नंदिनी उससे क्या बात करना चाहती है ? जाने कैसा व्यवहार ...Read More? ‘ उसे ज्यादा सोचने का वक्त भी नहीं मिला । नंदिनी का बदला हुआ व्यवहार उसे हैरान करने के लिए काफी था । जहां अभी कुछ देर पहले उसके चेहरे पर खामोशी में भी एक दृढ़ता नजर आ रही थी अब उसके चेहरे पर कृतज्ञता के भाव नृत्य कर रहे थे ।” परी ने आपको ज्यादा परेशान तो नहीं
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इंसानियत - एक धर्म - 45
नंदिनी की भीगी पलकें किसी से छिपी नहीं थीं । फिर भी बरामदे की सीढ़ियां चढ़ते हुए उसने बड़ी सफाई से पलकों पर छलक आये आंसुओं को साड़ी के पल्लू से पोंछ दिया था और फिर संयत स्वर में ...Read Moreकहना शुरू किया ” अमर की पोस्टिंग काश्मीर में हुई थी । सिमा पर आए दिन आतंकियों से होनेवाली मुठभेड़ों की खबरें दिल को दहला देतीं । और फिर एक दिन वह मनहूस खबर भी आ गयी जिसने हमारी पूरी दुनिया ही उजाड़ दी । एक ही पल में सब कुछ तहस नहस हो गया । ” बरामदे में ही
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इंसानियत - एक धर्म - 46
किसी अनहोनी की आशंका से नंदिनी संशकित हो उठी थी लेकिन मन के भाव अपने अंतर में दबाते हुए नाराजगी दर्शाते हुए धीरे से कर्नल साहब से बोली ” बाबूजी ! आप को बाहर का कुछ भी खाने से ...Read Moreकरना चाहिए था । कहीं शुगर और रक्तचाप बढ़ जाता तो ?” नंदिनी से आंखें चुराते हुए कर्नल साहब ने तत्परता से कहा ” अरे बेटी ! नहीं ! मुझे कोई तकलीफ नहीं है । और फिर किसी की इच्छा का अनादर भी तो नहीं कर सकते । जब मैंने समोसे खाने की हामी भरी उस वक्त तुम्हें मोहन का चेहरा
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इंसानियत - एक धर्म - 47
तड़पते हुए कर्नल साहब अचानक फर्श पर गिर पड़े । उन्हें संभालने की कोशिश में नंदिनी भी फर्श पर लुढ़क पड़ी थी । अपनी भरपूर कोशिश के बावजूद वह कर्नल साहब के भारी भरकम शरीर को नहीं संभाल सकी ...Read More। अलबत्ता उसके प्रयासों की वजह से कर्नल साहब का सिर बड़े धीमे से फर्श से टकराया था । फर्श पर जल बिन मछली की भांति तड़पते कर्नल साहब को देखकर नंदिनी तड़प उठी । उठी और दौड़ते हुए हॉल में रखे फोन पर झपट पड़ी । जल्दी जल्दी नंबर डायल किया और फोन पर ही सुबक पड़ी ” हैल्लो
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इंसानियत - एक धर्म - 48
थोड़ी ही देर में वह भारी वाहन धीरे धीरे चलते बंगले के गेट के सामने आ गया । जिस तरह हवा के तेज झोंके से शांत पानी में भी लहर पैदा हो जाती है शांत खड़ा जनसागर भी लहर ...Read Moreमानिंद पीछे की तरफ हट गया । वाहन के पीछे के हिस्से में जो कि एक प्लेटफॉर्म जैसा प्रतित हो रहा था एक मंच बनाया गया था जो चारों तरफ से फूलों की लड़ियों से सुसज्जित किया गया था और उस मंच पर एक शव पेटिका थी जिसमें शहीद अमर का पार्थिव शरीर रखा हुआ था । ससम्मान लिपटा हुआ
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इंसानियत - एक धर्म - 49
बाहर नारों की आवाज शांत होते ही वह लीडर जैसी दिखनेवाली संभ्रांत महिला नंदिनी के करीब पहुंची और उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे दिलासा देती हुई बोली ” बेटी ! ईश्वर की इच्छा के आगे किसकी चलती है ...Read Moreतुम्हारा और अमर का साथ बस इतने ही दिनों का था । अब धीरज रखने के सिवा और किया भी क्या जा सकता है ? चलो ..उठो अब हमारे साथ चलो ! कुछ रीति रिवाज हैं जिन्हें हमें पूरा करना है । “ पता नहीं नंदिनी ने उसकी बात सुनी या नहीं लेकिन अगले ही पल वह रोती बिलखती भाग खड़ी
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