एकलव्य 19 - अंतिम भाग

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19 श्रीकृष्णा के अवसान में.... वेणु जीवन भर से धनुर्विद्या के सतत् अभ्यास में लगी रही थीं और अब भी वे उसी तन्मयता से अपना दैनिक नियम पूरा करती थीं। एक दिन उनके पुत्र निषादराज पारस ने पूछा , “माताजी, अभ्यास से कभी आपका मन नहीं भरा ?आप तो इस विद्या में बहुत आगे निकल गई है ।” “नहीं वत्स, मैं तो इस विद्या की साधारण छात्रा हूँ और छात्र-छात्राओं के लिए अभ्यास जीवन का क्रम कहलाता है। हां मैंने यह तय किया है कि जिस दिन मैं अपने सपनों को तुम्हारे माध्यम से साकार कर सकूँगी, उसी दिन