इंसानियत - एक धर्म - 28

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दरवाजे पर खड़े पांडेय जी को देखते ही उनके सम्मान में अपने दुपट्टे से सिर को ढंकते हुए शबनम ने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया ” आइये ! आइये ! साहब ! अंदर आ जाइये । ” और फिर एक किनारे हटकर उनके अंदर आने का इंतजार करने लगी । चूंकि वह पांडेय जी को पहले से ही पहचानती थी उन्हें देखकर उसे कुछ राहत महसूस हुई थी । पांडेय जी ने दोनों सिपाहियों को बाहर ही रुकने का इशारा किया और अंदर बिछे खटिये पर बैठते हुए शबनम की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगे । उनकी नजरों से