बैंगन - 34

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मेरे दोस्त इम्तियाज़ के जो बेटे यहां रह कर पढ़ते थे, एक दिन मुझसे मिलने आ पहुंचे। मेरे लिए अचरज की बात ये थी कि इन बच्चों को मेरा पता ठिकाना कहां से मिला? ओह, ये शायद तन्मय की वजह से हुआ हो, क्योंकि ये लड़के मुझसे मिलने भाई के बंगले पर नहीं आए थे बल्कि तब आए थे जब मैं तन्मय के पिता से मिलने उनके मंदिर में गया हुआ था। मैं सोचता था कि इम्तियाज़ के दोनों छोटे बेटे पढ़ने- लिखने में मन लगाने वाले हैं, केवल बड़ा ही इधर- उधर तफरी करने और इम्तियाज़ के अनुसार आवारा