बैंगन - Novels
by Prabodh Kumar Govil
in
Hindi Fiction Stories
गाड़ी रुकते ही मैं अपना सूटकेस उठाए स्टेशन से बाहर आया।
एक रिक्शावाला तेज़ी से रिक्शा घुमाकर मेरे ठीक सामने आ गया।
बोला- कहां चलिएगा?
मैंने कहा - मानसरोवर
- रखिए... रखिए सामान। उसने कहा
- क्या लोगे? मैंने पूछा।
- जो चाहें दीजिएगा। उसके ...Read Moreकहते ही मैंने सूटकेस रख दिया, फ़िर भी कहा- पैसे बताओ भई!
लेकिन ये क्या? उसने बिना कुछ बोले रिक्शा चला दिया और मेरे बैठने से पहले ही तेज़ी से भगाने लगा।
बैंगन ! गाड़ी रुकते ही मैं अपना सूटकेस उठाए स्टेशन से बाहर आया। एक रिक्शावाला तेज़ी से रिक्शा घुमाकर मेरे ठीक सामने आ गया। बोला- कहां चलिएगा? मैंने कहा - मानसरोवर - रखिए... रखिए सामान। उसने कहा - क्या ...Read Moreमैंने पूछा। - जो चाहें दीजिएगा। उसके ऐसा कहते ही मैंने सूटकेस रख दिया, फ़िर भी कहा- पैसे बताओ भई! लेकिन ये क्या? उसने बिना कुछ बोले रिक्शा चला दिया और मेरे बैठने से पहले ही तेज़ी से भगाने लगा। मैं हतप्रभ रह गया। रिक्शे वाले की आंखों पर चश्मा, कुर्ता- धोती की पोशाक, सिर पर मोटी सी लहराती चोटी...
( 2 ) मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि ये चल क्या रहा है, क्या ये दोनों मिले हुए हैं और इन्होंने मेरा सामान लूटने के लिए ये सब किया है? या फ़िर स्कूटर वाले लड़के ने सचमुच ...Read Moreमदद कर के इस चोर रिक्शा चालक से मेरा सामान बचाया है? मैं असमंजस में खड़ा ही था कि सामने वाले घर का गेट खोल कर मेरा भाई बाहर निकला। मैं आश्चर्य से उसे देखने लगा। तो हम घर तक ही अा पहुंचे थे। मैं यहां पहली बार आने के कारण मकान को पहचाना नहीं था। रिक्शा चालक और स्कूटर
( 3 ) महिला के भीतर जाते ही मैं भाई पर लगभग बिफर ही पड़ा। भाई चुपचाप मुंह नीचे किए मेरी गुस्से में कही गई बात सुनता रहा। मैंने कहा- वहां जाकर ये दूसरी शादी कर ली और यहां ...Read Moreको भनक तक नहीं लगने दी। भाभी और बच्चे कहां हैं? कहां छोड़ा उन्हें? ऐसे प्यारे - प्यारे बच्चे आख़िर किस बात की सज़ा पा रहे हैं? और वो हैं कहां? भाई उसी तरह सिर झुकाए बोला- चाय पीकर फ्रेश हो ले... फ़िर सब बताऊंगा तुझे आराम से, इसीलिए तो बुलाया है तुझे! मैं गुस्से से तमतमा उठा। लगभग चीख
( 4 ) अब मैं सचमुच बिफर पड़ा। मैंने बच्चों के सिर पर हाथ फेरा, भाभी को नमस्कार किया और फ़िर भाई की ओर कुछ गुस्से से देखते हुए मैं वाशरूम में चला गया और दरवाज़ा भीतर से बंद ...Read Moreलिया। मैं मन ही मन तिलमिला रहा था कि यहां आने के बाद से हर कोई मुझसे बात- बात पर मज़ाक कर रहा है। स्टेशन पर भाई के आदमियों ने मज़ाक किया, यहां घर आकर ख़ुद भाई ने। मैंने मन में ठान लिया कि अब मैं भी इन सब लोगों को मज़ा चखाऊंगा। वाशरूम में बैठ जाऊंगा और चाहे जो
तो प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के डॉक्टर की सीख के अनुसार मैंने सीट पर इत्मीनान से बैठे- बैठे भी काफ़ी समय निकाल दिया। कुछ देर तक मैं इसी तरह भीतर बैठा रहा। लेकिन कुछ देर बाद ही मुझे बेचैनी शुरू ...Read Moreगई। मुझे यह भी लगने लगा कि डॉक्टर साहब ने तो शांति से अपने मन के सभी भावों पर नियंत्रण रखते हुए वहां समय गुजारने की सलाह दी थी लेकिन मैं तो भारी उद्विग्नता के साथ यहां बैठा हूं। बल्कि एक तरह से इन सब लोगों को छकाने की प्रतिशोध भरी भावना लेकर बैठा हूं। रंजिश की भावना के साथ
मैंने घबरा कर जल्दी से दरवाज़ा खोला और मैं फुर्ती से बाहर आया। लेकिन बाहर का दृश्य देखते ही मेरे होश उड़ गए। जो सायरन अभी मुझे भीतर सुनाई दिया था वो पुलिस की गाड़ी का ही था और ...Read Moreको हमारे ही घर के पोर्च में खड़ी करके तीन पुलिस वाले मुस्तैदी से भीतर अा घुसे थे। मुझे देखते ही एक पुलिस अधिकारी ने तत्काल कमरे का दरवाजा इस तरह घेर लिया मानो मैं पुलिस को देखते ही कहीं भाग जाऊंगा और उसे किसी तरह मुझे रोकना है। पर मैं तो ख़ुद हैरान था कि ये सब क्या है।
नहीं- नहीं, इतनी गफलत कैसे हो सकती है, मैं कोई बच्चा थोड़े ही हूं कि ऐसे ही नासमझी में कुछ भी कहूंगा। कहता हुआ मैं अब ज़ोर से चिल्ला पड़ा - "नहीं, मुझे सच- सच बताओ, ये सब क्या ...Read Moreआप सब कहीं चले गए थे, यहां कोई नहीं था,एक दम पिनड्रॉप साइलेंस था, और पुलिस ही भीतर अाई थी, मैंने खुद पुलिस के साथ आपको ढूंढा था, पर आप में से कोई भी यहां नहीं था। आप सब न जाने कहां से अब निकल कर आए हो और मुझे मूर्ख बना रहे हो। सच- सच बताओ कि माजरा क्या
8 मेरा असमंजस बरकरार था। आख़िर ये माजरा क्या है? ये सब लोग पूरे इत्मीनान से बैठे हैं और कह रहे हैं कि ये सब घर में ही थे, पुलिस कैसे और कहां से आ सकती है, जबकि मैंने ...Read Moreअपनी आंखों से पुलिस को यहां आते और ख़ुद मुझसे ही तहकीकात करते हुए देखा। कोई भी गलत- फहमी आख़िर हो ही कैसे सकती है। मैंने मन ही मन सोचा कि मैं ख़ामोश होकर इन लोगों की बात स्वीकार कर लूंगा पर अपनी तहकीकात जारी रखूंगा और इस रहस्य का पता लगा कर ही रहूंगा। मैंने भाई और भाभी के
मैंने बड़ी आत्मीयता से दोनों की ओर हाथ जोड़े। मगर ये क्या? वो दोनों आश्चर्य से मेरी ओर देखने लगे। भाई ने कुछ अजीब सी नज़र से देखा, फ़िर बोला - तुमने किसी और को देखा होगा। ये तो ...Read Moreपहचान नहीं रहे। इनसे कहां मिले होगे तुम? ये तो दोनों मेरे दोस्त हैं। मैं एक क्षण को सकपकाया पर फ़िर मैंने थोड़ा जोर देकर उन दोनों से कहा - अरे, आपको याद नहीं, कल जब आप दोपहर में हमारे घर आए थे तब अकेला मैं ही तो वहां था। हम तीनों ने मिल कर ही तो भैया को ढूंढा
रात को घर आने के बाद सोते- सोते काफ़ी देर हो गई। घूम फ़िर कर सबका मूड अच्छा हो गया था। खूब बातें भी हुईं। बच्चों ने भी अपने विदेशी स्कूल के किस्से सुनाए। जब मैं सोने के लिए ...Read Moreमें आया तो सिर हल्का सा भारी हो रहा था। मेरे मन से उस उलझन का बोझ तो थोड़ा हल्का हो गया था जो घर में किसी के मुझ पर विश्वास नहीं करने से मुझ पर हावी थी पर उस अपमान की कसक बाक़ी थी जो सभी के सामने झूठा सिद्ध हो जाने से उपजी। मैं कमरे का दरवाज़ा थोड़ा
मैं वाशरूम से निकल कर आया और एक नैपकिन से हाथ पौंछता हुआ अपने चाय के कप की ओर बढ़ा। तभी न जाने क्या हुआ कि मैं पलट कर बिजली की तेज़ी से कमरे से निकल कर बाहर आया ...Read Moreबंगले के मुख्य गेट से निकल कर सड़क पर बेतहाशा भागने लगा। इस हड़बड़ी में मुझे ये भी पता न चला कि मैंने पैरों में चप्पल भी नहीं पहनी हुई है। दरअसल मैंने वाशरूम से निकल कर बाथरूम स्लीपर उतारे ही थे कि सामने मुझे चाय का कप हाथ में लिए हुए खड़ी भाभी दिखाई दीं। जबकि वाशरूम में जाते
अगले दिन मेरी पत्नी और मुझे भाई ने अपनी गाड़ी से ही ड्राइवर के साथ वापस भेज दिया। भाई और भाभी ने कहा कि जल्दी ही वे लोग भी बच्चों को लेकर हम लोगों से मिलने आयेंगे। भाभी ने ...Read Moreऔर बच्चों के लिए कुछ प्यारे उपहार और मिठाई भी दिए। मेरी जांच करने वाले डॉक्टर ने बताया कि मुझे कोई भी बीमारी नहीं है तथा मेरा मानसिक स्वास्थ्य भी बिल्कुल ठीक है। मैंने मेरी पत्नी से कहा कि उसने भाई- भाभी के सामने ये झूठ क्यों बोला कि मैं यहां भी "ऐसे" ही करता रहता हूं और घर में
मैंने एक बार फ़िर भाई के पास जाने का इरादा किया। लेकिन मुझे तत्काल ये ख्याल आया कि अगर मैंने अपनी पत्नी को ये बताया कि मैं भाई के पास जा रहा हूं तो पिछली बार की घटनाओं को ...Read Moreहुए वो मुझे जाने नहीं देगी। और अगर मैंने जाने की ज़्यादा ज़िद की तो हो सकता है कि वो भी साथ चलने की बात करे। उसे साथ में ले जाने में सबसे बड़ी परेशानी ये थी कि फ़िर मैं अपना मिशन आसानी से पूरा नहीं कर पाऊंगा। मैं तो केवल इसीलिए जाना चाहता था कि मुझे भाई के किसी
सुबह का समय था। बहुत जल्दी। वही घड़ी, जिसे पुराने समय में पुराने लोग "भिनसारे ही" कहा करते थे। मजे की बात ये है कि जब हम पर अंग्रेज़ों का राज था तब हम "भिनसारे" ही कहते थे पर ...Read Moreजब अंग्रेज़ सब कुछ हम पर ही छोड़ कर चले गए हैं, हम कहते हैं- अर्ली इन द मॉर्निंग! तो इसी मुंह- अंधेरे की वेला अर्ली इन द मॉर्निंग में एक बड़ा सा तांगा आकर एक आलीशान बंगले के बाहर रुका। तांगा बड़ा सा इसलिए दिखाई देता था कि तांगे में जुता अरबी घोड़ा बेहद मजबूत, हट्टा - कट्टा, कद्दावर
आप समझ ही गए होंगे कि क्या हुआ?यदि नहीं, तो चलिए मैं बता देता हूं। आपको बताना ज़रूरी है क्योंकि आप ही तो पूरी कहानी के दौरान साथ चल रहे हैं।तो जिस बंगले के बाहर सुबह के धुंधलके में ...Read Moreआकर रुका था वो और कोई नहीं बल्कि मेरे भाई का वही बंगला था जो विदेश से लौटने के बाद उन्होंने ख़रीदा था और जिसमें पिछले दिनों मैं जाकर भाई के परिवार से मिल कर आया था। और आपको तो मालूम ही है कि वहां मेरे साथ क्या- क्या अजीबो - गरीब घटनाएं घटीं तथा किस तरह मेरा अपमान करके
इस बार मैं इस शहर में पहली बार आने वाला अकेला इंसान नहीं था। फूल वाला वही युवक तन्मय मुझे लेने स्टेशन पर आया था। तन्मय मुझे तांगे में बैठा कर सीधा अपने घर ले गया। इस तांगे की ...Read Moreएक रोचक कहानी थी। तन्मय और उसके पिता यहां एक मंदिर के अहाते में बने छोटी- छोटी दो कोठरियों के मकान में रहते थे। ये आपस में सटी हुई कोठरियां बरसों पहले कभी इसी इरादे से मंदिर के पिछवाड़े बनवाई गई होंगी कि ये मंदिर की रखवाली करने वाले परिवार को रहने के लिए दी जा सकें। लेकिन अब ये
तो हुआ ये कि सब्ज़ी वाले की वो लड़की जिसके दहेज़ में तन्मय को तांगा पहले ही मिल गया था वो अचानक घर से भाग गई। उसी का नाम चिमनी था। अब बेचारा तन्मय उस भारी भरकम दहेज का ...Read Moreकरता? और दहेज़ को तो वो तब देखे न, जब उसे पहले पत्नी तो मिले। जब पत्नी ही नहीं मिली तो कैसा दहेज़, किसका दहेज़? इसीलिए बेचारा तन्मय भी घर छोड़ कर काम की तलाश में भाग गया और काम मांगता हुआ मेरे पास चला आया। ये थी सारी कहानी। अब मैं बेचारे को कोई नौकरी तो दे नहीं सका,
मैं दोपहर बाद हड़बड़ा कर मंदिर में पहुंचा तो पुजारी जी कुछ भक्तों को प्रसाद देने में व्यस्त थे। मुझे देखते ही पुजारी जी, तन्मय के पिता आरती की थाली एक ओर रखकर मुस्कुराते हुए मेरे करीब आए तो ...Read Moreआते ही चौंक गए। शायद मेरी परेशानी उन्होंने भी भांप ली थी। मैंने बिना किसी भूमिका के जल्दी जल्दी उन्हें बताया कि सुबह का गया हुआ तन्नू अब तक नहीं लौटा है जबकि अब तो चार बजने वाले हैं। पुजारी जी भौंचक्के होकर मेरी ओर देखने लगे। उन्हें तो शायद ये भी मालूम नहीं था कि तन्मय कहां गया था,
जैसे जैसे शाम गहराती जा रही थी मेरा मन डूबता जा रहा था। मुझे लग रहा था कि ऐसा न जाने क्या हुआ जो सुबह का गया हुआ तन्नू यानी तन्मय अभी तक वापस लौट कर नहीं आया। उसके ...Read Moreमंदिर से लौट आए थे और लड़के द्वारा बना कर रखे गए भोजन की थाली लेकर आंगन में खाना खा रहे थे। मैं उद्विग्न सा उनके पास बैठा हुआ था और मन ही मन डरा हुआ भी था। मुझे खाना बनाने वाले लड़के ने गर्म खाना उसी समय खिला दिया था और पुजारी जी का खाना रख कर वो चला
गहराती रात के साथ सन्नाटा बढ़ता गया पर न तांगा आया और न तन्मय। मेरा मन अब भीतर ही भीतर डरने सा लगा। आधी रात को मंदिर के वीरान से इलाक़े में एक अजनबी को घूमते देख कर किसी ...Read Moreअकारण कोई शंका न हो, यही सोच कर मैंने सीढ़ी दीवार से लगाई और मैं छत पर आ गया। बिस्तर पर लेट कर भी मैं घटना के बारे में ही सोचता रहा। रात के लगभग दो बजे होंगे तभी अचानक मैंने दीवार के पास कोई आहट सी सुनी और उसके साथ ही लकड़ी की सीढ़ी के गिरने की आवाज़ आई।
मुझे नींद के जोरदार झोंके आने के कारण मैंने पुजारी जी से चाय के लिए मना कर दिया और सीढ़ी यथास्थान लग जाने के बाद अब इत्मीनान से अपने बिस्तर पर आकर लेट गया। थोड़ी ही देर में मेरी ...Read Moreलग गई। मैं शायद दो तीन घंटे आराम से सोया। शायद और भी सोता रहता अगर नीचे से कलेजे को चीरने वाली ये आवाज़ मुझे नहीं सुनाई देती। मैं हड़बड़ा कर नीचे झांकने लगा तो मेरे होश उड़ गए। नीचे पुजारी जी ज़ोर - ज़ोर से किसी बच्चे की तरह रो रहे थे और आसपास दो - तीन लोग उन्हें
वह ज़ोर से हंसा, पर और किसी को हंसी से नहीं आई। तब किसी ने कहा- तेरा जोक बेकार गया बे! वह खिसिया कर रह गया। उसने तो टीवी में देखा था कि "दाग अच्छे हैं" सो उसी धुन ...Read Moreउसने भी कह दिया "गड्ढे अच्छे हैं"! किसी के न हंसने पर वो मायूस होकर खड़ा था कि पीछे से आकर साहब ने उसकी पीठ पर एक ज़ोर की धौल जमाई। कुछ धूल उड़ कर रह गई उसके कपड़ों से। ये सारा मज़ाक चल रहा था पुलिस थाने में। हवलदार दिनराज अपनी सफ़लता पर ख़ुश था, साहब का धौल इसी
भाई ने अपने पुलिस वाले मित्रों से कह कर तन्मय को तुरंत छुड़वा दिया और मामला रफा- दफा करवा दिया। वह घर पहुंच गया। मैं जानता था कि बेचारे निर्दोष तन्मय की कोई ग़लती न होने पर भी उसके ...Read Moreपिता उसे दिल से कभी माफ़ नहीं करेंगे और मौके बेमौके उसे जलील करते रहेंगे इसलिए उनकी ग़लत फहमी दूर करना हर हाल में ज़रूरी है। इसलिए मैं खुद उसके साथ उसके घर गया और पुजारी जी को सारी बात बताई कि किस तरह मेरी दुकान पर ही ग़लत फहमी होने से बेचारा लड़का बिना बात के फंस गया। सुनते
रात को एक ढाबे में खाना खाने के बाद मैं और तन्मय पुष्कर से निकल कर जाती उस वीरान सड़क पर बहुत देर तक घूमते रहे जो इन दिनों पर्यटकों की आमद कम हो जाने के चलते सुनसान सी ...Read Moreहो जाती थी। दोपहर यहां पहुंचने के साथ ही हमने इस क्षेत्र के लगभग ख़ाली पड़े हुए इन कॉटेज में एक कमरा ले लिया था और शाम तक पुष्कर के मंदिरों और बाज़ार की ख़ूब सैर की। मैं मेले या त्यौहार के दिनों में भी कई बार पुष्कर आ चुका था जब यहां बहुत भीड़ भाड़ रहती थी और सरोवर
दोपहर को हम लोग काफ़ी देर बाज़ार में चहल कदमी कर लेने के बाद कोई ऐसी जगह तलाश कर रहे थे जहां आराम से बैठकर खाना खा सकें। प्रायः किसी नई जगह जाने पर "अच्छी" जगह होने का पैमाना ...Read Moreहोता है कि जहां ज़्यादा लोग भोजन कर रहे हों वहां खाना बढ़िया ही होगा। हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता, कई बार सस्ता खाना मिलने से भी भीड़ लग जाती है। किसी किसी शानदार सी जगह पर लज़ीज़ खाना होने पर भी कम लोग जाते हैं क्योंकि वो जगह महंगी होती है। टूरिस्ट प्लेस पर तो ऐसा अक्सर होता है।
मुझे संदेह तो था ही, पर जब तक मैं इसकी सत्यता प्रमाणित न कर लूं, मैं किसी से कुछ कहना नहीं चाहता था। तन्मय ने मुझे बताया था कि जब भाई के बंगले पर उनकी नौकरानी से बात करते ...Read Moreकिसी के आ जाने पर लड़की ने उसे लगभग धकेल कर वाशरूम में बंद कर दिया तो वो बुरी तरह डर गया था। वो पल - पल कांप रहा था कि अब न जाने क्या होगा। क्या थोड़ी ही देर में घर के और लोगों के आ जाने के बाद उसे वहां से सुरक्षित निकल पाने का मौका मिलेगा? कहीं
सहसा बैठे - बैठे कुछ दिन पहले की बात मुझे याद आई जब घर पर पत्नी ने मुझसे कहा था- ज़रा एक अख़बार का काग़ज़ तो लाकर पकड़ा दो मुझे, देखो तो ये मिसरानी भी कैसे गीले से कपड़े ...Read Moreलगाकर रोटी रख गई है कैसरोल में! मैंने लापरवाही से एक पुराना अख़बार लेकर उसे पकड़ा दिया। मैं सोच रहा था कि अब वो अपने नाटकीय अंदाज में कहेगी, थैंक यू जी थैंक यू! ये उसकी पुरानी आदत है। पहले तो कोई भी घटिया से घटिया काम बता देगी, फ़िर धन्यवाद देगी, मानो कोई कर्जा उतार रही हो। लेकिन ये
वापस लौट कर मैंने बस से उतरते ही तन्मय को अच्छी तरह समझा दिया कि वो अब किसी भी तरह की चिंता न करे, वो अब मेरा कर्मचारी है, अभी वो एक सप्ताह के लिए अपने घर जाकर आराम ...Read Moreऔर फ़िर सप्ताह भर बाद मेरे पास आ जाए। मैंने उसे ये भी आश्वस्त कर दिया कि इस बीच उसका वेतन जारी रहेगा। मैंने उसे समझा दिया कि मैं उसे एक सप्ताह की सवैतनिक छुट्टी इसलिए दे रहा हूं क्योंकि मैं अब कुछ दिन भाई के बंगले पर उनके साथ ही रहूंगा। साथ ही मैंने उसे ये भी कह दिया
अगले ही दिन दोनों बातें बिल्कुल साफ हो गईं। एक तो मुझे ये पता चल गया कि भाई ने सचमुच तन्मय को न तो पहचाना है और न ही वो ये अनुमान लगा पाया कि तन्मय उन्हीं के घर ...Read Moreफूल बेचने आने पर गलती से उनके गोदाम वाले हिस्से में पहुंच जाने के कारण पकड़ा गया था। भाई तो ये ही समझ रहा था कि किसी लड़के के उनके गोदाम में घुस कर तांक- झांक करने के कारण वहां के कर्मचारियों ने उसे पकड़ा और पुलिस के हवाले कर दिया। और बाद में मेरे कहने पर भाई ने सोचा
दो दिन बाद मैं वापस अपने घर लौट गया। सबसे तल्ख़ और तीखी पहली ही प्रतिक्रिया तो मुझे मेरी पत्नी से सुनने को मिली, बोली- अबकी बार क्या गुल खिलाए? मैंने झेंप कर उसकी बात का अनसुना कर दिया ...Read Moreमां और बच्चे आकर मुझे घेर कर खड़े हो गए थे। - अबकी बार बहुत दिन लगाए बेटा... कहते हुए मां ने कुछ अविश्वास से देखा, क्योंकि जाते समय मैं उनसे कह गया था कि दुकान के लिए सामान खरीदने जा रहा हूं। बच्चे गौर से मेरे बैग की ओर देखने लगे। वो अच्छी तरह जानते थे कि दुकान के
इम्तियाज़ के तीन लड़के नज़दीक के एक बड़े शहर में पढ़ते थे। छोटे दोनों का मन तो सचमुच पढ़ने में लगता था पर बड़ा केवल उन्हें संभालने और माता - पिता की नज़र से ज़रा आज़ादी हासिल करने की ...Read Moreसे ही वहां था। तो इम्तियाज़ ने जिस खबर के नाम पर मेरा मुंह मीठा करवाया था वो भी कोई कम दिलचस्प नहीं थी। दरअसल इम्तियाज़ के बेटे ने एक घोड़ा ख़रीदा था। मिठाई तो मैंने ज़रूर उदरस्थ कर ली थी लेकिन मुझे ये नहीं पता चल सका था कि उस तेज़ी से बढ़ते- फैलते महानगर में इम्तियाज़ के साहबज़ादे
हम लोग भाई के बंगले की बड़ी छत से पतंग उड़ा रहे थे। भतीजा तो ग़ज़ब जोश में था क्योंकि सुबह से लगभग एक दर्जन पेंच काट कर उसने अपने हिस्से के आकाश में अपना एकछत्र सम्राज्य स्थापित कर ...Read Moreथा। आसपास से आकर जमा हुए जमघट के बीच मैं और भाभी भी मानो बच्चे ही बन गए थे। भाभी की रसोई से निकल कर तरह- तरह के पकवान आते ही जा रहे थे। भाई के शो रूम के दो- तीन नौकर भी इस मुहिम में हमारे साथ ही आ जुटे थे। पकौड़ों की गरमा- गरम भाप उड़ाती प्लेट छत
मुझे दोपहर को सोने की आदत बिल्कुल नहीं थी। इस कारण दोपहर बहुत देर तक ताश खेलने के बाद जब भाभी ने उबासियां लेना शुरू किया तो मैंने बच्चों को भी थोड़ी देर पढ़ने के लिए कह कर उनके ...Read Moreमें भेज दिया। मैं भी टीवी चला कर बैठ गया। चैनल बदलते ही बदलते मेरी नज़र एक समाचार पर पड़ी जिसमें सप्ताह भर के कुछ अजीबो- गरीब समाचार दिखाए जा रहे थे। एक बड़े शहर के भूतपूर्व राजघराने की अरबों रूपए की संपत्ति का बंटवारा हाल ही में न्यायालय द्वारा अपने फ़ैसले से किया गया था। कुछ साल पहले यहां
मेरे दोस्त इम्तियाज़ के जो बेटे यहां रह कर पढ़ते थे, एक दिन मुझसे मिलने आ पहुंचे। मेरे लिए अचरज की बात ये थी कि इन बच्चों को मेरा पता ठिकाना कहां से मिला? ओह, ये शायद तन्मय की ...Read Moreसे हुआ हो, क्योंकि ये लड़के मुझसे मिलने भाई के बंगले पर नहीं आए थे बल्कि तब आए थे जब मैं तन्मय के पिता से मिलने उनके मंदिर में गया हुआ था। मैं सोचता था कि इम्तियाज़ के दोनों छोटे बेटे पढ़ने- लिखने में मन लगाने वाले हैं, केवल बड़ा ही इधर- उधर तफरी करने और इम्तियाज़ के अनुसार आवारा
कितनी विचित्र बात थी। जब मैं भाई के विदेश से लौटने के बाद पहली बार उसके परिवार से मिलने के लिए ट्रेन से यहां आया था तो भाई के ही शो रूम में काम करने वाले दो लड़कों ने ...Read Moreज़बरदस्त मज़ाक किया था। एक रिक्शावाला बन कर मेरा सामान ले भागा था तो दूसरा मेरा ख़ैरख्वाह बन कर स्कूटर से रिक्शे का पीछा करते हुए मुझे यहां लाया था। लेकिन इस रिक्शा चालक बने हुए लड़के के पिता ने ही एक दिन मुझे ये दिलचस्प घटना सुनाई थी। लड़के के पिता को जब इस मज़ाक के बारे में पता
इस बार मैं जब भाई के घर से वापस अपने घर जाने लगा तो वही सब शुरू हो गया। भाभी ने घर के लिए खुद बना कर तरह- तरह की खाने की चीज़ें तो रखी ही, बच्चों और अम्मा ...Read Moreलिए बाज़ार से खरीद कर महंगे उपहार भी दिए। मेरी पत्नी के लिए एक सुंदर सी साड़ी भी लाकर रखी थी जो मुझे दिखाते हुए भाभी ने मेरे सामान में रखी। साड़ी रखते- रखते भाभी मज़ाक करना नहीं भूलीं। परिहास से बोलीं- ये मेरी देवरानी को देने की याद रखना, ऐसा न हो कहीं ऐसे ही पैक हुई रखी -
आपको आश्चर्य हो रहा है न? मैं इस तरह चोरों की तरह निकल कर क्यों भागा! घर में जो कुछ चल रहा था उससे न जाने क्यों, मुझे कुछ शंका सी होने लगी थी। लेकिन वाशरूम के भीतर घुस ...Read Moreजब मैंने उसके खुफिया स्विच को घुमाया तो कुछ नहीं हुआ। मैंने कई बार कोशिश की, मगर वाशरूम वैसे ही स्थिर बना रहा। तो क्या भाई ने इसका कनेक्शन हटवा कर इसे स्थिर बनवा लिया? लेकिन मैंने तो इस बारे में कभी किसी को कुछ बताया नहीं था। तो क्या भाई को अपने आप ही ये पता चल गया कि
टिफिन में इतना खाना था कि हम तीन लोगों के भरपेट खा लेने के बाद भी टिफिन पूरी तरह ख़ाली नहीं हुआ था। बैंगन का भरता अंगुलियों से चाट- चाट कर खा लेने के बाद भी बची एक पूड़ी ...Read Moreज़रा सी गोभी की सब्ज़ी लड़के ने टिफिन धोने से पहले एक कुत्ते को डाली। कुत्ता मानो तीन लोगों को खाना खाते देख आशा से भरा ही बैठा था, लड़के के ज़रा से पुचकारते ही जीभ निकालता दुम हिलाता चला आया। चार प्राणियों का उदर भरते ही मानो उस अजनबी यजमान की मनोकामना- पूर्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ। पुजारी जी
इस समय मैं सब भूला हुआ था। सुबह उठते ही मैंने न ब्रश किया था, न मुंह धोया था, न ठीक से लेट्रीन ही जा पाया था। और एक कप ठंडी सी चाय गटकने के अलावा मैंने कुछ खाया ...Read Moreन था। शायद यही कुछ परवेज़ के साथ गुज़रा हो। ये तो सुबह देर तक सोने वाला नई उम्र का बच्चा था। दोनों को ही उम्मीद थी कि चलो, किसी तरह फार्म हाउस पहुंच जाएं फ़िर आराम से मोटर पंप के नहर से बहते हुए पानी में नहाएंगे और कुछ ताज़ा नाश्ता खाने को मिलेगा। लेकिन जैसे ही मोड़ से
मैं पहले कभी इस तरह नहीं रोया था। मेरे आंसू लगातार इतनी देर तक कभी नहीं बहे। लेकिन अब परिस्थिति ही ऐसी थी कि और कोई चारा नहीं था। मैं पुलिस हिरासत में था। वैसे मुझे पूरा यकीन था ...Read Moreभाई वकील को लेकर जिस तरह भागदौड़ कर रहा था, उससे जल्दी ही वो मेरी ज़मानत करवा देगा और मुझे इस जीवन- घोंटू वातावरण से छुड़ा कर ले जाएगा। भाई जब हिरासत में मुझसे मिलने आया तब उसने मुझसे ऐसा कहा भी था। और भाई जो कहता था वो करता था। वह धीर - गंभीर और अपने में ही रमा