नैना- संजीव पालीवाल

  • 11.9k
  • 1
  • 2.4k

अगर बस चले तो अमूमन हर इनसान अपराध से जितना दूर हो सके, उतना दूर रहना चाहता है बेशक इसके पीछे की वजह को सज़ा का डर कह लें अथवा ग़लत सही की पहचान भरा हमारा विवेक। जो अपनी तरफ से हमें इन रास्तों पर चलने से रोकने का भरसक प्रयास करता है। मगर जब बात अपराध कथाओं की हो तो हर कोई इनके मोहपाश से बंधा..इनकी तरफ़ खिंचा चला आता है। भले ही वो कोई लुगदी साहित्य का तेज रफ़्तार उपन्यास हो अथवा कोई फ़िल्म या वेब सीरीज़।उपन्यासों की अगर बात करें तो बात चाहे 'इब्ने सफी' की हो