हिंदी कविता में जनचेतना

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काव्य मानव चेतना की एक स्वत: संभूत प्रवृत्ति है जिसका संबंध चेतना के अंतरंग से है। साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु वह समाज का सृष्टा निर्माता और प्रेरणादायक भी होता है। उसमें जन-जन में चेतना के प्राण फूंकने की अटूट सामर्थ भी होती है जीवन और कविता का संबंध अनादिकाल से रहा है हिंदी कविता अतीत का अनुशीलन बताती है कि समाज के मृत प्राय होते जीवन को सदैव कविता कामनीं की संजीवनी ही चेतना वान बनाती रही हैकाव्य उत्थान की दृष्टि से विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है क कविता में जनचेतना का प्रथम चरण भारतेंदु हरिश्चंद्र