कालिदास के प्राकृतिक सौंदर्य में कौटुंबिक संबंध

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किसी भी काव्य में चित्रित प्रकृति सौंदर्य को उदात्त ,अनुपम तथा अनूठी शोभा से मंडित करने हेतु उसमें मानवीय भावनाओं का समावेश होना अत्यावश्यक है। मानव के समान प्रकृति भी प्राणमयी है । चेतना युक्त है । प्रकृति एवं सौंदर्य और प्रेम के कवि कालिदास के काव्यों में सर्वत्र ही प्रकृति में मानव की तथा मानव में प्रकृति की छाया परिणत होती हुई दृष्टिगोचर होती है। प्राकृतिक सौंदर्य में इसी मानवीय भावना के मानवीकरण के कारण ही वह चेतनावान बन गया है। कालिदास के काव्य में प्रकृति के साहचर्य में मानव का मनो- जगत अपने पूर्ण वैभव के साथ उद्द्घटित