ऐसे थे मेरे बाऊजी - (अन्तिम भाग)

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इधर ब्याह की तैयारियाँ हो रही थीं और उधर दुर्गेश की आत्मा प्रयागी के लिए तड़प रही थी,ज्यों ज्यों ब्याह की तिथि नजदीक आती जा रही थी दुर्गेशप्रताप का दिल डूबता जा रहा था,आखिरकार ब्याह का दिन आ ही पहुँचा और उसने गैर मन से हल्दी और तेल चढ़वाया मण्डप वाले दिन,मायने वाले दिन भोज हुआ और फिर तीसरे दिन बारात चल पड़ी अपनी अपनी बैलगाड़ियों में और ट्रैक्टरों में क्योकिं लड़की नजदीक के गाँव की थी उसका गाँव यही कोई सोलह सत्रह किलोमीटर ही दूर था उसके गाँव से .... बुझे मन से दुर्गेश ने फेरे पड़वाएं,सब नेगचार