धरोहर

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दीवाली आने में अभी वक्त था। लेकिन मन को कुछ समझ नहीं आ रहा था की दिवाली मनाई कहा जाए। मैं अम्मा और रिंकी दिल्ली के तूफानी भीड़ में खरीददारी करते हुए सोच रहे थे। की इस बार की दिवाली कहा मनाई जाए। बाजार के किनारे एक गोलगप्पे वाले को देख अम्मा अपने आप को रोक न पाई और खाने चली गई। इधर रिंकी और मैं कुछ सोच रहे थे। तब तक अम्मा दो चार गप्पे गपा गप शुरू कर गई। रिंकी कुछ बड़बड़ाई और तेज स्वर में बोली अम्मा ओ अम्मा बस भी करो। बाजारी भी करनी है। कुछ