कनबतियाँ और जोग लिखी-महेश अनघ

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कनबतियाँ और जोग लिखी एक कथाकार के आइने में रामगोपाल भावुक महेश अनघ जी का नवगीत संग्रह साभिप्राय कनबतियाँ पढ़ने का सौभाग्य मिला। भावानुभूतियों की गहनता लिए हुए यह नवगीत संग्रह उनकी अनेक अनुभूतियों से रू-ब-रू हुआ। हरी भर उम्मीदें हैं लय भी है वंदिश हैं। खारे जल से मैं खुसियों के पाँव पखारा करता हूँ। एक सौ एक नवगीत संग्रह के माध्यम से उनकें नवगीतों से परिचित हुआ। निश्चय ही अनघ जी की काव्य साधना उनकी अपनी पहचान बनकर बोलने लगी है। गीतांजली की तरह ‘कनबतियाँ’ में भी