स्त्री.... - (भाग-34)

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स्त्री......(भाग-34)मैं बहुत खुश थी उस रात। पिताजी ने माँ को समझा कर मना लिया। छाया और राजन दोनों ही सोमेश जी की बातें कर रहे थे। पिताजी के चेहरे पर भी सुकून लौट आया दिख रहा था जो मेरे तलाक की खबर सुन कर गायब हो गया था और उसकी जगह चिंता ने ले ली थी। अब सब अच्छा ही अच्छा दिख रहा है। तारा को कैसे भूल सकती हूँ? जब से हमने एक दूसरे का हाथ थामा है, सब अच्छा ही हो रहा है। सही टाइम पर तारा मुझे विपिन जी के लिए आगाह नहीं करती तो मैं मूर्खता