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स्त्री.... - (भाग-34)

स्त्री......(भाग-34)

मैं बहुत खुश थी उस रात। पिताजी ने माँ को समझा कर मना लिया। छाया और राजन दोनों ही सोमेश जी की बातें कर रहे थे। पिताजी के चेहरे पर भी सुकून लौट आया दिख रहा था जो मेरे तलाक की खबर सुन कर गायब हो गया था और उसकी जगह चिंता ने ले ली थी। अब सब अच्छा ही अच्छा दिख रहा है। तारा को कैसे भूल सकती हूँ? जब से हमने एक दूसरे का हाथ थामा है, सब अच्छा ही हो रहा है। सही टाइम पर तारा मुझे विपिन जी के लिए आगाह नहीं करती तो मैं मूर्खता कर चुकी होती....। तारा रसोई समेटने में लगी थी। नीचे एक बार सबको चाय दे आयी थी....अब बरतन भी ज्यादा हो जाते हैं और घर का काम भी, तारा थक गयी होगी, सोच कर मैं बरतन साफ करने लगी। दीदी मैं कर लूँगी न आप सबके पास बैठो....नहीं तारा, हम दोनो मिल कर कर लेते हैं, अब तो सब सोएगें ही। जा दोनों कमरे में पानी रख दो और बच्चों के कमरे में बिस्किट रख देना कहीं रीत को भूख के मारे उठ जाएँ। वो बाहर का सब काम देखने लगी। लिविंग रूम की सफाई करके गद्दे भी लगा दिए। मैंने तब तक सब बरतन धो लिए और माँ ने पौंछ दिए तो रसोई में सारा सामान सेट कर दिया। सुबह में यही सब काम बाकी
कामों में देर करवा देते हैं....राजन और पिताजी सोने चले गए और तारा को भी छाया के कमरे में सोने को भेज दिया।
उस रात मेरी आँखो में बहुत सारे ख्वाब थे, जो मैं जानती थी कि जरूर पूरे होंगे। रात को पास सोई माँ बोली," जानकी सोमेश जी को तूने अपने तलाक की वजह बता दी है न? ये न हो कि बाद में तुझे वहाँ कोई परेशान करे.....माँ आप चिंता मत करो,वो सब जानते हैं और उनके पिताजी भी। "फिर ठीक है बेटा", तेरी होने वाली सास के बारे में तूने कुछ नहीं बताया? अगर उन्हें कोई एतराज हुआ तो? माँ सोमेश जी की माताजी से मैं कभी नहीं मिली हूँ। आप किसी बात की चिंता मत करो और पहले क्या हुआ क्या नहीं ये बातें आप वहाँ किसी के सामने मत करना। न मेरी कोई बात न ही सोमेश जी की पहली शादी के बारे में कुछ कहना। जानकी तेरी ये गोल गोल बातें करने की आदत कभी गयी नहीं, उसी का नतीजा है जो सुधीर बाबू छोड़ कर चले गए। मुझे तो अक्ल है नहीं, जो तू मुझे बता रही है कि क्या कहूँ क्या न कहूँ!!
माँ, तुम नाराज क्यों हो रही हो? मैंने बस इतना कहा कि हमारे पिछले रिश्तों की बात मत करना उनको कुछ बुरा न लग जाए, माँ की बात सुन कर मेरी सारी खुशी काफूर हो गयी...देख जानकी माँ मैं हूँ तेरी तू मेरी माँ नही है, मुझे पता है कि कब क्या कहना है। सच्ची बात तुझे बुरी लग जाती है आज भी.....माँ की ये बात मुझे चुभ गयी पर उन्हें अपनी सफाई देने का बिल्कुल भी मन नहीं था.... माँ तो आप ही हो, बस आपको अपनी बेटी पर भरोसा कभी नहीं रहा। मैं अपनी बात कह कर सोने की कोशिश करने लगी। माँ कुछ कुछ बोल तो रही थी, पर मुझे समझ नहीं आया और न ही पलट कर पूछा कि क्या कह रही हो ! माँ बिल्कुल नहीं बदली न जाने मुझसे किस बात पर नाराज रहती है माँ!! खैर बहुत दिनों बाद हम मिल रही थी तो इतने दिनों बाद माँ का कहा बुरा लग गया था, नहीं तो बचपन में तो माँ की बात पर ध्यान ही कम देती थी।माँ की बातों से ध्यान हटाने के लिए मैं सोमेश जी के बारे मैं सोचने की कोशिश करने लगी। थोड़ा टाइम लगा पर सोचते सोचते नींद आ ही गयी....। नया दिन नयी सुबह हमेशा मुझमें एनर्जी भर देती है। मन में कोई गुस्सा नहीं था, बस अब सब अच्छा ही होगा का विश्वास था। सुबह बच्चों के लिए छाया खुद ही नाश्ता तैयार कर रही थी और तारा बाकी काम। माँ छाया के साथ रसोई में थी और मैं नीचे का काम देख रही थी।बंसल सर का जब फोन आया तो मैं ऊपर ही जा रही थी, वो पिताजी से बात करना चाहते थे।मैंने पिताजी को फोन दे दिया। बच्चे बहुत शोर कर रहे थे तो अंदर कमरे में चले गए। कुछ देर के बाद बाहर आए। हम सबका ध्यान पिताजी पर था कि क्या बात हुई! माँ भी रसोई से बाहर आ गयी, क्या बात हुई राजू के पिताजी? माँ हमेशा पिताजी से ऐसे ही बात करती हैं.....वो राजन को शुरू से ही राजू कहती हैं। जानकी की माँ, उन्होंने आज शाम को अपने घर बुलाया है, कह रहे थे, आप एक बार घर देख लिजिए....तो मैंने भी कह दिया है कि हम पाँच बजे आ जाएँगे। वो कह रहे थे कि जानकी को ले कर आप सब आएँ। मैंने कह दिया कि ठीक है, हम सब आएँगे। ठीक किया ना? इस बार भी पिताजी ने सब डिसाइड करके ही बताया माँ को पर फिर भी पूछ लिया ठीक किया है न? कुछ गलत कह दिया हो तो बता दे, फोन करके उन्हें बता दूँगा, नहीं तो बच्चों जैसे नाराज हो कर बैठ जाओगी तुम रात की तरह। ये लोग जानकी को भी साथ लाने को कह रहे हैं,शादी से पहले लड़की अपने ससुराल कहाँ जाती है? माँ अब ये सब पुरानी बाते हैं! दीदी भी सब देख ले, इसलिए वो बुला रहे हैं। राजन की बात सुन कर माँ चुप हो गयी। ठीक है फिर ,जैसे तुम सब कहो।माँ ने कहा तो पिताजी बोले ठीक है फिर, सब समय से तैयार होना कल सोमेश जी समय पर आए थे, हमें भी समय पर उनके घर पहुँचना है। ठीक है पिताजी, घर से 3:30 तक निकलना पडेगा, थोड़ा ट्रैफिक रहता है तो समय पर पहुँच पाएँगे। जानकी बेटा कोई अच्छी सी मिठाई की दुकान राजन को बता दे, उनके घर खाली हाथ जाना ठीक नहीं।पिताजी मेरी बात सुन कर बोले तो मैंने कहा कि रास्ते में ही हैं, तभी ले लेंगे। बेटा फिर और जल्दी निकलना पडेगा, उससे अच्छा है कि अभी कोई काम नहीं है, बाहर ही घूम आते हैं मैं और राजन। हाँ पिताजी चलिए, हम चलते हैं। मैंने उन्हें दुकान बता दी और वो लोग मिठाई लेने चले गए और हम सब सोचने में बिजी हो गए कि शाम को क्या क्या पहन कर जाया जाए। हम तीनों ने ही साडियाँ डिसाइड कर ली। मैंने माँ को शिफॉन की साड़ी निकाल कर दी पहनने के लिए। छाया ने बंधेज की पहनी और मुझे लखनवी साड़ी ठीक लगी। माँ के पास ढंग के गहने नहीं थे क्योंकि कभी इतना पैसा ही नहीं हुआ था कि माँ अपने लिए कुछ ले पाती। मैंने माँ को अपना हल्का सा सेट निकाल कर दिया। छाया के पास अपना सुंदर सा सेट था और हाथ में कंगन भी......माँ को मैंने अपनी चूडियाँ
पहना दी। थोड़ा थोड़ा खरीदा हुए गहने काम आ रहे थे।मैें तो मोतियों का सेट पहनने वाली थी... राजन और पिताजी के कपडे भी निकाल लिए और सबको प्रेस कर दिए। सोमेश जी ने घर का एड्रैस बताने के लिए फोन आया था तो वो बोले तारा दीदी को भी ले कर आना, कहीं उनको छोड़ आओ। हाँ, ये भी कोई कहने की बात है तारा तो आएगी ही....तारा अब तक सब काम से फ्री हो गयी थी तो मैंने उसे बुलाया कि वो कौन सी साड़ी पहनेगी शाम को। वो मना करने लगी कि आप बड़े लोगो के साथ मेरा क्या काम? तारा सोमेश जी का फोन आया था वो भी कह रहे थे कि तारा दीदी को ले कर आना। अब बोल चलेगी न? ठीक है दीदी, साहब ने कहा तो कैसे मना कर सकती हूँ, वो हमारे घर के होने वाले दामाद जो ठहरे। साड़ी आप बताओ कौन सी पहनूँ कह कर वो अपनी साड़ियाँ ले आयी। तारा के लिए भी एक साडी स्लेक्ट की गयी....ऐसे हुए हम तैयार। छाया बार बार बच्चों को समझा रही थी कि वहाँ शैतानी मत करना,आराम से बैठना वगैरह वगैरह जो उस समय के माँ बाप बच्चों को सिखाया करते थे। हमें भी माँ ऐसे ही समझाती थी,जब कहीं ले जाती थी। उसे ऐसे कहते देख मुझे हमारा टाइम याद आ गया। छाया दीदी आप चिंता मत करो मैं दोनों का ध्यान रखूँगी.....तारा की बात सुन कर छाया ने चैन की सांस ली। हम सब एक कार में नहीं आ सकते थे तो एक टैक्सी करनी पड़ेगी सोच ही रही थी कि अनिता ऊपर आ गयी और बोली, नीचे बसंल सर का ड्राइवर आया है आपको लेने!! मैंने सोमेश जी को फोन किया तो उन्होंने बताया कि मैंने भेजी है कार सब लोग एक कार में नहीं आ पाएँगे और फिर टैक्सी न ले कर आना पडे़। हमारी समस्या का हल उन्होंने पहले ही निकाल लिया था। इतना अच्छा इंसान भी कोई होता है क्या? मैंने अपने आप से पूछा और खुद की किस्मत पर इतराने का मन करने लगा। हम नीचे उतरने लगे तो पिताजी ने भी वही बात दोहरा दी जो मैं माँ को रात को बोल चुकी थी....सब लोग ध्यान से सुन लो सोमेश जी की पहली शादी की कोई बात मत करना और न ही सुधीर बाबू और अपनी जानकी की कोई बात निकालना, जो बातें होनी थी,वो सुबह मेरी हो गयी हैं उनके पिताजी से। माँ कभी मुझे तो कभी पिताजी को देख रही थीं। हम सब ध्यान रखेंगे पिताजी, अब जल्दी चलिए....राजन ने बात बदली तो जान में जान आयी। नीचे आ कर ड्राइवर के साथ माँ, पिताजी और छाया को बिठाया और मैं, राजन, बच्चे और तारा अपनी कार में चल दिए सोमेश जी के ड्राइवर के पीछे पीछे। मिठाइयाँ पिताजी और माँ के पास थी। मैं और राजन बहुत सारी बातें कर रहे थे और राजन का ध्यान आगे वाली गाड़ी पर था।
कुछ तो रास्ता लंबा था, कुछ ट्रैफिक मिला पर फिर भी कुछ मिनटों की देरी हुई थी......मैं ये तो जानती थी कि बंसल सर अमीर हैं, पर इतने हैं इसका पता नहीं था। गाडी़ बंगले के सामने रूकी थी। बंगला काफी सालों पहले बना होगा, ऐसा लग रहा था.....दोनों कारे बंगले के सामने थी.....बहुत आलीशान गेट लगा हुआ था और अंदर लॉन तो था ही....बड़े बड़े पेड़ भी लगे थे....देख कर मन खुश हो गया। हम सबके लिए इतना बड़ा घर देखना बहुत बड़ी बात थी। ड्राइवर ने बाहर खड़े सिक्योरिटी गार्ड को बता दिया था कि बसंल सर के गेस्ट हैं, अंदर छोड़ कर आओ......वो अंदर तक आया पर आगे एक औरत खड़ी थी तो गार्ड बाहर चला गया। औरत की उम्र 40-45 साल की होगी....वो हाथ जोड़ कर नमस्ते करते हुए बोली, अंदर सब आपका इंतजार कर रहे हैं आइए.......समझ ही नहीं आ रहा था कि कितना अंदर वो लोग हमारा इंतजार कर रहे हैं! उस औरत के पीछे चलते चलते हम एक हॉल में पहुँच ही गए.... जहाँ ऐसा लग रहा था कि फाइव स्टार होटल में हो? सोफे ही सोफे और बड़ी बड़ी संगमरमर की मूर्तियाँ थी, जैसे कोई फिल्म में हीरे हीरोइन या विलेन का घर दिखाया जाता है...झूमर लटक रहे थे, हर चीज में सलीका नजर आ रहा था....वहाँ बैठे थे सोमेश जी के माता पिता जो हमे ं देख कर उठ कर खड़े हो गए पर माताजी बैठी रहीं.......उन्होंने बहुत गर्मजोशी से पिताजी से हाथ मिलाया और गले मिले। राजन और छाया के बेटे ने दोनों के पैर छुए। माँ ने पास जा कर उन्हें नमस्ते की तो वो मुस्कुरा कर हाथ जोड़ दी। एक दूसरे से सबका मिलना हो गया था। मैंने भी सर को नमस्ते की और माताजी को नमस्ते करके सामने सोफे पर बैठने लगी तो वो बोली, बेटा यहाँ मेरे पास बैठो....नौकर कभी शरबत तो कभी खाने पीने का सामान ला ला कर रखते जा रहे थे। सोमेश जी कुछ देर तक नहीं दिखे तो राजन ने पूछ लिया। बेटा सोमेश कुछ ही देर पहले आया है हॉस्पिटल से बस फ्रेश हो कर आता ही होगा.....सोमेश की मम्मी चल फिर नहीं सकतीं उनका सारा काम वही औरत करती है जो हमें बाहर लेने आयी थी, उसका नाम सविता बताया था उन्होंने। तारा बच्चों का पूरा ध्यान रख रही थी और बच्चे भी थोड़े संकोच में थे तो चुपचाप बैठे थे। पिताजी और बसंल सर बातें कर रहे थे और सबकुछ बता रहे थे अपने परिवार के बारे में ,बेटों के बारे में और अपने बिजनेस के बारे में, तभी सोमेश जी आ गए। वो सबका अभिवादन कर बच्चों के साथ बैठ गए। माँ आप जानती हो जानकी से मिलने गया तो वहाँ मुझे एक दीदी भी मिल गयी, कह कर उन्होंने तारा को आगे कर दिया। हम भाइयों की कोई बहन नही है तारा दीदी, अब आप मेरी बहन हो, याद रखिएगा और अच्छा अच्छा खाना खिलाते रहिएगा। जरूर साहब.....आपने मुझे इतना सम्मान दिया और मुझे क्या चाहिए। मैं तो जानती थी सोमेश जी की सहजता को पर माँ पिताजी सब हैरान थे घर को देख कर और उसमें रहने वालों के स्वभाव को देख कर। बहुत सारी बातें हुई, चाय नाश्ता सब हुआ। सोमेश जी की मम्मी ने कहा कि शादी बिल्कुल सिंपल करना चाहता है उनका बेटा। इसलिए मंदिर में शादी करना ठीक रहेगा, उसके बाद हम सब मिल कर लंच या डिनर कर लेंगे ....सोमेश के पापा ने जितनी तारीफ हमारी होने वाली बहु की, वो काफी कम लग रही है। सोमेश की माँ सिर्फ सुंदर ही नहीं बहादुर है जानकी। मिझे तो इसकी लगन और बहादुरी ने इंप्रेस किया तभी तो सोमेश को मिलवाया जानकी से। माँ मेरी तारीफ किसी और से सुन रही थी तो वो मुझे बार बार देख रही थी। पिताजी ने आगे का पूछा तो वो बोले कि शादी का मुहुर्त निकलवा लेता हूँ, नहीं पापा आप किन चक्करों में पड़ रहे हैं....शादी आप लोग ऐसे ही डिसाइड कर लो एक दिन...भगवान के सामने शादी होनी है तो वो हमारा बुरा नहीं करेंगे। बेटे की बात सुन कर वो उनकी मम्मी ने कहा हाँ ठीक है जैसे सोमेश कहे......पिताजी बोले हमारे पास 3-4 दिन हैं, फिर वापिस जाना है और राजन को डयूटी जॉइन करनी है तो अगर आप को ठीक लगे तो इन दिनो में से एक दिन देख लीजिए। पिताजी शायद सब कुछ अभी करना चाह रहे थे। ये तो बहुत अच्छा है आप जानकी का कन्यादान करके ही जाइए भाई साहब। सोमेश जी ने एक दिन बाद का समय तय किया सुबह 10 बजे का।एक दिन में हम सब की तैयारी हो जाएगी। और उसी दिन डिनर करते हैं सब साथ। सोमेश जी के पिताजी ने बताया कि उनके दोनों बेटे और उनकी फैमिली ही होंगे और कोई नही होगा। शादी के टाइम तो वो भी शायद ही आ पाएँ। कोई बात नहीं पापा शाम को आ जाँएगे, सोमेश जी ने कहा। सब फाइनल हो गया और हमनें उनसे विदा माँगी। मैं एक बात कहना चाहती हूँ बहन जी आपसे, सोमेश जी की मम्मी ने माँ से कहा। मुझे सिर्फ अपनी बहु चाहिए और एक अँगूठी सोमेश के लिए जो रस्मों के लिए जरूरी होती है.....बस उससे ज्यादा कुछ नहीं। हमें कुछ नहीं चाहिए न गहने न कपडे बस बेटी दामाद को आशीर्वाद दीजिएगा कि वो खुश रहें। सोमेश जी की मम्मी ने तो माँ का दिल ही जीत लिया।
ससुराल में हमेशा के लिए आने के लिए उस दिन विदा ले कर हम घर आ गए.....। सब कुछ अच्छा हो गया और खुशियाँ मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही थीं..........।
क्रमश:
मौलिक एवं स्वरचित
सीमा बी.