प्रस्थान से पूर्व

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हालांकि बहुत सी घरेलू महिलाएं ऐसी हैं, जिनका अपने गृह राज्य पर पूर्ण वर्चस्व स्थापित रहता है।फिलहाल मैं उन गृहणी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही हूँ जो आजीवन अपने मन की बात या व्यथा अपने अंतर में ही दबाकर संसार से विदा हो जाती हैं।कभी संस्कारों के कारण गलत बात का भी विरोध नहीं कर पाती हैं, कभी घर के अशांति को स्थगित करने के प्रयास में चुप रह जाती हैं और कभी उनकी भीरुता उन्हें कुछ भी कहने से रोक देती है। मन ही मन तमाम बातें उन्हें आंदोलित करती रहती हैं, जबाब मन में कौंधता रहता है, बार-बार