विविधा - 3

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3-व्यंग्य -दशा और दिशा  हिन्दी साहित्य मे लम्बे समय से व्यंग्य लिखा जा रहा है, मगर आज भी व्यंग्य का दर्जा अछूत का ही है, इधर कुछ समय से व्यंग्य के बारे में चला आ रहा मौन टूटा है, और कुछ स्वस्थ किस्म की बहसों की २ाुरूआत हुई है। आज व्यंग्य मनोरंजन से उपर उठकर सार्थक और समर्थ हो गया है। आज व्यंग्य-लेखक को अपने नाम के साथ किसी अजीबोगरीब विशेशण की आवश्यकता नहीं रह गई है।   मगर स्थिति अभी इतनी सुखद नहीं है, आज भी कई बार लगता है, व्यंग्यकार छुरी से पानी काट रहा है। आवश्यकता व्यंग्य को