आँख की किरकिरी - 10

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(10) दो दिन हुए, राजलक्ष्मी उठने-बैठने लगी हैं। शाम को बदन पर एक मोटी चादर लपेटे विनोदिनी के साथ ताश खेल रही थी। आज उसे कोई हरारत न थी। महेंद्र कमरे में आया। विनोदिनी की तरफ उसने बिलकुल नहीं देखा। माँ से बोला - माँ, कॉलेज में मेरी रात की डयूटी लगी है। यहाँ से आते-जाते नहीं बनता - कॉलेज के पास ही एक डेरा ले लिया है। आज से वहीं रहूँगा।  राजलक्ष्मी अंदर से रूठ कर बोलीं - जाओ, पढ़ाई में हर्ज होगा, तो रह भी कैसे सकते हो!  बीमारी तो उनकी जाती रही थी, लेकिन जैसे ही उन्होंने