OR

The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.

Matrubharti Loading...

Your daily story limit is finished please upgrade your plan
Yes
Matrubharti
  • English
    • English
    • हिंदी
    • ગુજરાતી
    • मराठी
    • தமிழ்
    • తెలుగు
    • বাংলা
    • മലയാളം
    • ಕನ್ನಡ
    • اُردُو
  • About Us
  • Books
      • Best Novels
      • New Released
      • Top Author
  • Videos
      • Motivational
      • Natak
      • Sangeet
      • Mushayra
      • Web Series
      • Short Film
  • Contest
  • Advertise
  • Subscription
  • Contact Us
Publish Free
  • Log In
Artboard

To read all the chapters,
Please Sign In

Aankh ki Kirkiri by Rabindranath Tagore | Read Hindi Best Novels and Download PDF

  1. Home
  2. Novels
  3. Hindi Novels
  4. आँख की किरकिरी - Novels
आँख की किरकिरी by Rabindranath Tagore in Hindi
Novels

आँख की किरकिरी - Novels

by Rabindranath Tagore Matrubharti Verified in Hindi Fiction Stories

(58)
  • 26.2k

  • 54.2k

  • 14

विनोद की माँ हरिमती महेंद्र की माँ राजलक्ष्मी के पास जा कर धरना देने लगी। दोनों एक ही गाँव की थीं, छुटपन में साथ खेली थीं। राजलक्ष्मी महेंद्र के पीछे पड़ गईं - बेटा महेंद्र, इस गरीब की बिटिया ...Read Moreउद्धार करना पड़ेगा। सुना है, लड़की बड़ी सुंदर है, फिर पढ़ी-लिखी भी है। उसकी रुचियाँ भी तुम लोगों जैसी हैं। महेंद्र बोला - आजकल के तो सभी लड़के मुझ जैसे ही होते हैं। राजलक्ष्मी- तुझसे शादी की बात करना ही मुश्किल है। महेंद्र - माँ, इसे छोड़ कर दुनिया में क्या और कोई बात नहीं है? महेंद्र के पिता उसके बचपन में ही चल बसे थे। माँ से महेंद्र का बर्ताव साधारण लोगों जैसा न था। उम्र लगभग बाईस की हुई, एम.ए. पास करके डॉक्टरी पढ़ना शुरू किया है, मगर माँ से उसकी रोज-रोज की जिद का अंत नहीं। कंगारू के बच्चे की तरह माता के गर्भ से बाहर आ कर भी उसके बाहरी थैली में टँगे रहने की उसे आदत हो गई है। माँ के बिना आहार-विहार, आराम-विराम कुछ भी नहीं हो पाता। अबकी बार जब माँ विनोदिनी के लिए बुरी तरह उसके पीछे पड़ गई तो महेंद्र बोला, अच्छा, एक बार लड़की को देख लेने दो! लड़की देखने जाने का दिन आया तो कहा, देखने से क्या होगा? शादी तो मैं तुम्हारी खुशी के लिए कर रहा हूँ। फिर मेरे अच्छा-बुरा देखने का कोई अर्थ नहीं है।

Read Full Story
Download on Mobile

आँख की किरकिरी - Novels

आँख की किरकिरी - 1
रवींद्रनाथ टैगोर (1) विनोद की माँ हरिमती महेंद्र की माँ राजलक्ष्मी के पास जा कर धरना देने लगी। दोनों एक ही गाँव की थीं, छुटपन में साथ खेली थीं। राजलक्ष्मी महेंद्र के पीछे पड़ गईं - बेटा महेंद्र, इस ...Read Moreकी बिटिया का उद्धार करना पड़ेगा। सुना है, लड़की बड़ी सुंदर है, फिर पढ़ी-लिखी भी है। उसकी रुचियाँ भी तुम लोगों जैसी हैं। महेंद्र बोला - आजकल के तो सभी लड़के मुझ जैसे ही होते हैं। राजलक्ष्मी- तुझसे शादी की बात करना ही मुश्किल है। महेंद्र - माँ, इसे छोड़ कर दुनिया में क्या और कोई बात नहीं है? महेंद्र
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 2
(2) उसकी उम्र साफ-साफ कोई न बताता। सगे-संबंधी कहते, बारह-तेरह होगी। यानी चौदह-पन्द्रह होने की संभावना ही ज्यादा थी। लेकिन चूँकि दया पर चल रही थी इसलिए सहमे-से भाव ने उसके नव-यौवन के आरंभ को जब्त कर रखा था। ...Read Moreने पूछा - तुम्हारा नाम? अनुकूल बाबू ने उत्साह दिया - बता बेटी, अपना नाम बता! अपने अभ्यस्त आदेश-पालन के ढंग से झुक कर उसने कहा - जी, मेरा नाम आशालता है। आशा! महेंद्र को लगा, नाम बड़ा ही करुण और स्वर बड़ा कोमल है। दोनों मित्रों ने बाहर सड़क पर आ कर गाड़ी छोड़ दी। महेंद्र बोला - बिहारी,
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 3
(3) सीढ़ियों से राजलक्ष्मी ऊपर गईं। महेंद्र के कमरे में दरवाजे का एक पल्ला खुला था। सामने जाते ही मानो काँटा चुभ गया। चौंक कर ठिठक गई। देखा, फर्श पर महेंद्र लेटा है और दरवाजे की तरफ पीठ किए ...Read Moreधीरे-धीरे उसके पाँव सहला रही है। दोपहर की तेज धूप में खुले कमरे में दांपत्य लीला देख कर राजलक्ष्मी शर्म और धिक्कार से सिमट गईं और चुपचाप नीचे उतर आईं। कुछ दिन सूखा पड़ने से नाज के जो पौधे सूख कर पीले पड़ जाते हैं, बारिश आने पर वे तुरंत बढ़ जाते हैं। आशा के साथ भी ऐसा ही हुआ।
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 4
(4) अन्नपूर्णा भीतरी मतलब समझ गई। कहने लगी, दीदी जाएँगी, तो मैं भी न रह सकूँगी। महेंद्र ने माँ से कहा - सुन लिया तुमने? तुम जाओगी तो चाची भी जाएँगी। अपनी गृहस्थी का क्या होगा फिर? राजलक्ष्मी विद्वेष ...Read Moreजहर से जर्जर हो कर बोलीं- तुम भी जा रही हो मँझली? तुम्हारे जाने से काम कैसे चलेगा? नहीं, तुम्हें रहना ही पड़ेगा। राजलक्ष्मी उतावली हो गईं। दूसरे दिन दोपहर को ही तैयार हो गई। महेंद्र ही उन्हें पहुँचाने जाएगा, इसमें किसी को भी शुबहा न था। लेकिन रवाना होते वक्त मालूम पड़ा महेंद्र ने माँ के साथ जाने के
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 5
(5) किसी पड़ोसी के पिंजरे की कोयलिया कूक उठी। महेंद्र ने उसी दम अपने सिर पर झूलते हुए पिंजरे को देखा। अपनी कोयल पड़ोसी की कोयल की बोली चुपचाप कभी नहीं सह सकती- आज वह चुप क्यों है? महेंद्र ...Read Moreकहा - तुम्हारी आवाज से लजा गई है। उत्कंठित हो कर आशा ने कहा - आज इसे हो क्या गया। आशा ने निहोरा करके कहा - मजाक नहीं, देखो न, उसे क्या हुआ है? महेंद्र ने पिंजरे को उतारा। पिंजरे पर लिपटे हुए कपड़ों को हटाया। देखा, कोयल मरी पड़ी थी। अन्नपूर्णा के जाने के बाद खानसामा छुट्टी पर चला
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 6
(6) बिहारी ने कोई जवाब न दिया। वह जा कर महेंद्र से बोला, यार, विनोदिनी की भी सोचते हो? महेंद्र ने हँस कर कहा - सोच कर रात की नींद हराम है। अपनी भाभी से पूछ देखो, विनोदिनी के ...Read Moreसे इन दिनों और सब ध्यान टूट गया है। घूँघट की आड़ से आशा ने महेंद्र को चुपचाप धमकाया। बिहारी ने कहा - अच्छा, दूसरा विषवृक्ष चुन्नी उसे यहाँ से निकाल बाहर करने को छटपटा रही है। घूँघट से आशा की आँखों ने फिर उसे झिड़का। बिहारी ने कहा - निकाल ही बाहर करो तो लौट आने में कितनी देर
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 7
(7) विनोदिनी से भेंट होने के दूसरे दिन प्रसंगवश यों ही मजाक में महेंद्र ने आशा से पूछा - तुम्हारा यह अयोग्य पति तुम्हारी आँख की किरकिरी को कैसा लगा? महेंद्र को इसकी जबरदस्त आशा थी कि पूछने से ...Read Moreही आशा से उसे इसका बड़ा ही अच्छा ब्यौरा मिलेगा। लेकिन सब्र करने का जब कोई नतीजा न निकला, तो ढंग से यह पूछ बैठा। आशा मुश्किल में पड़ी। विनोदिनी ने कुछ भी नहीं कहा। इससे आशा अपनी सखी से नाराज हुई थी। बोली - ठहरो भी, दो-चार दिन मिल-जुल कर तो कहेगी। कल भेंट भी कितनी देर को हुई
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 8
(8) उसने आशा से फिर कहा - तुम्हारा यह भिखारी देवर मुझे इंगित करके तुमसे ही दुलार की भीख माँगने आया है- कुछ दे दो न, बहन! आशा बहुत खीझ उठी।जरा देर के लिए बिहारी का चेहरा तमतमा उठा, ...Read Moreही दम वह हँस कर बोला - दूसरे पर यों टाल देना ठीक नहीं है। विनोदिनी समझ गई कि बिहारी सब बंटाधार करके आया है - इसके सामने हथियारबंद रहना जरूरी है। महेंद्र भी आजिज आ गया। बोला - बिहारी, तुम्हारे महेंद्र भैया किसी व्यापार में नहीं पड़ते, जो पास है, उसी से खुश हैं वे। बिहारी - खुद न
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 9
(9) तपी दोपहरी की हवा पत्तों में मर्मराहट ला कर बहती रही, तालाब के बाँध पर जामुन की डालों पर कोयल रह-रह कर कूकती रही। विनोदिनी अपने बचपन के किस्से सुनाने लगी - माँ-बाप की बात, छुटपन की सखी-सहेलियों ...Read Moreचर्चा। अचानक उसके माथे पर का पल्ला खिसक पड़ा। विनोदिनी की आँखों में कौतुक का जो तीखा कटाक्ष देख पैनी निगाहों वाले बिहारी के मन में आज तक तरह-तरह की शंकाएँ उठती रही थीं, वह श्याम चमक जब एक शांत सजल रेखा से मंद पड़ गई, तो बिहारी ने मानो और ही नारी को देखा। लजीली सती की नाईं विनोदिनी
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 10
(10) दो दिन हुए, राजलक्ष्मी उठने-बैठने लगी हैं। शाम को बदन पर एक मोटी चादर लपेटे विनोदिनी के साथ ताश खेल रही थी। आज उसे कोई हरारत न थी। महेंद्र कमरे में आया। विनोदिनी की तरफ उसने बिलकुल नहीं ...Read Moreमाँ से बोला - माँ, कॉलेज में मेरी रात की डयूटी लगी है। यहाँ से आते-जाते नहीं बनता - कॉलेज के पास ही एक डेरा ले लिया है। आज से वहीं रहूँगा। राजलक्ष्मी अंदर से रूठ कर बोलीं - जाओ, पढ़ाई में हर्ज होगा, तो रह भी कैसे सकते हो! बीमारी तो उनकी जाती रही थी, लेकिन जैसे ही उन्होंने
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 11
(11) इस बीच और एक चिट्ठी आ पहुँची - तुमने मेरे पत्र का जवाब नहीं दिया? अच्छा ही किया, सही बात लिखी तो नहीं जाती तुम्हारा जो जवाब है, उसे मैंने मन में समझ लिया। भक्त जब अपने देवता ...Read Moreपुकारता है तो देवता क्या जबान से कुछ कहते हैं? लगता है, दुखिया की तुलसी को चरणों में जगह मिल गई। लेकिन भक्त की पूजा से कहीं शिव की तपस्या टूटती हो तो मेरे हृदय के देवता, नाराज न होना! वरदान दो या न दो, आँखें उठा कर निहारो या न निहारो, जान सको या न जान सको - पूजा
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 12
(12) और वह कमरे से बाहर चला गया। और दूसरे ही क्षण फिर अंदर आया। आ कर विनोदिनी से कहा - मुझे माफ कर दो! विनोदिनी बोली - क्या कुसूर किया है तुमने, लालाजी? महेंद्र बोला - तुम्हें यों ...Read Moreयहाँ रोक रखने का हमें कोई अधिकार नहीं। विनोदिनी हँस कर बोली - जबरदस्ती कहाँ की है? प्यार से सीधी तरह ही तो रहने को कहा - यह जबरदस्ती थोड़े है। आशा सोलहों आने सहमत हो कर बोली - हर्गिज नहीं। विनोदिनी ने कहा - भाई साहब, तुम्हारी इच्छा है, मैं रहूँ। मेरे जाने से तुम्हें तकलीफ होगी- यह तो
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 13
(13) काशी से लौट कर महेंद्र ने आशा को जब मौसी के भेजे गए स्नेहोपहार - एक सिंदूर की डिबिया और सफेद पत्थर का एक लोटा - दिए, तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। मौसी का वह स्नेहमय ...Read Moreऔर उन पर अपनी तथा सास की फजीहतों की बात याद आते ही उसका हृदय व्याकुल हो उठा। उसने महेंद्र से कहा - बड़ी इच्छा हो रही है कि एक बार मैं भी काशी जाऊँ और मौसी की क्षमा तथा चरणों की धूल ले आऊँ। क्या यह मुमकिन नहीं? महेंद्र ने आशा के मन की पीड़ा को समझा और इस
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 14
(14) दरबान ने बताया। महेंद्र ने उससे चिट्ठी ले ली। एक बार तो जी में आया, चिट्ठी वह विनोदिनी को दे आए - कुछ कहे नहीं, सिर्फ विनोदिनी का लज्जित चेहरा देख आए। उसे इसमें जरा भी शक न ...Read Moreकि खत में लज्जा की बात जरूर है। याद आया, पहले भी एक बार उसने बिहारी को चिट्ठी भेजी थी। आखिर खत में है क्या, यह जाने बिना मानो उससे रहा ही न गया। उसने अपने आपको समझाया, विनोदिनी उसी की देख-रेख में है, उसके भले-बुरे का वही जिम्मेदार है। लिहाजा ऐसे संदेह वाले खत को खोल कर देखना वाजिब
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 15
(15) विनोदिनी बोली - जरूरत क्या है, बुआ! राजलक्ष्मी बोलीं- अच्छा, कोई जरूरत नहीं। मुझसे जो हो सकेगा, वही करूँगी। और वह उसी समय महेंद्र के ऊपर वाले कमरे की झाड़-पोंछ करने जाने लगी। विनोदिनी कह उठी - तुम्हारी ...Read Moreठीक नहीं, तुम मत जाओ! मैं ही जाती हूँ। मुझे माफ करो बुआ, जैसा तुम कहोगी, करूँगी। राजलक्ष्मी लोगों की बातों की कतई परवाह नहीं करती। पति की मृत्यु के बाद से दुनिया और समाज में उन्हें महेंद्र के सिवाय और कुछ नहीं पता। विनोदिनी ने जब समाज की निंदा का इशारा किया, तो वह खीझ उठीं। जन्म से महेंद्र
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 16
(16) बिहारी ने जमीन पर ही माथा टेका, अन्नपूर्णा के पाँव भी न छुए। माँ जिस तरह गंगासागर में बच्चे को डाल आती है, अन्नपूर्णा ने उसी तरह रात के उस अँधेरे में चुप-चाप बिहारी का विसर्जन किया - ...Read Moreकर उसे पुकारा नहीं। देखते-ही-देखते गाड़ी बिहारी को ले कर ओझल हो गई। आशा ने उसी रात महेंद्र को पत्र लिखा - आज शाम को एकाएक बिहारी यहाँ आए थे। बड़े चाचा कब तक कलकत्ता लौटेंगे, ठिकाना नहीं। तुम जल्दी आ कर मुझे यहाँ से ले जाओ। उस दिन रात तक जागते रहने और भारी आवेग के कारण सुबह महेंद्र
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 17
(17) इतने में एक मुरादाबादी थाली में फल-मिठाई और एक तश्तरी में बर्फ-चीनी डाल खुशबू-बसा खरबूजा लिए विनोदिनी आई। महेंद्र से बोली - कर क्या रहे हैं! आखिर बात क्या है, पाँच बज गए और न तुमने मुँह-हाथ धोया, ...Read Moreकपड़े बदले! महेंद्र के मन में एक धक्का-सा लगा। उसे क्या हुआ है, यह भी पूछने की बात है? महेंद्र खाने लगा। विनोदिनी जल्दी से महेंद्र के छत पर सूखते कपड़े ला कर तह करने और अपने कुशल हाथों से उन्हें अलमारी में करीने से रखने लगी। महेंद्र ने कहा - जरा-रुको तो सही, खा लूँ, फिर मैं भी तुम्हारा
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 18
(18) रविवार महेंद्र के बड़े आग्रह का दिन होता। पिछली रात से ही उसकी कल्पना उद्दाम हो उठती - जो कि आज तक उसकी उम्मीद के अनुरूप हुआ कुछ भी न था। तो भी इतवार के सवेरे की आभा ...Read Moreआँखों में अमृत बरसाने लगी। जागे हुए शहर की सारी हलचल अनोखे संगीत - जैसी उसके कानों में प्रवेश करने लगी। मगर माजरा क्या है? आज कोई व्रत है माँ का? और दिन जैसा करती रही हैं, आज तो वह घर के काम-काज का खास भार विनोदिनी पर सौंप कर निश्चिंत नहीं है। आज खुद भी बहुत व्यस्त हैं वे।
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 19
(19) आशा ने उनके चरणों की धूल ली। बोली - आशीर्वाद दो मौसी! ऐसा ही हो। आशा लौट आई। रूठ कर विनोदिनी ने कहा - भई किरकिरी, इतने दिन पीहर रही, खत लिखना भी पाप था क्या? आशा बोली ...Read Moreऔर तुमने तो लिख दिया जैसे! विनोदिनी - मैं पहले क्यों लिखती, पहले तुम्हें लिखना था। विनोदिनी के गले से लिपट कर आशा ने अपना कसूर मान लिया। बोली - जानती तो हो, मैं ठीक-ठीक लिख नहीं पाती। खास कर तुम-जैसी पंडिता को लिखने में शर्म आती है। देखते-ही-देखते दोनों का विषाद मिट गया और प्रेम उमड़ आया। विनोदिनी ने
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 20
(20) मुझसे तुम क्या चाहते हो? प्यार! यह भिखमंगी क्यों आखिर? जन्म से तुम प्यार-ही-प्यार पाते आ रहे हो, फिर भी तुम्हारे लोभ का कोई हिसाब नहीं! मेरे प्रेम करने और प्रेम पाने की संसार में कोई जगह नहीं ...Read Moreइसीलिए मैं खेल में प्यार के खेद को मिटाया करती हूँ। जब तुम्हें फुर्सत थी, तुमने भी उस झूठे खेल में हाथ बँटाया था। लेकिन खेल की छुट्टी क्या खत्म नहीं होती? अब गर्द-गुबार झाड़-पोंछ कर वापस जाओ। मेरा तो कोई घर नहीं, मैं अकेली ही खेला करूँगी - तुम्हें नहीं बुलाऊँगी। तुमने लिखा है, तुम मुझे प्यार करते हो।
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 21
(21) असल में बिहारी के अध्यवसाय की हद न थी, कुछ-न-कुछ किए बिना रहना उसके लिए मुश्किल था - हालाँकि यश की प्यास, दौलत का लोभ और गुजर-बसर के लिए कमाने-धमाने की उसे बिलकुल जरूरत न थी। कॉलेज की ...Read Moreहासिल करने के बाद पहले वह इंजीनियरिंग सीखने के लिए शिवपुर में दाखिल हुआ था। उसे जितना सीखने का कौतूहल था और हाथ के जितने भर हुनर की वह जरूरत महसूस करता था - उतना भर हासिल कर लेने के बाद ही वह मेडिकल कॉलेज में भर्ती हो गया। महेंद्र साल भर पहले डिग्री ले कर मेडिकल कॉलेज गया था।
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 22
(22) ध्यान में यही आया और अटल विश्वास बन गया। अधीर हो कर वह उसी दम माँ के कमरे में गया। रोशनी वहाँ भी न थी, लेकिन राजलक्ष्मी बिस्तर पर लेटी थीं - यह अँधेरे में भी दिखा। महेंद्र ...Read Moreरंजिश में कहा - माँ, तुम लोगों ने विनोदिनी से क्या कहा। राजलक्ष्मी बोलीं- कुछ नहीं। महेंद्र - तो वह कहाँ गई? राजलक्ष्मी- मैं क्या जानूँ? महेंद्र ने अविश्वास के स्वर में कहा - तुम नहीं जानतीं? खैर उसे तो मैं जहाँ भी होगी, ढूँढ़ ही निकालूँगा। महेंद्र चल पड़ा। राजलक्ष्मी झट-पट उठ खड़ी हुईं और उसके पीछे-पीछे चलती हुई
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 23
(23) बातों-ही-बातों में मजाक साफ चिकोटी गहरी होने लगी। विनोदिनी बिहारी से निहोरा कर आई थी - निहायत ही रोज-रोज लिखते न बने, तो कम-से-कम हफ्ते में दो बार तो दो पंक्तियाँ जरूर लिखे। आज ही बिहारी की चिट्ठी ...Read Moreयह उम्मीद नहीं के बराबर ही थी, लेकिन आकांक्षा ऐसी बलवती हो कि वह दूर-संभावना की आशा भी विनोदिनी न छोड़ सकी। उसे लगने लगा, जाने कब से कलकत्ता छूट गया है! गाँव में महेंद्र को ले कर किस कदर उसकी निंदा हुई थी, दोस्त-दुश्मन की दया से यह उसकी अजानी न रही। शांति कहाँ! गाँव के लोगों से उसने
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 24
(24) आशा संकोची बैठी रही। महेंद्र ने भी कुछ न कहा। चुपचाप छत पर टहलने लगा। चाँद अभी तक उगा न था। छत के एक कोने में छोटे-से गमले के अंदर रजनीगंधा के दो डंठलों में दो फूल खिले ...Read Moreछत पर के आसमान के वे नखत, वह सतभैया, वह काल-पुरुष, उनके जाने कितनी संध्या के एकांत प्रेमाभिनय के मौन गवाह थे - आज वे सब टुकुर-टुकुर ताकते रहे। महेंद्र सोचने लगा - इधर के इन कई दिनों की इस विप्लव-कथा को इस आसमान के अँधेरे से पोंछ कर ठीक पहले की तरह अगर खुली छत पर चटाई डाले आशा
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 25
(25) उसी गंभीर भाव से सिलाई करती हुई विनोदिनी बोली - भाई साहब, तुम यहाँ नहीं रहोगे। अपने उठते हुए आग्रह पर चोट पा कर महेंद्र व्याकुल हो उठा। गदगद स्वर में बोला - क्यों, तुम मुझे दूर क्यों ...Read Moreचाहती हो? तुम्हारे लिए सब-कुछ छोड़ने का यही पुरस्कार है? विनोदिनी - अपने लिए मैं तुम्हें सब-कुछ न छोड़ने दूँगी। महेंद्र कह उठा- अब वह तुम्हारे हाथ की बात नहीं - सारी दुनिया मेरी चारों तरफ से खिसक पड़ी है - बस, एक तुम हो - तुम विनोद... कहते-कहते विह्वल हो कर महेंद्र लौट पड़ा और विनोदिनी के पैरों को
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 26
(26) पहले तो कोई जवाब न मिला। फिर आवाज दी- कौन है? इस पर महेंद्र चुपचाप कमरे में आया। आशा खुश तो क्या होती, महेंद्र की लज्जा देख कर लज्जा से उसका हृदय भर गया। अब महेंद्र को अपने ...Read Moreमें ही चोर की तरह आना पड़ा है। ज्योतिषी जी और उनकी बहन के रहने से उसे और भी शर्म आई। दुनिया-भर के सामने अपने स्वामी के लिए लाज ही आशा को दु:ख से बड़ी हो उठी थी। और अब राजलक्ष्मी ने धीमे से कहा - बहू, पार्वती से कह दो, महेंद्र का खाना लगा दो, तो आशा बोली -
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 27
(27) महेंद्र - वे हैं कहाँ? आशा - अपने सोने के कमरे में हैं। नींद नहीं आ रही है। महेंद्र - अच्छा, चलो, उन्हें देख आऊँ। बहुत दिनों के बाद आशा से इतनी-सी बात करके महेंद्र जैसे हल्का हुआ। ...Read Moreदुर्भेद्य किले की दीवार-सी नीरवता मानो उन दोनों के बीच स्याह छाया डाले खड़ी थी - महेंद्र की ओर से उसे तोड़ने का कोई हथियार न था, ऐसे समय आशा ने अपने हाथों किले में एक छोटा-सा दरवाजा खोल दिया। आशा सास के कमरे के दरवाजे पर खड़ी रही। महेंद्र गया। उसे असमय में अपने कमरे में आया देख कर
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 28
(28) विनोदिनी का वह दुबला-पीला चेहरा देख कर महेंद्र के मन में ईर्ष्या जल उठी। उसमें ऐसी कोई शक्ति नहीं कि वह बिहारी की चिंता में लगी इस तपस्विनी को जबरदस्ती उखाड़ सके? गिद्ध जैसे मेमने को झपट्टा मार ...Read Moreदेखते-ही-देखते अपने अगम अभ्रभेदी पहाड़ के बसेरे में ले भागता है, क्या वैसी ही कोई मेघों से घिरी दुनिया की निगाहों से परे जगह नहीं, जहाँ महेंद्र अकेला अपने इस सुंदर शिकार को कलेजे के पास छिपा कर रख सके? विरह की जलन स्त्रियों के सौंदर्य को सुकुमार कर देती है, ऐसा महेंद्र ने संस्कृत काव्यों में पढ़ा था। आज
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 29
(29) पूजनीय मौसी, तुम्हारे सिवाय आज मेरा कोई नहीं। एक बार आओ और अपनी इस दुखिया को अपनी गोद में उठा लो, वरना मैं जिऊँगी कैसे! क्या लिखूँ, नहीं जानती। चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम। तुम्हारी प्यारी चुन्नी अन्नपूर्णा काशी ...Read Moreआईं। धीरे-धीरे राजलक्ष्मी के कमरे में जा कर उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों की धूल माथे ली। बीच में इस बिलगाव के बावजूद अन्नपूर्णा को देख कर राजलक्ष्मी ने मानो कोई खोई निधि पाई। उन्हें लगा, वे मन के अनजान ही अन्नपूर्णा को चाह रही थीं। इतने दिनों के बाद आज पल-भर में ही यह बात स्पष्ट हो उठी कि
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 30
(30) लेकिन इन चिंताओं और संकोच का मौका ही न रहा। हवेली में पहुँचते ही आशा दौड़ी-दौड़ी आई और बिहारी से बोली - भाई साहब, जरा जल्दी आओ, माँ को देखो जल्दी! बिहारी से आशा की खुल कर बातचीत ...Read Moreपहली थी। दुर्दिन का मामूली झटका सारी रुकावटों को उड़ा ले जाता है - जो दूर-दूर रहते हैं, बाढ़ उन सबको अचानक एक सँकरी जगह में इकट्ठा कर देती है। आशा की इस संकोचहीन अकुलाहट से बिहारी को चोट लगी। इस छोटे-से वाकए से ही वह समझ सका कि महेंद्र अपनी गिरस्ती की कैसी मिट्टी पलीद कर गया है। बिहारी
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 31
(31) गाड़ी यमुना के निर्जन तट पर सुंदर ढंग से लगाए एक बगीचे के सामने आ कर रुकी। महेंद्र हैरत में पड़ गया। किसका है यह बगीचा? इसका पता विनोदिनी को कैसे मालूम हुआ? फाटक बंद था। चीख-पुकार के ...Read Moreबूढ़ा रखवाला बाहर निकला। उसने कहा - बगीचे के मालिक धनी हैं, बहुत दूर नहीं रहते। उनकी इजाजत ले आएँ तो यहाँ ठहरने दूँगा। विनोदिनी ने एक बार महेंद्र की तरफ देखा। बगीचे के सुंदर घर को देख कर महेंद्र लुभा गया था - बहुत दिनों के बाद कुछ दिनों के लिए रुकने की उम्मीद से वह खुश हो गया।
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 32
(32) विनोदिनी की इस झिड़की से महेंद्र ने अपने में अपनी श्रेष्ठता के अनुभव की कोशिश की। उसके मन ने कहा - मैं विजयी होऊँगा - इसके बंधन तोड़ कर चला जाऊँगा। भोजन करके महेंद्र रुपया निकालने बैंक गया। ...Read Moreनिकाला और आशा तथा माँ के लिए कुछ नई चीजें खरीदने के खयाल से वह बाजार की दुकानों में घूमने लगा। विनोदिनी के दरवाजे पर एक बार फिर धक्का पड़ा। पहले तो आजिजी से उसने कोई जवाब ही न दिया; लेकिन जब बार-बार धक्का पड़ने लगा तो आग-बबूला हो कर दरवाजा खोलते हुए उसने कहा - नाहक क्यों बार-बार मुझे
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 33
(33) बिहारी को देख कर आशा को थोड़ा भरोसा हुआ। बोली - तुम्हारे जाने के बाद से माँ और भी अकुला उठी हैं, भाई साहब। पहले दिन जब तुम न दिखाई पड़े तब उन्होंने पूछा - बिहारी कहाँ गया? ...Read Moreकहा - वे एक जरूरी काम से बाहर गए हैं। बृहस्पति तक लौट आएँगे। उसके बाद से वे रह-रह कर चौंक-चौंक पड़ती हैं। मुँह से कुछ नहीं कहतीं लेकिन अंदर-ही-अंदर मानो किसी की राह देख रही हैं। कल तुम्हारा तार मिला। मैंने उन्हें बताया, तुम आ रहे हो। उन्होंने आज तुम्हारे लिए खास तौर से खाने का इंतजाम करवाने को
  • Read Free
आँख की किरकिरी - 34 - अंतिम भाग
(34) आशा ने कहा - मन में कोई गाँठ मैं रखना तो नहीं चाहती हूँ मौसी, सब भूल जाना ही चाहती हूँ, मगर भूलते ही तो नहीं बनता। अन्नपूर्णा बोलीं - तू ठीक ही कहती है बिटिया, उपदेश देना ...Read Moreहै, कर दिखाना ही मुश्किल है। फिर भी मैं तुझे एक उपाय बताती हूँ। जी-जान से इस भाव को कम-से-कम रखो, मानो भूल गया है। पहले बाहर से भुलाना शुरू कर, तभी भीतर से भी भूल सकेगी। आशा ने सिर झुकाए हुए कहा - बताओ, मुझे क्या करना होगा? अन्नपूर्णा बोलीं - बिहारी के लिए विनोदिनी चाय बना रही है
  • Read Free

Best Hindi Stories | Hindi Books PDF | Hindi Fiction Stories | Rabindranath Tagore Books PDF Matrubharti Verified

More Interesting Options

  • Hindi Short Stories
  • Hindi Spiritual Stories
  • Hindi Fiction Stories
  • Hindi Motivational Stories
  • Hindi Classic Stories
  • Hindi Children Stories
  • Hindi Comedy stories
  • Hindi Magazine
  • Hindi Poems
  • Hindi Travel stories
  • Hindi Women Focused
  • Hindi Drama
  • Hindi Love Stories
  • Hindi Detective stories
  • Hindi Moral Stories
  • Hindi Adventure Stories
  • Hindi Human Science
  • Hindi Philosophy
  • Hindi Health
  • Hindi Biography
  • Hindi Cooking Recipe
  • Hindi Letter
  • Hindi Horror Stories
  • Hindi Film Reviews
  • Hindi Mythological Stories
  • Hindi Book Reviews
  • Hindi Thriller
  • Hindi Science-Fiction
  • Hindi Business
  • Hindi Sports
  • Hindi Animals
  • Hindi Astrology
  • Hindi Science
  • Hindi Anything

Best Novels of 2023

  • Best Novels of 2023
  • Best Novels of January 2023
  • Best Novels of February 2023

Best Novels of 2022

  • Best Novels of 2022
  • Best Novels of January 2022
  • Best Novels of February 2022
  • Best Novels of March 2022
  • Best Novels of April 2022
  • Best Novels of May 2022
  • Best Novels of June 2022
  • Best Novels of July 2022
  • Best Novels of August 2022
  • Best Novels of September 2022
  • Best Novels of October 2022
  • Best Novels of November 2022
  • Best Novels of December 2022

Best Novels of 2021

  • Best Novels of 2021
  • Best Novels of January 2021
  • Best Novels of February 2021
  • Best Novels of March 2021
  • Best Novels of April 2021
  • Best Novels of May 2021
  • Best Novels of June 2021
  • Best Novels of July 2021
  • Best Novels of August 2021
  • Best Novels of September 2021
  • Best Novels of October 2021
  • Best Novels of November 2021
  • Best Novels of December 2021
Rabindranath Tagore

Rabindranath Tagore Matrubharti Verified

Follow

Welcome

OR

Continue log in with

By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"

Verification


Download App

Get a link to download app

  • About Us
  • Team
  • Gallery
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms of Use
  • Refund Policy
  • FAQ
  • Stories
  • Novels
  • Videos
  • Quotes
  • Authors
  • Short Videos
  • Free Poll Votes
  • Hindi
  • Gujarati
  • Marathi
  • English
  • Bengali
  • Malayalam
  • Tamil
  • Telugu

    Follow Us On:

    Download Our App :

Copyright © 2023,  Matrubharti Technologies Pvt. Ltd.   All Rights Reserved.