ममता की परीक्षा - 69

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रजनी की जब नींद खुली, सुबह के सात बज रहे थे। बाहर से आती हलचल की आवाजें सुनकर ऐसा लग रहा था कि अस्पताल में लोगों की आवाजाही बढ़ गई है, गहमागहमी शुरू हो गई है। कुछ देर तक वह बेड पर निश्चेष्ट पड़ी रही और शून्य में घूरती रही। वह छत पर लगे पंखे को लगातार घूरे जा रही थी जो ऐसा लग रहा था मानो थककर आराम फरमा रहा हो, ये और बात है कि कमरा पूरी तरह वातानुकूलित था सो पंखे की आवश्यकता ही नहीं थी, उसे आराम तो करना ही था। आँखें शून्य में घूर रही