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Mamta ki Pariksha by राज कुमार कांदु | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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ममता की परीक्षा by राज कुमार कांदु in Hindi
Novels

ममता की परीक्षा - Novels

by राज कुमार कांदु Matrubharti Verified in Hindi Fiction Stories

(497)
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साथियों , नमस्कार ! एक तस्वीर पर आधारित छोटी सी कहानी लिखने की मंशा से शुरू हुई यह कहानी लगभग 140 कड़ियों तक विस्तार पा चुकी है । इसके बावजूद आपको यह कहानी बोर होने का मौका शायद ही ...Read More। निवेदन है आप इसे नियमित पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराते रहें जिससे गलतियों को महसूस कर भविष्य के लेखन को सुधारा जा सके । सादर ममता की परीक्षा ( भाग - १ )रजनी कॉलेज में प्रथम वर्ष की छात्रा थी। बेहद खूबसूरत, गौरवर्णीय व छरहरे कद काठी की स्वामिनी उन्नीस वर्षीया रजनी खुद को किसी फिल्मी हीरोइन

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ममता की परीक्षा - Novels

ममता की परीक्षा - 1
साथियों , नमस्कार ! एक तस्वीर पर आधारित छोटी सी कहानी लिखने की मंशा से शुरू हुई यह कहानी लगभग 140 कड़ियों तक विस्तार पा चुकी है । इसके बावजूद आपको यह कहानी बोर होने का मौका शायद ही ...Read More। निवेदन है आप इसे नियमित पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराते रहें जिससे गलतियों को महसूस कर भविष्य के लेखन को सुधारा जा सके । सादर ममता की परीक्षा ( भाग - १ )रजनी कॉलेज में प्रथम वर्ष की छात्रा थी। बेहद खूबसूरत, गौरवर्णीय व छरहरे कद काठी की स्वामिनी उन्नीस वर्षीया रजनी खुद को किसी फिल्मी हीरोइन
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ममता की परीक्षा - 2
और फिर क्या था ? रजनी ने अपनी योजना को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया। अमर लाख संस्कारी सही लेकिन रजनी के रूप यौवन से कब तक गाफिल रहता ? आखिर एक बार फिर कोई अप्सरा किसी ऋषि ...Read Moreकी तपस्या भंग करने में सफल हुई थी। रजनी के इशारों में छिपे आमंत्रण से अमर अनजान न था और फिर एक दिन दोनों मिले। दिल की बातें कीं, अपने अपने प्यार का इजहार किया और फिर एक दूसरे में खोए ख्वाबों के हसीन रथ पर सवार दोनों प्रेमनगर की डगर पर अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गए।हालाँकि पहले
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ममता की परीक्षा - 3
"जी !" अमर ने पूरे आत्मविश्वास से जवाब दिया। दरवाजा खोलकर उसे कार के अंदर आने का ईशारा करते हुए जमनादास जी ने अटैची उसकी तरफ बढ़ाया। अमर अभी भी असमंजस में बाहर ही खड़ा था। सेठ जमनादास ने ...Read Moreतरह से अटैची बाहर खड़े अमर के हाथों में जबरदस्ती थमा दिया। सवालिया नजरों से जमनादास जी की तरफ देखते हुए अमर ने अनजाने ही वह अटैची थाम लिया और यही वो पल था जब किसी कैमरे के फ्लैश चमके। जमनादास जी के हाथों से अटैची थामते हुए अमर की तस्वीर किसी कैमरे में कैद हो गई थी, लेकिन यह
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ममता की परीक्षा - 4
घुटनों में मुँह छिपाए अमर बड़ी देर तक सिसकता रहा। बड़ी देर तक उसके कानों में रजनी की आवाज गूँजती रही, 'अमर ! मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ।' अमर को ऐसा लग रहा था जैसे उसका ...Read Moreफट जाएगा। दोनों हाथों से जोर से अपने सिर को दबाए हुए वह चीख पड़ा, "नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता !" सड़क से गुजर रहे राहगीरों ने ठिठक कर उसकी तरफ देखा और फिर उसे रोते हुए देखकर अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए। अमर जानता था यहाँ उसे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था। किसे फुर्सत थी जो
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ममता की परीक्षा - 5
अमर से विदा लेकर आगे बढ़ रही रजनी की आँखों के सामने अमर का वह उदास मगर रूखापन लिए हुए चेहरा बार बार नजर आ रहा था। बहुत सोचने के बाद भी उसकी समझ में यह नहीं आ रहा ...Read Moreकि अचानक ऐसा क्या हो गया जिसकी वजह से अमर उससे इस कदर अपरिचितों जैसा व्यवहार करने लगा था। उसने अमर की निगाहों में अपने लिए हमेशा दीवानगी की हद तक प्यार झलकते हुए देखा था। आज अमर का व्यवहार ठीक इसके विपरीत पाकर रजनी बेचैन हो गई थी। विचारों के इसी उधेड़बुन में रजनी काऱ चलाते हुए अपने कॉलेज
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ममता की परीक्षा - 6
बिरजू ! हाँ, यही नाम था उसका। उम्र लगभग बाइस वर्ष। हट्टा कट्टा मजबूत कसरती बदन का स्वामी ! प्राथमिक शिक्षा उत्तीर्ण करके वह जुट गया था घर के पुश्तैनी काम खेती किसानी में। मेहनत कश होने के साथ ...Read Moreउसे कुश्ती का भी खासा शौक था। इस बार उसने खेत के बड़े हिस्से में गन्ने की खेती की हुई थी। गन्ने की बहुत अच्छी पैदावार हुई थी। निश्चिंत बिरजू अपने तीन मित्रों के साथ घूमते टहलते गाँव से बड़ी दूर उस झील की तरफ आ गया था जिसे भूतिया झील समझ कर कोई भी गाँव वाला उधर फटकने की
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ममता की परीक्षा - 7
बिरजू तैरते हुए बड़ी तेजी से सुधीर की तरफ बढ़ रहा था कि तभी रजनी को पता नहीं क्या सुझा, वह भागती हुई पुनः नीचे झील के किनारे पहुँच गई और बिरजू की तरफ हाथ उठा उठा कर चिल्लाने ...Read More"भैया ! उसके करीब नहीं जाना ! ...उसके करीब नहीं जाना !" इसी के साथ उसने अपने दुपट्टे के एक कोने में वहीं पड़े कुछ कंकर बाँधे और फिर उसे लपेटकर पूरी शक्ति से बिरजू की तरफ फेंक दिया। रजनी की आवाज सुनकर बिरजू एक पल के लिए थम गया और फिर अगले ही पल रजनी को अपना दुपट्टा फेंकते
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ममता की परीक्षा - 8
सुधीर की इस अप्रत्याशित हरकत से रजनी हड़बड़ाकर पीछे सरक गई और फिर स्थिति का भान होते ही अपने कदमों में झुके हुए सुधीर को दोनों कंधों से पकड़कर उसे सांत्वना देने का प्रयास करने लगी।"मुझे माफ़ कर दो ...Read More! मैं भटक गया था। बिरजू की बहन बसंती हमारी सगी बहन से भी बढ़कर थी। कुएं से निकालने के बाद उसकी अवस्था देखकर समस्त शहरी लड़कों और लड़कियों से घृणा सी हो गई थी। उन शहरी दरिंदों ने बड़ी बुरी तरह उसे नोंचा खसोटा था। सिर्फ़ सोलह साल की वह मासूम कितना रोई होगी, तड़पी होगी, गिड़गिड़ाई होगी उन
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ममता की परीक्षा - 9
रजनी की आँखों से बहते आँसू देखकर सुधीर और बिरजू को भी अहसास हो गया था कि कोई बहुत खास बात है जिससे यह लड़की परेशान हो गई है,.. लेकिन क्या ? राधे और मन्नू भी हैरत से रजनी ...Read Moreतरफ देखे जा रहे थे। उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, लेकिन कयास लगाने के अलावा वे सब और कुछ कर भी तो नहीं सकते थे। अभी तो उनमें से किसी को भी लड़की का नाम भी नहीं पता था। आँखों में उमड़ आई गंगा जमुना को बाहर आने से रोकने का भरसक प्रयास करते हुए रजनी
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ममता की परीक्षा - 10
' ............और फिर तुम्हारा उसके पिताजी के बारे में झूठ बोलना कि वो तुमसे मिले थे और तुमसे ये सब बातें की थीं। क्या मिलेगा तुम्हें उससे झूठ बोलकर ? वो झूठ जो उसे पता चल ही जायेगा।' तभी ...Read Moreदिल ने सरगोशी की थी। ' यह झूठ बोलने में भी मेरी आगे की सोच है। मैं जब कोई फैसला करता हूँ तो बहुत आगे तक का सोच समझकर करता हूँ। तुम नहीं समझोगे, बस देखते जाओ.. आगे आगे क्या होता है, सब समझ जाओगे।' उसके दिमाग ने इतराते हुए कहा।अमर के दिल ने उसके दिमाग के सामने एक तरह
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ममता की परीक्षा - 11
रजनी ने कार कोठी के लॉन में खड़ी की और किताबें हाथ में संभाले कोठी के विशाल हॉल में दाखिल हो गई। हॉल में सोफे पर ही सेठ जमनादास बैठे अखबार के पन्ने पलट रहे थे। कल अमर से ...Read Moreकर आने के बाद से ही उनके दिमाग में कुछ कशमकश चल रहा था। अमर को लेकर उनके दिमाग में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे, इसीलिए वह कोई फैसला नहीं कर पा रहे थे। दरअसल अमर को देखते ही उन्हें आश्चर्य का झटका लगा था। उसे देख कर उन्हें अपने कॉलेज के जिगरी दोस्त गोपाल की याद आ
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ममता की परीक्षा - 12
रजनी ने आगे पढ़ना जारी रखा .........'....अब जबकि हकीकत तुम्हारे सामने है, मेरा तुमसे निवेदन है कि अगर तुमने कभी मुझे जरा भी प्यार किया हो तो उस प्यार का वास्ता, अपने पिता की बात मान कर जहाँ वो ...Read Moreशादी कर लेना। मुझे पूरा विश्वास है वो गलत फैसला नहीं करेंगे, तुम्हारी पसंद का पूरा ध्यान रखेंगे। हो सके तो मुझे भूला देना,.. और हाँ अभी जब तुम यह संदेश पढ़ रही होओगी मैं बस में बैठा हुआ हूँ और जा रहा हूँ किसी दूसरे शहर में, इस शहर से दूर, तुमसे दूर ! तुम्हारी यादों के सहारे जीवन
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ममता की परीक्षा - 13
अपने कुछ कपड़े बैग में डालकर अमर ने एक बार फिर ध्यान से पूरे कमरे में नजर दौड़ाया। कमरे में अब सामान के नाम पर उसका कुछ न था। बाहर वाले कमरे में दिख रही चारपाई व उसपर बिछा ...Read Moreमकान मालिक का ही था। पीछे के कमरे में छोटी सी रसोई थी जिसमें एक अदद स्टोव व कुछ बर्तन पड़े थे जिन्हें वह साथ ले जाने का इच्छुक नजर नहीं आ रहा था। बैग में अपने कपड़े सहेजने के बाद बड़े इत्मीनान से उसने एक बार फिर पूरे घर का मुआयना किया और अपना बैग उठाकर घर से बाहर
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ममता की परीक्षा - 14
जमनादास जी साधना की तस्वीर देखते ही बुरी तरह चौंक गए थे। अमर के कमरे में उसकी तस्वीर टंगी होने का सीधा सा मतलब निकलता था कि वह अमर की माँ होगी या फिर ऐसी ही कोई बहुत नजदीकी। ...Read Moreयह तो सिर्फ कयास होगा और कयास गलत भी साबित होते रहे हैं। पुष्टि करनी होगी, लेकिन कैसे ? अभी वह कुछ सोच समझ ही रहे थे कि रजनी के साथ लल्लन जी आते हुए दिखे। दूर से ही दोनों हाथ जोड़कर सेठ जमनादास जी का अभिवादन करते हुए लल्लन जी उनके बेहद करीब आ गए। "अमर अभी कुछ ही
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ममता की परीक्षा - 15
एम्बुलेंस में निश्चल पड़ी रजनी की बगल में बैठे सेठ जमनादास के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। चिंता की गहरी लकीरों के साथ ही मन मस्तिष्क में विचारों के बवंडर की स्पष्ट छाप भी उनके चेहरे पर स्पष्ट ...Read Moreआ रही थी। 'ये अचानक रजनी को क्या हो गया ?.. अमर के न मिलने का सदमा तो नहीं ? पता नहीं क्या दर्द झेल रही है मेरी बच्ची ? ' उसकी स्थिति का भान होते ही उन्होंने अपनी उल्टी हथेली उसके नथुने के सामने रखकर उसकी साँसों का जायजा लिया। साँसें सुचारू रूप से चलती महसूस कर जमनादास जी
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ममता की परीक्षा - 16
खिलखिलाते हुए साधना ने अपनी पतली कलाई पर बंधी घड़ी देखी और फिर गोपाल की तरफ देखा जो एकटक उसी की तरफ देख रहा था। मानो उस की हाँ का इंतजार कर रहा हो। अपने तय समय से दस ...Read Moreअधिक हो गया था और बस का अभी कहीं कोई पता न था। 'कहीं ये लड़का सही तो नहीं कह रहा ? शायद सही ही हो, झूठ क्यों कहेगा ? और फिर कॉलेज ही तो जाना है, इसमें उसका क्या फायदा ? चलो चलते हैं। बस के चक्कर में कहीं देर हो गई तो पंडित मैडम बहुत डाँटेंगी। आज इकोनॉमिक्स
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ममता की परीक्षा - 17
रुकते रुकते भी कार थोड़ा आगे बढ़ गई थी। गोपाल ने खिड़की से सिर बाहर निकालकर पीछे देखा। वह पीले कुर्ती वाली लड़की सड़क के किनारे फुटपाथ पर झुकी हुई अपने पैरों में कुछ देख रही थी। कार की ...Read Moreउसका ध्यान नहीं गया था अब तक सो गोपाल उसका ध्यान आकृष्ट करने की नियत से उसकी तरफ देखकर हाथ हिलाते हुए चिल्लाया, हाय ! .......हाय !" "क्या हाय हाय लगा रखी है। जरा प्यार से बुला न, 'ओ बहनजी ! जरा सुनिए।" जमनादास ने उसे चिढ़ाते हुए उस बस स्टॉप वाले आदमी की नकल उतारते हुए कहा। सुनते ही
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ममता की परीक्षा - 18
कार कॉलेज के प्रांगण में निर्धारित पार्किंग में जाकर एक झटके से रुकी और अतीत में खोए जमानदास किसी की आहट से वर्तमान में लौट आए। अस्पताल के बेंच पर बैठे जमनादास अचानक चौंक गए सामने खड़ी डॉक्टर सुमन ...Read Moreको देखकर जिसके चेहरे पर खुशी के भाव थे। दरअसल सुमन ने सभी परीक्षण पूर्ण होने व सभी रिपोर्ट्स सामान्य पाए जाने के बाद राहत की साँस ली थी। रजनी को अब कोई खतरा नहीं था। हालांकि उसकी ऐसी अवस्था क्यों हुई वह इस सवाल पर अपनी राय कायम नहीं कर पाईं थीं। जमनादास शायद इस बारे में कुछ बेहतर
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ममता की परीक्षा - 19
डॉक्टर सुमन की केबिन से बाहर आकर जमनादास उसी बेंच पर बैठ गए जहाँ वह कुछ देर पहले तक बैठे हुए थे। उन्होंने जानबूझकर किसी को खबर नहीं किया था नहीं तो मिलने आनेवालों का तांता लग गया होता। ...Read Moreअपना फोन भी बंद रखा हुआ था। जब से वह रजनी के साथ घर से निकले थे लगातार उसी का निरीक्षण करते जा रहे थे। उसके हर हावभाव का वह बारीकी से अध्ययन कर रहे थे। अमर के प्रति उसकी दीवानगी को महसूस कर रहे थे। रजनी और अमर की दीवानगी के बारे में सोचते व मनन करते हुए कब
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ममता की परीक्षा - 20
अमर की बस को चले हुए लगभग आधा घंटा हो चुका था। बस के बारे में बिना कोई पूछताछ किये ही वह बस में सवार हो गया था। उसे नहीं पता था कि बस कहाँ जानेवाली थी। उसे तो ...Read Moreभी तरह वहाँ से निकलना था, रजनी की नजरों का सामना करने से बचना था। काफी देर के बाद कंडक्टर उसके पास आया टिकट देने के लिए तब उसने पूछ लिया, "बस कहाँ तक जाएगी कंडक्टर साहब ?" कंडक्टर ने उसे घूरकर तीखी नजरों से देखा और उसे बताते हुए ऐसा जताया मानो बहुत बड़ा अहसान कर रहा हो। कंडक्टर
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ममता की परीक्षा - 21
गोपाल वहीं खड़ा साधना को तब तक देखता रहा जब तक वह कॉलेज की इमारत में घुस कर उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गई। जमनादास उसके सर पर हलकी चपत लगाते हुए बोला, "अबे, क्या देख रहा है ...Read More..गई वो ! चल, नहीं तो मैडम पंडित मुर्गा बना देंगी। पता है न वह किसी की नहीं सुनती ?""अमां यार जमना !.. अब मुर्गा बनने की फ़िक्र किसे है जब वो लड़की तुम्हारे सामने ही हमें मुर्गा बना गई ?.. अच्छा, ये तो बता ! क्या मैंने कुछ गलत कह दिया था ? उसका हालचाल ही तो पूछा था
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ममता की परीक्षा - 22
ममता की परीक्षा ( भाग - 22 ) कुछ देर बाद तीनों शहर में एक चौराहे के नजदीक एक रेस्टोरेंट में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे। चाय की चुस्कियों के बीच ही साधना ने अपने बारे में ...Read Moreबात गोपाल को बता दी थी।उसके पिता श्री किशुनलाल एक शिक्षक हैं। वह सुजानपुर गाँव में रहते हैं। ग्रामीण परिवेश में रहने के बावजूद वह प्रगतिशील विचारों वाले इंसान हैं। उनके विचार उनकी बातों तक ही सिमित नहीं बल्कि उनके विचार उनके आचरण में भी झलकते हैं। उनकी नजर में बेटी या बेटे में कोई फर्क नहीं है तभी तो
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ममता की परीक्षा - 23
बस सुजानपुर पहुँच चुकी थी। गाँव के चौराहे पर पहुँच कर ड्राईवर ने बस घुमाकर पुनः जिधर से आई थी उसी दिशा में उसका मुँह कर दिया। बस के रुकते ही सवारियां एक एक कर उतरने लगीं। अमर ने ...Read Moreअपना बैग लिया और उतरने की तैयारी करने लगा। दुलारे काका उसके आगे ही कतार में थे और धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे। बस से उतरकर दुलारे ने वात्सल्य भाव से अमर की तरफ देखा और बोला, "बेटा, चौधरी रामलाल जी का घर यहाँ से थोड़ी ही दूर है। आगे अँधेरा भी है और रास्ता भी ख़राब है। तुम
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ममता की परीक्षा - 24
जमनादास को उसके बंगले के सामने उतारकर गोपाल ने कार अपने बंगले की तरफ बढ़ा दिया। कार बंगले के मुख्य दरवाजे के सामने खड़ी करके गोपाल ने फुर्ती से उतरकर पिछला दरवाजा खोला। उसने मुस्कुराते हुए साधना का दायाँ ...Read Moreथाम लिया और फिर बड़ी अदा से झुकते हुए उसका स्वागत किया, "वेलकम डिअर ..एट माय होम !" लजाती सकुचाती साधना ने धीरे से अपना एक पग बाहर निकाला और फिर कार से उतरकर सामने स्थित विशाल हवेली नुमा बंगले को देखने लगी। यह एक बहुत बड़ा और आलिशान बंगला था जिसपर एक तरफ अंग्रेजी के अक्षरों से बड़े ही
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ममता की परीक्षा - 25
" बेटा ! तुम समझ नहीं रहे हो। मैं तो तुम्हारी खुशियाँ ही चाहती हूं, लेकिन तुम हो कि समझ नहीं रहे हो।" अपने लहजे में थोड़ी नरमी लाते हुए बृंदा ने कहा और फिर मन ही मन बुदबुदाई ...Read Moreही कहा है प्यार अँधा होता है।"तभी नजदीक ही खड़ी साधना ने माँ बेटे की इस बहस में पहली बार अपनी जुबान खोली," सही कहा माँ जी आपने ! प्यार अँधा होता है, तभी तो प्यार को प्यार के अलावा और कुछ भी नहीं दिखता है। दुनिया में फैली ये ऊँच नीच, अमीर गरीब , छोटा बड़ा , जैसी बीमारियाँ
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ममता की परीक्षा - 26
बसंती कुछ देर तक चुल्हे के नजदीक बैठी रही। कुछ देर बाद चुल्हे पर रखी सब्जी के पक जाने का इत्मीनान होने के बाद उसे उतारकर चुल्हे के नजदीक ही रख दिया और फिर बाहर आ गई। यूँ तो ...Read Moreअक्सर अपनी माँ के साथ ही दिशा शौच के लिए खेतों में जाती थी लेकिन आज वह अकेली रह गई थी। सब्जी पकाने की उसकी जिम्मेदारी के चलते न चाहते हुए भी उसे रुकना पड़ा था। उसकी माँ को गए दस मिनट से अधिक हो चुके थे। माथे पर छलक आये पसीने को अपने दुपट्टे से पोंछते हुए उसने धीमे
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ममता की परीक्षा - 27
जमनादास के बंगले से निकलकर गोपाल और साधना एक बार फिर सड़क पर आ गए थे। दोनों सड़क पर ख़ामोशी से चल रहे थे। उन्हें देखकर किसी को भी इस बात का अहसास नहीं हो सकता था कि कितना ...Read Moreतूफान उनकी जिंदगी में दस्तक दे चुका था। ऊपरी ख़ामोशी के बावजूद दोनों के दिमाग में विचारों के अंधड़ चल रहे थे। सड़क किनारे 'अहिल्याबाई महिला छात्रावास ' का बोर्ड देखकर दोनों के कदम ठिठक गए। साधना को मानो अपनी स्थिति का भान हुआ। गोपाल से मुखातिब होते हुए बोली, " आपका बहुत बहुत धन्यवाद गोपाल जी ! आपने बहुत
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ममता की परीक्षा - 28
छात्रावास के मुख्य द्वार के पास साधना के आते ही गोपाल ने लपककर बक्सा उसके हाथों से ले लिया। गेट से परे हटकर उसने सड़क से जा रहे एक साइकिल रिक्शे वाले को हाथ के इशारे से रोका और ...Read Moreबिना उसे कुछ कहे हाथ का बक्सा रिक्शे में लाद दिया। नजदीक ही खड़ी साधना का हाथ थामकर रिक्शे पर बैठते हुए उसने रिक्शेवाले से बस अड्डे चलने के लिए कह दिया।कुछ ही मिनट बाद दोनों बस अड्डे में खड़ी सुजानपुर जानेवाली अंतिम बस में बैठे थे। बस के कंडक्टर ने, जो कि शायद सुजानपुर का ही था साधना को
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ममता की परीक्षा - 29
सीढ़ियों से उतरते हुए राजीव उर्फ़ रॉकी ने अपने सामने खड़े पापा गोपाल अग्रवाल को देखकर मुँह बिचकाया और सीढ़ियों पर ही रुक गया कि तभी उसके पीछे आ रही उसकी माँ सुशीला देवी ने पूछा, "क्या हुआ बेटा ...Read Moreरुक क्यों गया ?" " रुकूँ नहीं तो क्या करूँ मम्मा ! वो देखो आपके आदर्श वादी पति हमें कुछ ज्ञान देने के लिए मरे जा रहे हैं !" राजीव ने गोपाल के सामने ही उनका मजाक उड़ाया।सुशीलादेवी कुछ कहतीं कि उससे पहले गोपाल का बेबस सा स्वर सुनाई पड़ा, " देख लो सुशीला, अपने लाडले के संस्कार ! अब
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ममता की परीक्षा - 30
अपने चेहरे पर सूर्य के किरणों की तपिश महसूस कर गोपाल की नींद खुल गई। प्रतिदिन देर से सोने और देर तक सोने के आदि गोपाल को अपनी नींद में यह खलल नागवार गुजर रहा था लेकिन अपनी वस्तुस्थिति ...Read Moreभान होते ही उसकी सभी नाराजगी जाती रही। आँखें मसलते हुए वह खटिये पर ही उठ कर बैठ गया। खटिये पर बैठे बैठे ही उसने अपने चारों तरफ का निरीक्षण किया। रात में अंधेरे की वजह से वह वहाँ की स्थिति का सही अनुमान नहीं लगा सका था। मकान के सामने थोडी सी खाली जगह के बाद बेतरतीब उग आई
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ममता की परीक्षा - 31
साधना की खामोशी मास्टर रामकिशुन के सीने पर पल पल दबाव बढ़ाते जा रही थी। दिल के धड़कनों की गति के साथ ही रामकिशुन के चेहरे के भाव भी पल पल बदल रहे थे, और साधना उनके मनोभावों से ...Read Moreनजरें चुराते हुए कुछ कहने के लिए सही शब्दों का चयन कर रही थी। उसकी स्थिति 'एक तरफ कुआँ और एक तरफ खाई' जैसी हो गई थी। फिर भी उसे कुछ कहना तो था ही। खामोश कब तक रहती ? आखिर दिल कड़ा करके उसने कहना शुरू किया, "बाबूजी ! आप ही मेरी माताजी हो और आप ही मेरे प्यारे
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ममता की परीक्षा - 32
गोपाल नजदिक आ चुका था। परबतिया चाची उठते उठते अचानक रुक गई। उनके कानों में मास्टर रामकिशुन के स्वर गूँजने लगे थे, 'परबतिया भाभी, मैं स्कूल जा रहा हूँ। बच्चे अकेले हैं, जरा ध्यान रखना !' और फिर उन्होंने ...Read Moreबना लिया था वहीँ कुछ देर और जमे रहने का।'पता नहीं कौन लड़का है, कैसा है, और फिर रामकिशुन ने कहा है देखभाल करने के लिए तो कुछ सोच समझकर ही कहा होगा। आजकल किसी का भरोसा नहीं किया जा सकता। जुग जमाना वैसे ही ख़राब चल रहा है। बिना माँ की लड़की है अपनी साधना बिटिया ! कहीं कुछ
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ममता की परीक्षा - 33
"हाँ गोपाल बाबू ! मैं हर हाल में तुम्हारा साथ निभाऊँगी, बाबूजी नहीं माने तब भी। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे बाबूजी मेरी इच्छा का अनादर नहीं करेंगे! बस एक बार उनसे बात तो करके देखो।" साधना ...Read Moreकहा।साधना की आत्मविश्वास से भरी हुई बात सुनकर गोपाल को बड़ा बल मिला। उसके संबोधन से खुश गोपाल ख़ुशी से चहकते हुए बोला, "साधना, तुम बहुत अच्छी हो ...और अच्छे लोगों की मदद तो साक्षात् ईश्वर भी करते हैं। मुझे भी पूरा यकीन है कि बाबूजी हमारी इच्छा का अनादर नहीं करेंगे। हमारी ख़ुशी में ही अपनी खुशी समझेंगे। बस,
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ममता की परीक्षा - 34
साधना को परबतिया के घर से बाहर निकलते देख गोपाल की जान में जान आई। बाहर खटिये पर पड़े गमछे को आगे बढ़कर उठाते हुए उसने कहना शुरू किया, "कितनी तेज धूप है बाबूजी ! अभी थोड़ी ही देर ...Read Moreयह गीला गमछा यहाँ डाला था और अब देखो, पाँच मिनट भी नहीं हुए और यह सूख कर एकदम पपड़ी हो गया है।"गोपाल के मन में धूप को लेकर कोई बात नहीं थी बल्कि वह तो बस यही जताना चाहता था कि उनकी अनुपस्थिति में वह साधना के साथ घर में नहीं, बल्कि कहीं बाहर था मास्टर रामकिशुन ने उसकी
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ममता की परीक्षा - 35
मास्टर रामकिशुन की बात ख़त्म होते ही गोपाल ने पहले अपने आसपास नजर दौड़ाई और फिर बड़ी विनम्रता से कहना शुरू किया,"बाबूजी ! मुझे माफ़ कीजियेगा। इतनी देर हो गई आये हुए लेकिन मैं आपसे जो कहना चाहता था, ...Read Moreकी हिम्मत नहीं जुटा सका था। मेरा दिल चाहता था कि आपसे बात करके सब साफ़ कर दूँ लेकिन फिर अंतर्मन का चोर दिल पर हावी हो गया। जी हाँ, अंतर्मन का चोर ही मुझे आपसे बात करने के लिए बार बार मना कर रहा था। एक डर सा मन में समाया हुआ था कि 'आपसे बात होगी, पता नहीं
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ममता की परीक्षा - 36
मास्टर रामकिशुन की कही एक एक बात गोपाल के कानों में गूँज रही थी, अनवरत , लगातार। 'इन मजबूत धागों के बंधन से निजात पाना इतना भी आसान नहीं है बेटा !' ये वाक्य जैसे बम की मानिंद उसके ...Read Moreमें फट रहे थे। उसे अपना दिल बैठता हुआ सा महसूस हो रहा था। कितनी उम्मीद बंधी थी उसे मास्टर रामकिशुन के बारे में जानकर कि वह एक पढेलिखे और सुलझे हुए प्रगतिशील विचारों वाले इंसान थे। बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं समझते तो फिर बेटी की इच्छा का अवश्य सम्मान करेंगे। दकियानूसी विचारों के खिलाफ समाज से
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ममता की परीक्षा - 37
गोपाल के खामोश होते ही मास्टर रामकिशुन ने कहना शुरू किया, " जितनी आसानी से तुम ये बातें कह रहे हो न बेटा उतनी आसान नहीं हैं ये बातें! समाज की धारा को मोड़ना इतना आसान नहीं, लेकिन अगर ...Read Moreजैसे युवा आगे आएं और हम बुजुर्गों का उन्हें सहयोग मिले तो बात कुछ बन सकती है।" कहने के बाद मास्टर रामकिशुन कुछ पल को रुके और गोपाल की तरफ देखा जिसके बुझते चेहरे पर आशा की किरणें झिलमिलाने लगी थीं।"गोपाल, तुम पढ़े लिखे हो, समझदार हो ! मुझे तुम्हारे प्रस्ताव से इंकार नहीं है, लेकिन क्या तुम उसके बाद
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ममता की परीक्षा - 38
मास्टर रामकिशुन की नाराजगी के अहसास ने ही गोपाल के हाथ पाँव फुला दिए थे। कुछ और न सूझा तो सीधे उनके पैरों में ही गिर पड़ा, " बाबूजी, मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं यहाँ पहुँचने के साथ ही ...Read Moreसब सच सच बता देना चाहता था। सब कुछ सोच और समझ भी लिया था मैंने तो, बल्कि साधना से यह बात बताया भी था लेकिन पता नहीं क्यों, आपके सामने आते ही मेरी हिम्मत जवाब दे गई। तब उस समय मुझे दिल से महसूस हुआ कि सचमुच कभी कभी सच कहना कितनी बहादुरी का काम होता है, और जब
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ममता की परीक्षा - 39
"बारात आ गई .....बारात आ गई ! अरे मास्टर जी, चलो ! समधी की अगवानी करने नहीं चलोगे ?" चौधरी बन्ने शाह और परबतिया की तेज आवाज सुनकर गोपाल की नींद खुल गई। दोनों हाथों से जल्दी जल्दी आँखों ...Read Moreमसलते हुए गोपाल को अपने आसपास का वातावरण बदला बदला सा लगा जिसे देखकर उसे बड़ी हैरत हुई। शाम गहरा गई थी। रजनी ने अंधेरे का चादर तानना शुरू कर दिया था लेकिन आज वह निष्प्रभावी नजर आ रही थी क्योंकि मास्टर रामकिशुन के दरवाजे पर आज उजाले की विशेष व्यवस्था की गई थी। मिटटी के तेल से जलने वाले
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ममता की परीक्षा - 40
साधना की आवाज से गोपाल चौंका अवश्य था, लेकिन अगले ही पल अपनी स्थिति समझकर उसके चेहरे पर शर्मिंदगी और राहत के मिले जुले भाव उभर आए। राहत इसलिए क्योंकि उसे पता चल गया था कि अभी तक वह ...Read Moreकुछ भी अनुभव कर रहा था उसमें कोई सच्चाई नहीं थी बल्कि यह तो उसके दिमाग का एक वहम मात्र था, एक सपना था। अगले ही पल उसकी खोपड़ी घूम गई जब उसके दिल के किसी कोने में यह विचार कौंध गया 'क्या होगा यदि यह सपना सच हो गया तो ? ' कहते हैं कभी कभी सपने भी सच
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ममता की परीक्षा - 41
" बेटी, आज तुम्हारी माँ बहुत याद आ रही है। नन्हीं सी थीं तुम मात्र तीन साल की जब महामारी के प्रकोप की वजह से वह तुम्हें मुझे सौंपकर मुझसे हमेशा हमेशा के लिए बहुत दूर चली गई। तब ...Read Moreआज तक मैंने तुम्हें एक पिता का संबल ही नहीं एक माँ का प्यार और स्नेह देने का भी पूरा प्रयास किया है। कितना सफल हो सका हूँ इसका अहसास तो तुम्हें ही होगा बेटी।आज अगर तुम्हारी माँ जिंदा होतीं तो यह बात वही पूछतीं जो मैं तुमसे पूछने जा रहा हूँ। इस वक्त तुम मुझे अपना बाबूजी समझकर नहीं
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ममता की परीक्षा - 42
" गोपाल बेटा, साधना मेरी इकलौती संतान है। मेरे लिए वह बेटी के साथ साथ मेरा बेटा भी है। मुझे तुम पर पूरा यकीन है फिर भी यह नहीं चाहता कि तुम दोनों मुझसे दूर कहीं शहर में जाकर ...Read Moreजाओ। इसकी कई वजहें हैं बेटा ! जितनी आसानी से कह रहे हो न कि शहर में कोई नौकरी कर लेंगे, उतनी आसानी से नौकरी मिलती नहीं। चप्पल घिस जाते हैं लोगों के नौकरियों की तलाश करते करते और मान लो कोई छोटी मोटी नौकरी मिल भी गई तुम्हें तो तनख्वाह के नाम पर क्या पाओगे ? तीस दिन घिसने
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ममता की परीक्षा - 43
मास्टर को गमगीन अवस्था में बैठे देखकर गोपाल भी अधीर हो उठा था। क्या करे ? इस पंडित ने तो पूरा खेल ही ख़राब कर दिया था लेकिन गोपाल ने गजब की जीवटता का प्रदर्शन करते हुए कहा, "बाबूजी ...Read Moreकहाँ पंडितों के चक्कर में पड़े हो ? जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और आप हैं कि अभी तक इन ज्योतिषीय गुणा भाग में ही उलझे हैं। अब लोग अंजान नहीं रहे इन सबसे।" " बेटा, अभी तुम बच्चे हो ! हमने ये बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये है। इन्हीं पंडित जी की बताई हुई सभी भविष्यवाणियों को
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ममता की परीक्षा - 44
परबतिया अभी दालान पार भी नहीं कर पाई थी कि उसी समय साधना आंगन से निकल कर दालान में आ गई। परबतिया हाथ में पकड़े डंडे के सहारे वहीँ खड़ी हो गई। साधना को देखते ही प्यार से बोली, ...Read Moreखाना बन गया बेटी ? मैं तेरे पास ही आ रही थी।" साधना ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया, "जी काकी ! लगभग तैयार ही समझो। अभी सब्जी की कढ़ाई चुल्हे से उतारकर ही आ रही हूँ। बाबूजी खाने बैठें तो गरम गरम रोटियाँ सेंक दूँ।" दो पल की खामोशी के बाद उसने बड़े अपनेपन से परबतिया से पूछा, "मुझसे
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ममता की परीक्षा - 45
गोपाल की बात से सहमति जताते हुए मास्टर ने कहा, "बात तो तुम ठीक कह रहे हो बेटा, लेकिन तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह पढ़ी लिखी होने के साथ ही एक सुशील संस्कारी लड़की भी है... और ...Read Moreयहाँ यही विडम्बना है कि आज भी लडके या लड़कियाँ अपने शादी की बात करने लगें तो समाज उन्हें बेशर्म , बेहया , पागल, नासमझ और पता नहीं क्या क्या उपाधियाँ बिना माँगे दे देता है। शहरों की बात एकदम अलग है। वहाँ आधुनिकता और समझदारी की जो बयार बह रही है उसे इन गाँवों तक पहुँचने में शायद दशकों
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ममता की परीक्षा - 46
मास्टर की बात सुनकर गोपाल का मन मयूर ख़ुशी से झूम उठा। उसका दिल कह रहा था अभी भाग कर जाए अपनी साधना के पास और उसे यह खुशखबरी स्वयं सुनाये, लेकिन अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए उसने ...Read Moreको संयत रखा और उसके मुँह से निकला, "बाबूजी, इतनी जल्दी ? आखिर कैसे होगा इतनी जल्दी सब ?"" क्या कैसे होगा गोपाल ? हम गरीबों की शादी में क्या तैयारी करनी होती है ? परसों शादी है तो गाँव के लाला की दूकान पर से शादी का पूरा सामान, कपडे लत्ते , सब आज ही आ जायेंगे। कल सबके
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ममता की परीक्षा - 47
रात भर चलनेवाली रस्मों के समापन के साथ ही अब चहल पहल कुछ कम हो गई थी। रात भर खुद जलकर रोशनी लुटाने वाले दीये भी अब थक चुके थे और अपनी अंतिम साँसें ले रहे थे। अँधेरे से ...Read Moreकरते हुए उनका दम निकलने का समय आ गया था लेकिन दम निकलते निकलते भी अंततः उसने अँधेरे को दूर भगाकर ही छोड़ा। पूरब में पौ फट चुकी थी और किरण रश्मियाँ पूरब दिशा को रक्तिम आवरण पहना चुकी थीं। पेड़ों पर चिड़ियों ने चहचहाना शुरू कर दिया। मंडप में बैठा हुआ गोपाल विवाह की अनेक रस्मों से अब उकता
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ममता की परीक्षा - 48
सुबह गोपाल की नींद खुली। उसने अपने आसपास का जायजा लिया। यह एक छोटा सा कमरा था जिसके बीचोंबीच एक पलंग बिछी हुई थी। पहली नजर में कमरा तो साफसुथरा नजर आ रहा था लेकिन दीवारों पर खूंटियों के ...Read Moreबहुत सी अजीब अजीब चीजें टंगी हुई थीं। कपडे की कई पोटलियाँ भी खूँटीयों पर टंगी हुई थीं। साइकिल के दो पहिए भी एक तरफ दीवार की शोभा बढ़ा रहे थे। कमरे की यह हालत देखकर एक बार तो गोपाल को बरबस हँसी आ गई, लेकिन अगले ही पल उसे भान हुआ कि वह देहात के एक घर के एक
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ममता की परीक्षा - 49
गोपाल और साधना की शादी को लगभग एक महीना हो चुका था। गोपाल रोज सुबह जल्दी उठता और आँगन में ही नहाधोकर तैयार हो जाता और पैदल ही स्कूल पहुँच जाता। खुद खड़े होकर बच्चों से स्कूल की साफ़ ...Read Moreकरवा देता। आज एक महीने में उसने स्कूल के साथ ही आसपास के परिसर को भी स्वच्छ करवा दिया था। बच्चों को भी प्यार से स्वच्छता का महत्त्व समझाते हुए उन्हें भी स्वच्छ धुले हुए कपडे पहनना सीखा दिया था। स्कूल के तीनों कक्षा के सभी छात्र तो उससे खुश थे ही अन्य छात्र भी उससे काफी प्रसन्न रहते। अक्सर
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ममता की परीक्षा - 50
परबतिया की धीमी आवाज के बावजूद साधना को किसी हलचल का अहसास हो गया था और उसके जिस्म में हलकी सी हरकत हुई। उसने धीमे से अपनी आँखें खोल दीं। सामने ही गोपाल खड़ा था , हैरान परेशान साधना ...Read Moreचिंता में डूबा हुआ गम से बेजार ! उस पर नजर पड़ते ही साधना के होठों पर बेहद मासूम सी मुस्कराहट तैर गई और फिर अगले ही पल उसके गोरे गोरे गाल शर्म और हया की लाली समेटे लाल सुर्ख हो गए। उसकी मुस्कान और गहरी हो गई और उसने हलकी सी हँसी के साथ अपने दोनों हाथों में अपना
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ममता की परीक्षा - 51
जमनादास को पानी और एक कटोरे में गुड़ की डली देने के बाद साधना भी वहीँ उनके सामने ही जमीन पर बैठ गई। जमनादास उसको देखता ही रह गया। शहर में उसने जिस साधना को देखा था उससे काफी ...Read Moreतक लगी उसे गाँव में मिली यह साधना। कहाँ वह सलवार सूट और करीने से दुपट्टा लिये हुए, किताबें सीने से लगाए एक कॉलेज की छात्रा और कहाँ सुदूर गाँव में साड़ी में जमीन पर बैठी ठेठ देसी पहनावे के साथ मिट्टी के साथ ही अपने संस्कारों से भी गहराई से जुड़ी एक ग्रामीण बाला का रूप। इस देसी पहनावे
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ममता की परीक्षा - 52
दोनों के बीच हो रही बातचीत से साधना खुद को असहज महसूस कर रही थी। उसे गोपाल की बातों को सुनकर बड़ा आश्चर्य व दुःख भी हो रहा था। गोपाल की बातों से वह लेशमात्र भी सहमत नहीं थी। ...Read Moreमानना था 'माँ चाहे जैसी भी है हर हाल में माँ होती है। माँ की अहमियत उससे बेहतर कौन समझेगा ? माना कि बाबूजी ने उसका बहुत अच्छे से पालन पोषण किया ,उसे माँ की कमी महसूस न होने देने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन एक लड़की होने के नाते उसे हर कदम पर माँ की कमी महसूस होती रही
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ममता की परीक्षा - 53
गोपाल साधना के साथ गाँव के नुक्कड़ पर पहुँचा, जहाँ डॉक्टर बलराम सिंह की डिस्पेंसरी थी। डॉक्टर बलराम समय के पाबंद थे सो सही समय पर आ गए थे। डिस्पेंसरी के बाहर मरीजों की कतार लगी हुई थी। डॉक्टर ...Read Moreअंदर के हिस्से में किसी मरीज का चेकअप कर रहे थे।अमूमन उनका सहयोगी भोला राम नंबर के मुताबिक नाम पुकारता और फिर मरीज अपनी बारी आने पर डॉक्टर के कक्ष में प्रवेश पाता। सिरदर्द से बेहाल गोपाल मरीजों की कतार में जाकर खड़ा हो गया। जमनादास भी उसके साथ ही था। उनके साथ खड़ी साधना काफी परेशान नजर आ रही
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ममता की परीक्षा - 54
घर के लिए वापस आते हुए साधना को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके पैरों में मनों वजनी कोई भार बाँध दिया गया हो। एक एक पग उठाने के लिए उसे खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी। अधिकांश ...Read Moreवाले उससे सहानुभूति के साथ दिलासा देने का अपना दायित्व पूरा करते हुए अपने अपने घरों को लौट चुके थे। कुछ अभी भी उसके साथ थे और बोझिल क़दमों से धीरे धीरे चलते हुए उसका साथ दे रहे थे।साथ चलते हुए मास्टर रामकिशुन बेटी के मनोभावों से अनभिज्ञ न थे। आँखें उनकी भी डबडबाई हुई थीं। गम की अधिकता उनके
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ममता की परीक्षा - 55
साधना बड़ी देर तक तकिए में मुँह छिपाए सिसकती रही। बाहर खटिये पर बैठे मास्टर रामकिशुन भी कुछ बेचैन नजर आ रहे थे। रह रहकर उनकी नजर बरामदे में एक खूँटी से लटके लालटेन पर पड़ जाती जो कि ...Read Moreइस्तेमाल किये जाने के लिये अभी भी किसी के इंतजार में थी। अँधेरा घिर चुका था। अँधेरे में बैठे गुमसुम से मास्टर को यह शांत वातावरण जैसे काट खाने को दौड़ रहा था। अपनी बेटी की मनोस्थिति से वो अनभिज्ञ नहीं थे। इस समय साधना किस अंतर्द्वंद से गुजर रही होगी उन्हें इसका भली भाँति अहसास था। कई बार उसे
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ममता की परीक्षा - 56
गोपाल की तंद्रा टूटी तो उसने अपने आपको अस्पताल के एक बिस्तर पर पड़े पाया। यह कोई स्पेशल वार्ड था जिसमें उसका इकलौता बेड लगा हुआ था और बगल में दवाईयों की मेज भी थी जिनपर कई तरह की ...Read Moreरखी हुई थीं। नजदीक ही एक नर्स स्टूल पर बैठी किसी फाइल के पन्ने पलट रही थी। उसकी माँ बृन्दादेवी और जमनादास उसके बेड के सामने बिछी कुर्सियों पर बैठे हुए थे। एक डॉक्टर और उसके साथ उसके कुछ सहयोगी उसका परीक्षण करने के बाद हाथ में पकड़ी हुई फाइल को देखकर कुछ गहन विमर्श कर रहे थे। गोपाल पिछली
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ममता की परीक्षा - 57
सेठ शोभालाल एक बार फिर डॉक्टर के कक्ष में चले गए थे उनसे अपनी योजना के मुताबिक बात करने और अस्पताल की लॉबी में बृन्दादेवी के साथ जमनादास अकेले ही बैठा हुआ था। जमनादास का युवा मन उन दोनों ...Read Moreबातें सुनकर खुद को धिक्कार रहा था, 'कैसे माँ बाप हैं ये ? मैंने तो एक माँ की ममता के भुलावे में आकर अपने सबसे जिगरी दोस्त से गद्दारी कर ली है। कितना बेवकूफ हूँ मैं। क्या यही है इनकी ममता का राज ? गोपाल से इनकी ममता क्या सिर्फ इसलिए है कि वह इनके लिये करोड़ों की लॉटरी के
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ममता की परीक्षा - 58
नजदीक आकर सेठ शोभालाल ने एक विजयी मुस्कान बृन्दादेवी की तरफ उछाली और बड़ी खुश मुद्रा में उनकी बगल में जाकर बैठ गए। उन्हें खुश देखकर बृन्दादेवी की मुखमुद्रा भी मुस्कान युक्त हो गई। उनकी बगल में बैठते हुए ...Read Moreशोभालाल बोले, "आज तो लगता है मैं भगवान से स्वर्ग भी माँगता तो मुझे खुशी खुशी दे देते।"उनकी खुशी में अपनी खुशी का इजहार करती हुई बृन्दादेवी बोलीं, "अच्छा !!! ऐसा क्या हो गया जो आप इतना खुश हो रहे हैं ? हम भी तो सुनें वह खुशखबरी!" "अरे भागवान, अब बताओ खुश न होऊँ तो और क्या करूँ ?
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ममता की परीक्षा - 59
सेठ अम्बादास ने अपनी कहानी आगे जारी रखी। "हमेशा की तरह इस बार भी हम छुट्टियाँ मनाने के लिए अमेरिका गए हुए थे। किसी आवश्यक कार्य की वजह से मैं अकेले भारत वापस आ गया था। मेरी पत्नी और ...Read Moreदोनों अपनी छुट्टियाँ कम नहीं करना चाहती थीं सो दोनों वहीं रह गईं। एक महीने की अपनी छुट्टी पूरी बिता कर दोनों यहाँ वापस आईं। यहाँ तक असामान्य कुछ भी नहीं था। इस घटना को लगभग तीन महीने बीत चुके हैं। अभी पिछले सप्ताह मेरी पत्नी का ध्यान सुशीला के बदलते जिस्म और उसके बदलते खान पान की पसंद की
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ममता की परीक्षा - 60
सेठ अम्बादास अपने वादे के मुताबिक दूसरे दिन फिर आए। उनके साथ उनके लीगल एडवाइजर गुप्ताजी भी थे। सेठ शोभालाल के सामने उन्होंने अपनी सभी कंपनियों के 30 प्रतिशत शेयर शोभालाल व बृन्दादेवी तथा 30 प्रतिशत शेयर सुशीला के ...Read Moreकरने के लिए आवश्यक कागजात तैयार करने के निर्देश दिए। शादी की तैयारियों के बारे में काफी देर तक गहन मंत्रणा करने के बाद तीन दिन बाद सभी को अमेरिका जाने के लिए तैयार रहने की बात कहकर सेठ अम्बादास जी चले गए।उनके जाने के बाद विजयी मुद्रा में बृन्दादेवी को देखते हुए सेठ शोभालाल ने कहा, "वाह ! सही
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ममता की परीक्षा - 61
परबतिया के जाने के बाद साधना के होठों पर आई हुई मुस्कान ने एक बार फिर खामोशी की चादर ओढ़ ली थी। दिल में बेपनाह दर्द को समेटे हुए वह खामोशी से जुट गई रसोई में। बाबूजी को जल्दी ...Read Moreकरने की आदत थी। उसे खुद तो भूख नहीं लगी थी लेकिन बाबूजी का ख्याल भी तो उसी को रखना था। छोटे से बल्ब से आँगन में मद्धिम पीली रोशनी फैली हुई थी। अँधेरे की अभ्यस्त साधना की नजरों के लिए वह मद्धिम रोशनी भी दिन के उजाले जैसा ही प्रतीत हो रहा था। बड़ी तेजी से जुट गई वह
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ममता की परीक्षा - 62
रामू काका के मुँह से सुजानपुर और फिर मास्टर सुनते ही जमनादास अधीरता से बंगले के मुख्य दरवाजे की तरफ भागा। बाहर मुख्य दरवाजे के बगल में बने छोटे से दड़बेनुमा कक्ष में मास्टर रामकिशुन बैठे हुए थे।जमनादास को ...Read Moreही मास्टर जो कि एक बेंच पर बैठे थे उठ खड़े हुए। हाथ जोड़े हुए जमनादास उनके नजदीक पहुँचकर उनके कदमों में झुक गया। इससे पहले कि वह उनके चरण स्पर्श करता मास्टर ने उसे दोनों कंधों से पकड़कर अपने सीने से लगा लिया और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी। जमनादास उनका हाथ थाम कर उन्हें बंगले के अंदर ले
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ममता की परीक्षा - 63
धूल भरी सड़क में गड्ढों के बीच राह तलाशते हुए जमनादास की कार ने जब सुजानपुर में प्रवेश किया सूर्य भी अपने गंतव्य तक पहुँच चुके थे। दूर कहीं क्षितिज पर फैली हुई लाली शीघ्र ही छा जानेवाले अँधेरे ...Read Moreतरफ इशारा कर रही थी। अपने घर के सामने खटिये पर बैठी उदास नजरों से साधना एकटक टकटकी लगाए दूर धरती और आसमान के मिलन का आभास करा रहे क्षितिज को निहारे जा रही थी। उसके मन में उठ रहे विचारों के बवंडर मन को अशांत किये हुए थे। ' क्या मेरी जिंदगी भी लोगों की नजरों में क्षितिज की
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ममता की परीक्षा - 64
साधना को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुए लगभग एक महीने का समय बीत चला था। जीता जागता खिलौना पाकर साधना बेहद खुश थी और इस उम्मीद में थी कि अब अचानक किसी दिन गोपाल को लेकर जमनादास उनके सामने ...Read Moreखड़ा होगा। वो दिन उसके लिए कितनी खुशी का होगा ? इतनी खुशियाँ समेटने के लिए कहीं उसका दामन छोटा न पड़ जाय।लेकिन पति विहीन पत्नी चाहे जो सोचे, समाज इस घटना को लेकर भी अपने ही नजरिये से सोचने की आदत से मजबूर था। लोगों में साधना को लेकर कानाफूसी शुरू हो गई थी। कोई दबी जुबान में कहता
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ममता की परीक्षा - 65
बड़ी देर तक मास्टर जी फुटपाथ पर बैठे रहे। मन में विचारों के बादल उमड़ते, घुमड़ते रहे। पहले तो उन्हें शंका हुई थी कुछ पल के लिए कि कहीं सेठ शोभालाल साधना के बेटे के जन्म की खुशियाँ तो ...Read Moreमना रहे ? हो सकता है उन्हें कहीं से यह पता चल गया हो ? लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि सेठ अम्बादास का नवासा है वह नवजात शिशु जिसका पिता होने का सम्मान गोपाल को प्राप्त हुआ है तो उनके पैरों तले से जमीन ही खिसक गई। अब तो किंतु परंतु की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी।
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ममता की परीक्षा - 66
डॉक्टर सुमन ने आश्चर्य से जमनादास की तरफ देखा जो अजीब सी हरकतें कर रहे थे। चेहरा दोनों हाथों में छिपाए हुए वह किसी से माफी का निवेदन किये जा रहे थे। सुमन कुछ देर उनके सामने खामोशी से ...Read Moreरही। जमनादास की नजर जैसे ही डॉक्टर सुमन पर पड़ी वह चौंक गए। अतीत की गलियों में भटकता उनका मन पल भर में यथार्थ के धरातल पर उतर कर डॉ सुमन के आने की वजह समझने का प्रयास करने लगा।उनके हाथों में थमी फाइल पर नजर पड़ते ही जमनादास का दिल तेजी से धड़कने लगा। क्या होगा उन फाइलों में
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ममता की परीक्षा - 67
जमनादास बड़ी देर तक आँखें बंद किये उस बेंच की पुश्त से पीठ टिकाए बैठा रहा। बाहर से देख कर कोई उसके अंतर के हलचल को महसूस नहीं कर सकता था। साधना की परछाई ठहाके लगाते हुए अचानक गायब ...Read Moreगई थी और छोड़ गई थी अपने पीछे कई सवाल। ये वो सवाल थे जो उसके मन में असीम वेदना उत्पन्न कर रहे थे लेकिन उसके पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। उस दिन मास्टर साहब अपना क्रोध उसपर प्रकट करने के बाद अचानक उठ कर निकल गए थे। उनके काँपते कदमों को उसने महसूस भी किया था
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ममता की परीक्षा - 68
रजनी की उपेक्षा से हतप्रभ और निराश सेठ जमनादास अंदर तक हिल गए थे। रजनी से बात करने का, उसको समझाने का उनका जोश सोडे के खुले हुए बोतल के समान ठंडा पड़ चुका था। बड़ी देर तक वह ...Read Moreअवस्था में खड़े रजनी के पलटने और उसके कुछ बोलने का इंतजार करते रहे, लेकिन गहरी नींद में डूबी हुई रजनी भला कोई प्रत्युत्तर देती भी कैसे ? कुछ देर के इंतजार के बाद सेठ जमनादास थके कदमों से बाहर आ गए और फिर उसी बेंच पर पसर गए जहाँ थोड़ी देर पहले बैठे हुए थे।अब उन्हें थकान और नींद
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ममता की परीक्षा - 69
रजनी की जब नींद खुली, सुबह के सात बज रहे थे। बाहर से आती हलचल की आवाजें सुनकर ऐसा लग रहा था कि अस्पताल में लोगों की आवाजाही बढ़ गई है, गहमागहमी शुरू हो गई है। कुछ देर तक ...Read Moreबेड पर निश्चेष्ट पड़ी रही और शून्य में घूरती रही। वह छत पर लगे पंखे को लगातार घूरे जा रही थी जो ऐसा लग रहा था मानो थककर आराम फरमा रहा हो, ये और बात है कि कमरा पूरी तरह वातानुकूलित था सो पंखे की आवश्यकता ही नहीं थी, उसे आराम तो करना ही था। आँखें शून्य में घूर रही
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ममता की परीक्षा - 70
तालाब के किनारे पानी में अपनी एड़ियों को रगड़ते हुए बसंती अचानक आई तेज रोशनी और फिर किसी कार के इंजन की आवाज सुनकर सहम सी गई लेकिन फिर धीरे धीरे कार उससे दूर होती गई और वह निश्चिंत ...Read Moreपुनः अपनी एड़ियों को रगड़ने के क्रम में लग गई।कार की पिछली सीट पर बैठे राजीव उर्फ रॉकी की नजर कार के हेडलाइट की तेज रोशनी में सड़क के किनारे पोखर के किनारे बैठी बसंती पर पड़ गई थी। कई दिनों से भूखे भेड़िए की निगाहें कोई आसान शिकार देखकर जैसे चमक उठती हैं, उस नराधम के नजरों की चमक
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ममता की परीक्षा - 71
ममता की परीक्षा ( भाग - 71 )घर में सभी भोजन कर चुके थे। चौधरी रामलाल बाहर खुले में अपनी खटिया बिछाकर उसपर लेटे हुए थे। खटिये के नीचे एक मिट्टी के बर्तन में भैंस के उपलों को सुलगा ...Read Moreगया था। इस साल ठंड अधिक नहीं थी लेकिन हमेशा की तरह ठंड से बचने के लिये वह सजग थे। अडोस पड़ोस के कुछ बच्चे कहानी सुनने की आस में उन्हें घेरे हुए थे। इसी लालच में कुछ बड़े बच्चे उनके पैरों की मालिश भी करना शुरू कर दिए थे। तभी अंदर से बिरजू की माँ बाहर आते हुए बोली,
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ममता की परीक्षा - 72
रात के लगभग नौ बज रहे थे। गुलाबी सर्दी के मौसम में ठंड के बावजूद बहुत सारी औरतें चौधरी रामलाल के घर के सामने खड़ी व्यग्रता से बार बार खेतों की तरफ देखे जा रही थीं। सबकी निगाहें खेतों ...Read Moreबीच से आती हुई उस पगडंडी पर थीं जहाँ से चौधरी सहित बसंती को लेने गए अन्य गाँव वालों को आना था। लगभग पूरा गाँव चौधरी रामलाल के घर के सामने उमड़ा हुआ था। अभी तक बसंती के बारे में किसी को कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी। बस इतना ही पता था कि बसंती बडी देर से शौच को गई
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ममता की परीक्षा - 73
रात के लगभग बारह बजने वाले थे जब पुलिस की जीप ने सुजानपुर गाँव की सीमा में प्रवेश किया था। गाँव के बाहर गाड़ी खड़ी करके दरोगा विजय दोनों सिपाहियों के साथ बिरजू के पीछे पीछे चल पड़ा। चौधरी ...Read Moreवैसे ही बाहर खटिये पर बैठे हुए थे। अन्य ग्रामीण उन्हें घेरे हुए जमीन पर ही बैठ गए थे और पुलिस अथवा बिरजू का इंतजार कर रहे थे। चौधरी को दिलासा दिलाते दिलाते बातों का रुख नए जमाने की तरफ मुड़ गया था। बड़ी देर तक गाँववालों में आपस में नए जमाने और शहरी तौरतरीकों को लेकर बातचीत होती रही।
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ममता की परीक्षा - 74
भोर होते ही बिरजू ,चौधरी और बसंती सहित लगभग पच्चीस गाँव वाले भी थाने पर हाजिर थे।दरोगा शायद अभी तक नहीं आया था। सिपाही भी बदले हुए लग रहे थे। भारी भीड़ देखकर एक सिपाही बाहर आया और सबसे ...Read Moreखड़े बिरजू से पूछा, "सुजानपुर से आये हो ? रात को हुए बलात्कार के सिलसिले में ?""जी साहब !" बिरजू ने झट से जवाब दिया।"लड़की कहाँ है ?" सिपाही ने फिर पूछा।बसंती को आगे करते हुए बिरजू ने भोलेपन से कहा, "ये खड़ी है साहब !"बसंती को सिपाही की भूखी निगाहें अपने जिस्म में चुभती हुई सी महसूस हुईं जब
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ममता की परीक्षा - 75
थाने के प्रांगण में आकर खड़ी हुई वह लंबी सी विदेशी गाड़ी सेठ गोपाल अग्रवाल की थी। गाड़ी रुकते ही ड्राइवर ने फुर्ती से उतरकर कार का पिछला दरवाजा खोला और उतरनेवाले के सम्मान में उसके बगल में हाथ ...Read Moreकर खड़ा हो गया। इस बीच कार का आगे का दरवाजा खुला और काला कोट और पैंट पहने एक कृषकाय जिस्म का मालिक कार से उतरकर बाहर आकर खड़ा हो गया। उसके गले में बँधा हुआ सफेद कपड़े का वह विशेष टुकड़ा उसे विशेष बना रहा था। एडवोकेट बंसीलाल के नाम से वह मशहूर था। ऐसा कहा जाता है कि
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ममता की परीक्षा - 76
रॉकी की हालत देखकर सुशीलादेवी की आँखें भर आईं, लेकिन झिंझोड़ते हुए राजू को एक जोर का धक्का देते हुए रॉकी ने उसपर गंदी गालियों की झड़ी लगा दी। बेशर्मी से हँसते हुए राजू उससे कहता रहा, "अरे एक ...Read Moreउठकर तो देख ! आँटी आई हैं।"करवट बदलकर आँखें मलते हुए रॉकी बोला, " आँटी ! कौन आँटी ?" और फिर सामने सुशीलादेवी को खड़ी देखकर उठ खड़ा हुआ और सींखचों के पास आते हुए शिकायती लहजे में बोला, "क्या मम्मा ! तुम को पता है तुम्हारा बेटा हवालात में है और तुम यहॉं खड़ी होकर पता नहीं क्या कर
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ममता की परीक्षा - 77
अदालत परिसर में रोज की तरह ही काफी गहमागहमी थी। वकील बंसीलाल कोर्ट में वकीलों के लिए बने कक्ष की बजाय एक स्थानीय वकील की केबिन में बैठकर थाने से प्राप्त दस्तावेजों का अध्ययन कर रहे थे। प्रथम सूचना ...Read Moreके साथ मेडिकल रिपोर्ट की एक प्रति भी उनके हाथ में थी। मेडिकल रिपोर्ट पर नजर डालते हुए उनके चेहरे की चमक बढ़ गई। मनमाफिक रिपोर्ट देखकर मुस्कान खिल उठी थी उनके चेहरे पर। मन ही मन पहुँच और रुतबे का धन्यवाद करते हुए वह प्रथम सूचना रिपोर्ट को बारीकी से पढ़ने लगे। दोपहर के भोजन के बाद की सुनवाई
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ममता की परीक्षा - 78
कक्ष में बिल्कुल सन्नाटा पसर गया था। जज साहब अब खुद ही जिरह पर उतर आए थे। बिरजू व उसके साथियों के मन में खुशी की लहर दौड़ गई। बिरजू ने मन ही मन अपने ग्रामदेवता व कुलदेवता को ...Read Moreकरते हुए उनका आभार प्रकट किया, लेकिन अगले ही पल बंसीलाल के होठों पर तैर रही कुटिल मुस्कान देखकर उनका कलेजा बैठने लगा। उसने पता लगाया था बंसीलाल के बारे में। बड़ा घाघ वकील है जिसे झूठ को भी सच बनाने में महारत हासिल है। इसके होठों की मुस्कान बता रही है कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला
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ममता की परीक्षा - 79
अदालत कक्ष में गहन सन्नाटा पसरा हुआ था। बंसीलाल और सरकारी वकील लल्लन सिंह अपनी अपनी जगह पर बैठ चुके थे। सबकी निगाहें जज की तरफ लगी हुई थीं जो एक कागज पर कुछ लिख रहे थे। बंसीलाल की ...Read Moreसुनकर बिरजू का क्रोध भड़क उठा था लेकिन किसी तरह उसने खुद पर संयम बनाये रखा था। क्रोध से उसकी आँखें अंगारे जैसी दहक रही थीं। मन में आशंका ने घर कर लिया था लेकिन फिर भी वह क्या कर सकता था खामोश रहकर फैसले का इंतजार करने के अलावा ? मन ही मन वह अपने ग्रामदेवता को याद किये
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ममता की परीक्षा - 80
कुछ ही देर में अपने वादे के मुताबिक बंसीलाल सुशीलादेवी की कार के पास आया। उसके चेहरे पर खिली हुई विजयी मुस्कान देखकर सुशीलादेवी ने राहत की साँस ली। और कुछ पूछना बेमानी था अतः उसके अगली सीट पर ...Read Moreमें बैठते ही उन्होंने ड्राइवर को कार सीधे सुजानपुर पुलिस चौकी की तरफ बढ़ाने का आदेश दे दिया। कुछ ही मिनटों बाद सुशीलादेवी व बंसीलाल दरोगा विजय के सामने बैठे हुए थे। कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद दरोगा ने सामने खड़े सिपाही को उन तीनों लड़कों को हवालात से रिहा कर देने का आदेश दिया। आदेश का पालन किया
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ममता की परीक्षा - 81
छपाक की ध्वनि के साथ ही बिरजू के भागते क़दम एक पल को ठिठके थे लेकिन फिर अगले ही पल वह दीवानों की भाँति दौड़ पड़ा था कुएँ की तरफ। उसे बेतहाशा कुएँ की तरफ भागते देख उसके युवा ...Read Moreभी उसके पीछे तेजी से दौड़ पड़े और इससे पहले कि भावुकता में आकर वह कोई बेवकूफी करता उसके युवा साथियों ने उसपर काबू पा लिया। गाँव के सभी बड़े बुजुर्ग भी कुएँ की जगत पर पहुँच गए थे। कुआँ बहुत गहरा था। बिरजू और चौधरी रामलाल को गाँववालों ने अपने घेरे में सुरक्षित कर लिया था, जबकि बाकी गाँववाले
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ममता की परीक्षा - 82
अमर की बात सुनकर बिरजू पल भर कुछ सोचता रहा। ऐसा लगा जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो और फिर निराशा भरे स्वर में बोला, "नहीं भैया ! ये तो हम नहीं जान पाए कि पुलिस ...Read Moreका शव लेकर कहाँ गई थी, लेकिन इतना याद है कि दूसरे दिन सुबह ही पुलिस की जीप उसे जैसे ले गई थी वैसे ही वापस ले आई थी। जिस्म पे कई जगहों पर पट्टियाँ बँधी हुई थीं। शव हमारे हवाले करके दरोगा विजय और उसके साथी सिपाही लौट गए थे। गम और गुस्से की ज्यादती की वजह से हम
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ममता की परीक्षा - 83
रजनी कुछ देर तक फोन को निहारती रही। घंटी लगातार बजकर उसे यह बताने का प्रयास कर रही थी कि कोई उसे पुकार रहा है.. लेकिन कौन ? कौन है जो इतनी सुबह सुबह उसे याद कर रहा है ...Read Moreनिश्चित ही उसकी जान पहचान का तो नहीं ही होगा, क्योंकि उसकी सहेलियाँ और जानपहचान के सारे लोग तो अभी चिर निद्रा में रजाई में दुबके होंगे। अनमने ढंग से उसने हाथ बढ़ाकर फोन उठा लिया। स्क्रीन पर कोई अनजान नंबर फ़्लैश कर रहा था। नागवारी का भाव चेहरे पर लिए उसने फोन उठा लिया और कुछ क्रोध में ही
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ममता की परीक्षा - 84
"दीदी !" कहने के बाद बिरजू की तरफ से एक पल की खामोशी भी रजनी को अखर रही थी।उसके आगे के शब्द सुनने के लिए रजनी की बेकरारी बढ़ती जा रही थी। खुद पर काबू रखते हुए वह अधीरता ...Read Moreबोली, "हाँ, बोलो, सुन रही हूँ। बोलो न, क्या बताना चाहते थे ?"बिरजू असमंजस में था। सोच रहा था, क्या करे ? बताए या न बताए ? लेकिन वह खुद भी जानना चाहता था कि आखिर असलियत क्या है उस तस्वीर के अमर भैया की जेब में होने का ? अमर भैया तो शायद नहीं भी बताएँगे.. और फिर कोई
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ममता की परीक्षा - 85
सेठ जमनादास को अपनी तरफ बढ़ते देखकर अमर अपने होठों पर उँगली रखकर बिरजू को खामोश रहने का इशारा करते हुए एक ही पल में दालान में पहुँच गया। दरअसल वह अभी जमनादास की नजरों के सामने नहीं पड़ना ...Read Moreथा।दालान में दरवाजे के पीछे से झाँककर वह बाहर खड़े बिरजू को देख रहा था जो अभी भी वहीं खड़ा था। उसने देखा अब जमनादास बिरजू के एक दम करीब आ गए थे। उनकी चाल से निराशा झलक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे बहुत परेशान हों। नजदीक आकर उन्होंने बिरजू से प्यार से पूछा, "बेटा, तुम तो इसी
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ममता की परीक्षा - 86
जमनादास की बातें सुनकर अमर अभी कुछ जवाब देना ही चाहता था कि तभी पास खड़े चौधरी रामलाल जमनादास का अभिवादन करते हुए बोले, "आप जानते हैं अमर को ?" "हाँ चौधरी साहब ! अमर को पहले से ही ...Read Moreहूँ लेकिन अब पहचान भी गया हूँ इसकी असलियत। सच.. इतने दिनों से मुझे इसके बारे में कुछ भी तो पता नहीं था। खैर ! वो बात फिर कभी आपसे करूँगा, लेकिन अभी तो मेरे मन में जो सवाल उमड़ घुमड़ रहे हैं मुझे उनके जवाब तलाशने हैं। जानता हूँ अमर के पास कोई जवाब नहीं होगा इसलिए मैं आपसे
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ममता की परीक्षा - 87
"यह तो आपकी विनम्रता है सेठजी ! कहाँ आप और कहाँ हम, लेकिन एक बात है आपने जो कहा है कि आप याचक बन कर आये हैं तो मेरा ये मानना है कि याचक कौन नहीं ? इस दुनिया ...Read Moreसभी याचक हैं। बस फर्क सबमें यही है कि सबकी ख्वाहिशें अलग अलग हैं। कोई तख्तो ताज की ख्वाहिश रखता है तो कोई दो रोटी में ही खुश हो जाने की ख्वाहिश रखता है .और......." चौधरी रामलाल किसी बड़े बुजुर्ग की तरह जमनादास को समझाने लगे थे कि अचानक रुक गए और फ़िर बोले, " खैर, छोड़ो इस सब को।
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ममता की परीक्षा - 88
रामलाल उस बुजुर्ग से अभी बात कर ही रहा था कि तभी भीड़ में से किसी ने जोर से चिल्लाकर कहा, "हटो हटो, डॉक्टर साहब आ गए। मास्टर साहब अभी ठीक हो जाएंगे।" रामलाल ने उत्सुकता से खटिये पर ...Read Moreमास्टर रामकिशुन की तरफ देखा जिनकी तड़प अब अपेक्षाकृत कम हो गई थी, लेकिन वह अभी भी खटिये पर निढाल से पड़े हुए थे। रामलाल ने मुड़कर चौराहे से आनेवाली पगडंडी की तरफ देखा जहाँ से डॉक्टर बलराम सिंह अपने सहयोगी कम्पाउंडर भोला राम के साथ चले आ रहे थे। इतनी देर में रामलाल के पिताजी चौधरी श्यामलाल भी वहाँ
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ममता की परीक्षा - 89
आगे पूरे रास्तेभर भोला खामोशी से डॉक्टर बलराम सिंह के साथ चलता रहा। आगे आगे चल रहा ग्रामीण कुछ तेज कदमों से चल रहा था जबकि भोला डॉक्टर के साथ बने रहने के लिए अपेक्षाकृत धीमी गति से चल ...Read Moreथा। डिस्पेंसरी पर पहुँच कर डॉक्टर साहब ने शहर के अस्पताल के नाम एक सिफारिशी पत्र लिख दिया जिसमें मास्टर जी की तबियत के बारे में अपना मंतव्य भी व्यक्त करके आगे के इलाज के लिए उनसे आग्रह किया था। साथ आया वह ग्रामीण युवक डॉक्टर को धन्यवाद देकर उनसे वह पर्ची लेकर मास्टर के घर पर वापस पहुँचा। यहाँ
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ममता की परीक्षा - 90
अपनी बात पर साधना दृढ़ नजर आ रही थी। चौधरी श्यामलाल को उसकी हिमाकत भली नहीं लग रही थी लेकिन मौके की नजाकत से वो भलीभाँति परिचित थे सो प्यार से साधना को समझाते हुए बोले, "बिटिया, तुम सही ...Read Moreरही हो कि तुम्हारे पापा ने कभी बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं किया और उनकी यही कुछ आदतें हैं जो उन्हें विशेष बनाती थीं और वो हमारे भी आदर्श थे। हम भी यही मानते हैं कि बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं होना चाहिए लेकिन सवाल यहाँ संस्कारों व उनसे जुड़े सरोकारों का है और हमारे संस्कार
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ममता की परीक्षा - 91
सिलसिलेवार वृत्तांत बताते हुए चौधरी रामलाल भावुक हो उठे थे। आँखों से आँसुओं की बूंदें बस छलकने ही वाली थीं। माहौल गमगीन हो गया था। पूरा वृत्तांत सुनने की उत्सुकता वश अमर भी पास ही पड़े खटिये पर बैठ ...Read Moreथा। अपनी माँ साधना के विचार जानकर उसे बड़ी खुशी हुई थी। सेठ जमनादास भी भावुक नजर आ रहे थे, लेकिन उन्हें शायद सब कुछ जान लेने की जल्दी थी अतः रामलाल के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें अपनेपन का अहसास कराते हुए पूछा, "अब आगे ? क्या हुआ साधना का ?" रामलाल उनकी निगाहों में झाँकते हुए बोले, "होना
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ममता की परीक्षा - 92
उस दिन के हादसे के बाद मानसिक रूप से उबरने में साधना को कई दिन लग गए। उसकी हालत अर्धविक्षिप्तों जैसी हो गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जहाँ वह पैदा हुई, पली बढ़ी, सभी बड़ों ...Read Moreयथोचित सत्कार किया, वहाँ ऐसा भी कोई नराधम होगा जो उसपर बुरी नजर डाल सकता है ? आते जाते अब किसी भी पुरुष के नजदीक आने की आहट भी उसे चौंका देती और उसका दिल जोरों से धड़कने लगता। पल भर में उसकी अवस्था ऐसी हो जाती मानो वह मिलों दौड़ कर आई हो। पूरा जिस्म पसीने पसीने हो जाता,सांसें
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ममता की परीक्षा - 93
पोखर के करीब से पगडंडियों के सहारे साधना कच्ची सड़क पर आ गई। उसके सामने अब दो रास्ते थे। बाईं तरफ जानेवाला रास्ता भी शहर को ही जाता था लेकिन वह शहर के दूसरे हिस्से की तरफ से जाकर ...Read Moreमें मिलता था इसलिए काफी दूर और घुमावदार था जबकि दाईं तरफ वाला रास्ता अपेक्षाकृत सुनसान लेकिन शहर के लिए नजदीकी रास्ता था। पाँच वर्षीय अमर को कंधे पर चिपटाये अधिक देर तक चल पाना साधना के लिए आसान नहीं था। एक मिनट विचार कर वह दाईं तरफ वाले रास्ते पर आगे बढ़ गई। हालाँकि वह थक गई थी लेकिन
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ममता की परीक्षा - 94
साधना ने चौंककर श्रीमती भंडारी की तरफ देखा। हल्के गुलाबी रंग का सूट, सुनहरे फ्रेम का चश्मा, गुलाबी रंगत लिए हुए कान्तियुक्त तेजस्वी चेहरे की मालकिन श्रीमती भंडारी के व्यक्तित्व में गजब का आकर्षण था। उम्र के साठ बसंत ...Read Moreचुकी श्रीमती भंडारी को देखकर सहज ही उनकी उम्र का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था। कुछ पल तक साधना खामोशी से आँखों ही आँखो में उन्हें परखती रही, फिर धीरे से बोली, "जी, आपने सही समझा है। मैं पड़ोस के देहात से हूँ। रोजी रोटी की तलाश में आज ही यहाँ पहुँची हूँ। देखते हैं, किस्मत कहाँ लेकर जाती
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ममता की परीक्षा - 95
रमा भंडारी के पीछे पीछे चलते हुए साधना ने उस आलीशान दफ्तर में प्रवेश किया जिसके मुख्य प्रवेश द्वार पर लिखा था 'श्रीमती रमा मोहन भंडारी ..संचालिका - अहिल्याबाई महिला कल्याण आश्रम'। अंदर प्रवेश करते हुए साधना ने सरसरी ...Read Moreसे कमरे का जायजा लिया। दरवाजे से लगा हुआ एक हॉल नुमा कमरा था जिसमें तीन तरफ दीवारों से लगकर करीने से सोफे रखे हुए थे। दायीं तरफ काँच की एक दीवार बनी हुई थी जिसके ठीक बीचोंबीच काँच का ही एक दरवाजा लगा हुआ था जिसपर अंग्रेजी के बड़े अक्षरों में PULL लिखा हुआ था। बाहर से अंदर का
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ममता की परीक्षा - 96
उस दिन जूही घर पर ही थी। बिलाल उससे मिलने आया हुआ था। ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद अब उसने एल एल बी में दाखिला ले लिया था। उसका इरादा था वकालत करते हुए एल एल एम की डिग्री ...Read Moreकरना। जूही अभी फाइनल ईयर में थी। उस दिन बिलाल को मैंने ही बुलाया था ताकि उसे समझाया जा सके, उसके कैरियर और उसके अब्बा के उसके लिए देखे गए सपनों का वास्ता देकर उसे जूही की जिंदगी से दूर चले जाने के लिए मनाया जा सके, लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था।उस दिन स्वास्थ्य ठीक न
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ममता की परीक्षा - 97
शंकाराचार्य मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे भिखारियों को अपने सहयोगियों के साथ भोजन के पैकेट बाँटते हुए मैं आगे बढ़ रही थी कि तभी भिखारियों की लंबी कतार में आगे बैठी हुई एक भिखारिन कतार से उठकर हम लोगों ...Read Moreविपरीत दिशा में जाने लगी। उसकी यह हरकत हमें चौंकानेवाली लगी, क्योंकि जहाँ दूसरे भिखारी भोजन के लिए टूट पड़ रहे थे, कुछ तो दूसरा पैकेट भी माँग रहे थे, उस भिखारिन का उठकर जाना चौंकानेवाली हरकत ही मुझे लगी। गौरवर्णीय दुबले पतले जिस्म वाली उस भिखारिन के जिस्म से कपड़े के नाम पर फटे हुए चिथड़े झूल रहे थे
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ममता की परीक्षा - 98
काफी मान मनौव्वल के बाद थाना इंचार्ज के आदेश पर थाने में मेरी रपट लिखी गई। उस दिन मैंने पहली बार जाना था कि थाने में कोई रपट लिखाना किसी सामान्य इंसान के लिए कितनी बड़ी बात है। और ...Read Moreअगर आरोपी कोई कासिम आजमी जैसा घाघ वकील हो तो फिर तो बहुत ही बड़ी बात, लेकिन मैं भी अपने धुन की पक्की थी और हवलदार के लाख पीछा छुड़ाने की कोशिश करने के बावजूद वहीं डटी रही। मेरी चीख पुकार सुनकर थाना इंचार्ज ने मुझे बुलाकर मेरी पूरी बात सुनी और फिर हवलदार को रपट दर्ज करने का आदेश
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ममता की परीक्षा - 99
थानेदार ने बड़े धैर्य से मेरी पूरी बात सुनी। उस दरबान द्वारा प्राप्त जानकारी इस केस में बड़े काम की थी लेकिन उस घाघ वकील पर अभी भी हाथ डालने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। अंजाम उसे ...Read Moreही था कि वह कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगा। ऐसा लगा जैसे कुछ पल सोचकर उसने कोई फैसला किया हो और फिर मुझे साथ आने का इशारा करके थाने में खड़ी अपनी जीप की तरफ बढ़ गया। कुछ देर बाद वह मेरे साथ कमिश्नर साहब के दफ्तर में बैठकर उन्हें इस केस के बारे में पूरी जानकारी दे
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ममता की परीक्षा - 100
उसका बयान सुनते हुए मेरी सूख चुकी आँखों में न जाने कहाँ से आँसुओं का समंदर हिलोरें मारने लगा जो बड़ी बेसब्री से पलकों के किनारे तोड़कर अपनी हदों से बाहर निकल पड़ने पर आमादा हो गया था। मैंने ...Read Moreरोकने का प्रयास भी नहीं किया। पलकों के किनारे तोड़कर आँसुओं के सैलाव बह निकले थे। वकील ने आगे अपना बयान जारी रखा था 'न चाहते हुए भी हमारे सामने मुख्तार की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। उस बेचारी की ऐसी अवस्था में भी मुख्तार ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसपर अपनी दरिंदगी जारी रखी। कब
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ममता की परीक्षा - 101
साधना से बात करते हुए रमा जी बहुत भावुक गई थीं। साधना ने अपनेपन से उनके कंधे पर हाथ रखकर उन्हें दिलासा देते हुए कहा, "आंटी ! क्या पता जूही बहन के अभी तक न मिल पाने में भी ...Read Moreका कोई राज छिपा हुआ हो। उसकी महिमा वही जाने। फिर भी एक बात जरूर कहूँगी, मेरा दिल कह रहा है कि जूही बहन आपको जरूर मिलेंगी, ..किसी दिन अचानक ! शायद कुदरत ने आपके लिए कोई सरप्राइज तजवीज कर रखा हो, क्योंकि सभी जानते हैं कि उसके घर देर है अंधेर नहीं। आपके इतने अच्छे कर्मों का आपको फल
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ममता की परीक्षा - 102
आसपास के गाँवों में कोई ढंग की स्कूल न होने की वजह से नया स्कूल खुलने की खबर पाते ही लगभग पचास विद्यार्थियों ने साधना की स्कूल में दाखिला ले लिया। जून से शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही महिला ...Read Moreके ही एक कमरे में पहली और एकमात्र कक्षा की पढ़ाई शुरू हो गई। साधना के मधुर व्यवहार ने उसे जल्द ही बच्चों में खासा लोकप्रिय बना दिया। अमर भी उन बच्चों के साथ ही बैठकर शिक्षा ग्रहण करने लगा। दिन भर बच्चों को पढ़ाने के बाद साधना महिलाओं को पढ़ाने का कार्य यथावत जारी रखे हुए थी। बच्चों के
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ममता की परीक्षा - 103
बड़ी देर तक रमा और जूही एक दूसरे से लिपटी अपना गम कम करती रहीं।दूर खड़ी साधना कुछ देर तक उन्हें देखती रही। वह जानबूझकर उनसे दूर रही। उसने उन्हें जी भर कर रोने दिया। जानती थी जीभर कर ...Read Moreलेने से दिल का बोझ कुछ कम हो जाता है। भजन में शामिल लोगों की निगाहें भी अब उनकी तरफ घूम गई थीं। माँ बेटी का वह करुण मिलन देखकर वहाँ उपस्थित हर इंसान की आँखें नम हो गई थीं। जूही की आँखों से आँसुओं की बरसात थमने का नाम नहीं ले रहे थी। जी भर रो लेने के बाद
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ममता की परीक्षा - 104
..........दरवाजे पर बिलाल की अम्मी खड़ी हुई नजर आईं। कल शाम को चेहरे पर मुस्कान लिए बिलाल का स्वागत करते देखा था, लेकिन फिलहाल उस समय तो उनके चेहरे पर ऐसा लग रहा था जैसे बारह बज रहे हों। ...Read Moreसलाम करते हुए मैंने पूछा, "बिलाल नजर नहीं आये, कहीं गए हैं क्या ?" "हाँ !" संक्षिप्त सा जवाब दिया था उन्होंने।"कहाँ ? अचानक ? मुझे कुछ बताया भी नहीं ?" किसी अनहोनी की आशंका से मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था।अभी वह मेरे प्रश्न के जवाब में कुछ कहने ही जा रही थी कि बगल के कमरे से
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ममता की परीक्षा - 105
उस दिन मैंने उस गुंडे जैसे इंसान और बिलाल के अब्बू के बीच होनेवाली खुसर फुसर को सुन लिया था और समझ गई थी कि ये आज रात कुछ न कुछ योजना बनाएंगे मुझसे पिछा छुड़ाने का, और मेरा ...Read Moreसही साबित हुआ जब मुँह अँधेरे सुबह चार बजे के लगभग मेरे कमरे का दरवाजा खुला। वही शैतान कमरे में घुसा। दरवाजा खुलने की आहट सुनकर भी मैं गहरी नींद में होने का अभिनय करती रही। वह मेरे पास आकर मुझे नींद से जगाने का प्रयास करने लगा। जगाने के प्रयास में उसका मुझे बेवजह इधर उधर छूना बुरा तो
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ममता की परीक्षा - 106
थाने पहुँचकर मुझे एक दरोगा के सामने पेश कर दिया उन दोनों सिपाहियों ने। अपने हाथ में पकड़ा हुआ पैकेट दरोगा की मेज पर रखते हुए उन दोनों सिपाहियों में से एक दरोगा की खुशामद करते हुए बोला, "साहब, ...Read Moreसे छानबीन कीजियेगा और हमारा भी नाम दर्ज कीजियेगा इस मामले में। ये पुलिस महकमे की बहुत बड़ी कामयाबी है। ये लड़की किसी अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्करों के गिरोह की सदस्य लगती है।" दरोगा ने उनकी बातों की तरफ ध्यान न देते हुए मेज पर पड़े पैकेट को उलट पुलट कर देखा। पैकेट को ध्यान से देखते हुए उसने उन सिपाहियों
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ममता की परीक्षा - 107
अपनी करुण गाथा सुनाते हुए जूही एक बार फिर सिसक पड़ी थी। उसकी दास्तान सुनते हुए साधना व रमा की आँखें भी लगातार बरसती रहीं। अपनी सिसकियों पर काबू पाते हुए जूही ने आगे बताना शुरू किया, "उस दिन ...Read Moreदेर तक सब लड़कियाँ मुझे घेरे रहीं सहानुभूति जताते हुए। रात अधिक हो चुकी थी। एक एक कर सब गहरी नींद में सो गई थीं लेकिन नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। जिसका तन और मन घायल हो बुरी तरह से उसे भला नींद आती भी कैसे ? दरवाजे पर पर किसी के कदमों की आहट से पलटकर उस
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ममता की परीक्षा - 108
आँसुओं को पोंछते हुए जूही ने आगे कहना शुरू किया, "सच कह रही हूँ माँ, मैंने एक बार फिर गलती कर दी थी जिसका अहसास मुझे आगे चलकर हुआ। आपको चकमा देकर मैं बगीचे में बड़ी देर तक छिपी ...Read Moreहल्का अँधेरा घिरने लगा था। रात के आठ बजनेवाले थे। बगीचे में बैठे प्रेमी जोड़ों को बाहर निकालकर चौकीदार बगीचे का मुख्यद्वार बंद करने जा रहा था कि तभी मैंने चिल्लाकर उसे रुकने के लिए कहा और बाहर निकल गई। बगीचे से बाहर निकलकर मैं सड़क पर आगे बढ़ने वाली थी कि तभी उस चौकीदार ने मुझे आवाज दिया। मुझे
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ममता की परीक्षा - 109
जूही की आँखों से बहने वाली आँसुओं की धार ने भी अब अपना दम तोड़ दिया था। ऐसा लग रहा था उसके अंदर आँसुओं का तालाब सूख गया हो, लेकिन उसकी दर्द भरी कहानी अभी तक समाप्त नहीं हुई ...Read Moreसाधना का भी अब धैर्य जवाब देने लगा था। उसकी आँखों ने भी अब बरसना बंद कर दिया था। जूही लगातार अपनी करुण गाथा सुनाती रही। शायद आज वह अपने दिल का गुबार पूरा निकाल देना चाहती थी। इतने साल तक वह तरस गई थी किसी से बात करने के लिए, अपने दिल का हाल बताने के लिए, किसी के
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ममता की परीक्षा - 110
".....शायद ईश्वर को भी मुझपर दया आ गई होगी, तभी तो मेरे पाँव स्वतः ही इस परम पावन धाम की तरफ अंजाने में ही उठते गए...... और ये उस परमपिता परमात्मा की ही महिमा थी कि उन्होंने उसी समय ...Read Moreभी वहाँ भेज दिया। उसकी महिमा निराली है। उसकी सत्त्ता को मानती हूँ मैं। ये भी मानती हूँ कि उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, और अगर ऐसा है तो मुझे उनसे शिकायत भी है .........!"इससे आगे जूही से कुछ कहा नहीं गया। उसका गला भर आया था। कुछ पल खामोश रही वह और फिर कहना
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ममता की परीक्षा - 111
दरबान की बातें सुनकर रमा ने बनावटी दुःख जाहिर किया लेकिन वकील और उसके परिवार की खबर से वास्तव में उन्हें असीम संतोष की अनुभूति हो रही थी। कार की तरफ आते हुए उनका चेहरा खुशी से दमक रहा ...Read Moreदूर से ही देखकर रमा के चेहरे पर छाई संतोष की परत का साधना ने अहसास कर लिया था। क्या हुआ होगा, इसी बात का अंदाजा लगाने का वह प्रयास कर रही थी। वीरान पड़ी कोठी देखकर जूही का सहम जाना और फिर रमा का कार से उतरकर कोठी के लोगों के बारे में पता लगाने की वजह तलाशते हुए
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ममता की परीक्षा - 112
शाम का धुंधलका फैलने लगा था। बरामदे में बैठी साधना और रमा बेचैनी से चहलकदमी करती कभी कभार उस बंद दरवाजे की तरफ देख लेतीं जिनसे होकर वह डॉक्टर अंदर गया था। दोनों उस पल का इंतजार कर रही ...Read Moreजब दरवाजा खुले और वह डॉक्टर उन्हें आकर बताये कि 'चिंता की कोई बात नहीं, अब जूही खतरे से बाहर है।' अस्पताल का यह कमरा इमारत की दूसरी मंजिल पर स्थित था। बरामदे से बाहर का दृश्य स्पष्ट नजर आ रहा था। सड़कों पर वही रोज की व्यस्तता, लोगों का भारी शोरगुल, गाड़ियों की आवाजाही के बीच पैदल भागते हुए
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ममता की परीक्षा - 113
रामलाल ने जमनादास को आगे बताया, "बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अमर ने शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला ले लिया। उससे पहले अमर दो साल हमारे साथ हमारे घर में ही रहा, बसंती और बिरजू ...Read Moreबड़ा भाई बनकर। इन दो वर्षों में मैंने अमर को आपके और गोपाल के बारे में सब बता दिया था। अमर यह जान गया था कि शहर के मशहूर उद्योगपति गोपाल अग्रवाल उसके पिताजी हैं। अपनी माँ साधना के साथ हुए अन्याय से उसका मन बेहद आक्रोशित था। वह साधना के त्याग, हौसले व ईमानदारी से बेहद प्रभावित था और
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ममता की परीक्षा - 114
आँखों से छलक पड़े आँसू अपनी हथेली से पोंछ कर सुर्ख हो चुके नजरों से जमनादास को घूरते हूए रजनी सर्द स्वर में बोली, "ओह, तो ये है पूरी कहानी। अब समझी कि आपको पैसे का गुरुर क्यों है ...Read Moreप्यार के लिए आपके दिल में जगह क्यों नहीं है ? दो प्यार करनेवालों को आप कामयाबी से अलग कर चुके हो, और जब किसी का कोई एक दाँव कामयाब हो जाता है तो वह इंसान हमेशा उसी दाँव को आजमाता है। आपने भी वही किया। पहले अमर के बाबूजी और साधना को अलग करके दो प्रेमियों के बीच एक
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ममता की परीक्षा - 115
कहते हुए जमनादास की आँखों में उम्मीद की हल्की सी किरण दिखाई दी। बगल में ही खड़े अमर की तरफ मुड़ते हुए बोले, "बेटा ! मैं तुम्हारी माँ का गुनहगार तो हूँ ही, तुम्हारे मासूम बचपन का हत्यारा भी ...Read Moreही हूँ। सेठ गोपालदास अग्रवाल का चश्मोचिराग, जिसके आगे पीछे नौकरों की फौज होनी चाहिए थी, जिसके सिर पर माँ और पिता के सम्मिलित स्नेह की बारिश होनी चाहिए थी, अग्रवाल इंडस्ट्रीज के हजारों कर्मचारियों की दिल से निकली दुआएं जिसका जीवन सुखद करनेवाली थी उसका बचपन यहाँ गरीबी और अभावों में बीता इस सबका कारण मैं ही हूँ। ...काश,
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ममता की परीक्षा - 116
तेज कदमों से अमर चौराहे की तरफ बढ़ता जा रहा था। बिरजू उसकी बात मानकर वापस घर पर लौट आया था। लगभग दस मिनट में अमर चौराहे पर पहुँच गया। वहाँ से शहर की तरफ जानेवाली कच्ची सड़क पर ...Read Moreदायीं तरफ मुड़ गया। सड़क सुनसान थी। इक्का दुक्का बाइक वाले शहर की दिशा में भागे जा रहे थे। उन सबसे बेखबर अमर निकल पड़ा पैदल ही शहर की तरफ। अभी कुछ कदम ही आगे बढ़ा होगा कि पीछे से कार के हॉर्न की आवाज सुनकर चौंक पड़ा। पलट कर पीछे देखा। कार का दरवाजा खोलकर बिरजू निचे उतर रहा
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ममता की परीक्षा - 117
मेज पर रखे काँच के बड़े से पेपरवेट को लापरवाही से मेज पर घूमाते हुए दरोगा विजय ने कनखियों से सेठ जमनादास की तरफ देखा, मानो ताड़ना चाह रहा हो कि उसके इस बिंदास अंदाज का उनपर क्या असर ...Read Moreरहा है, लेकिन सेठ जमनादास भी कम घाघ नहीं थे। लापरवाही से कुर्सी पर पहलू बदलते हुए बोले, "तुम्हारा ये लट्टू घूमानेवाला खेल हो गया हो तो अब कुछ काम की बात भी हो जाए ? ...या फिर मैं ही अपना काम कर लूँ ?"हल्का सा कहकहा लगाते हुए दरोगा विजय बोला, "आप बिलकुल कर सकते हैं साहब अपना काम।
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ममता की परीक्षा - 118
रामसिंह के जाते ही दरोगा विजय फिर से उनसे मुखातिब हुआ, "हाँ.. तो मैं आप लोगों को बता रहा था कि इस बार बसंती के शव परीक्षण के समय मैंने अपनी समझ के अनुसार सावधानी बरती और उसका नतीजा ...Read Moreहिसाब से बहुत अच्छा आया जिसे मैंने फाइल में मृतका का नाम डालकर और मजबूत कर लिया और सुरक्षित रख लिया। मैं चाहकर भी खुद से कोई कार्रवाई नहीं कर सकता था क्योंकि मुझे भी अपने बालबच्चों के भविष्य की फिक्र होती है। कहा भी गया है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से वैर ठीक नहीं सो सब कुछ नियति
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ममता की परीक्षा - 119
"मैं ये कहना चाहता था कि हम ठहरे गाँव वाले, भले पढ़े लिखे दरोगा बन गए लेकिन संस्कार तो हमें अपने ग्रामीण दादाजी और पिताजी से ही मिला है जिन्होंने हमें बहुत अच्छे संस्कार देते हुए जीवन के लिए ...Read Moreनसीहतें भी सिखाई और समझाई थीं। बहुत सारी नसीहतों में से एक नसीहत यह भी थी कि 'चाहे जितना भी पुण्य मिलता हो, लेकिन हवन के नाम पर अपना हाथ कभी मत जलाना'। अब अगर आपको इसका मतलब समझ में आ गया हो तो आप जरूर समझ गए होंगे कि मैंने इस केस में आगे बढ़ने का निश्चय क्यों नहीं
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ममता की परीक्षा - 120
कुछ देर तक ऊबड़खाबड़ कच्चे रास्ते पर हिचकोले खाते चलने के बाद कार बाईं तरफ मुड़कर मुख्य सड़क पर आ गई और तेजी से शहर की तरफ भागने लगी।अचानक बिरजू को जैसे कुछ याद आया हो, बगल में बैठे ...Read Moreको उसने दोनों कंधे पकड़ कर बुरी तरह झिंझोड़ दिया। नागवारी के भाव चेहरे पर लिए अमर ने बिरजू की तरफ देखा। उसकी नाराजगी को महसूस करके तत्काल अपने दोनों कान पकड़ते हुए बिरजू बोल पड़ा, "माफ कर दो भैया ! दरअसल मुझे एक बात याद आ गई थी, तो सोचा आपको बता दूँ।"उसकी मासूम अदा को देखकर अमर उस
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ममता की परीक्षा - 121
साधना के सामने से हटकर बिरजू ने अमर के बगल में खड़ा होते हुए जवाब दिया, "पापा एकदम ठीक हैं बुआ ! वहाँ सब लोग आपको बहुत याद करते हैं, लेकिन आपकी दी गई कसम की वजह से पापा ...Read Moreकिसी को आपके बारे में नहीं बताया।" मुस्कुराते हुए साधना ने कहा, "बहुत अच्छा लगा बेटा, रामलाल भैया के बारे में जानकर...."तभी उसकी नजर काँच के दरवाजे से अंदर दाखिल हो रहे सेठ जमनादास पर पड़ी। आँखों पर चढ़ा सुनहरे फ्रेम का चश्मा उतारकर मेज पर रखते हुए उसने आँखें मसल कर पुनः जमनादास की तरफ देखा। यही वो पल
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ममता की परीक्षा - 122
मेज के इस पार रखी हुई कुर्सियों में से एक पर बैठते हुए सेठ जमनादास काफी भावुक नजर आ रहे थे। उनकी अवस्था को महसूस करते हुए साधना ने मेज पर रखी हुई पानी की बोतल को उनकी तरफ ...Read Moreदिया। बोतल से पानी पीने के बाद जेब से रुमाल निकालकर आँखों से छलक कर चेहरे पर आधिपत्य जमा चुके आँसुओं को साफ करके जमनादास ने आगे कहना शुरू किया, "लगभग पाँच साल पूरे हो गए थे गोपाल को देखे हुए। अपने कामकाज में व्यस्त हो चुका मैं लगभग उसे भूल भी चुका था कि तभी एक दिन दफ्तर से
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ममता की परीक्षा - 123
अपने आँसू पोंछते हुए अमर ने एक बार साधना की तरफ देखा, जिसका चेहरा आँसुओं से धुल चुका था। आँखें रक्तिम सी हो चुकी थीं, लेकिन अपने आँसुओं को पोंछते हुए उनकी नजरों में असीम संतोष के भाव उमड़ते ...Read Moreअमर को आंतरिक खुशी महसूस हुई। बिरजू की बात सुनकर अनायास ही उसकी नजर अपनी कलाई में बंधी घड़ी पर चली गई। लगभग एक बजने जा रहे थे। आगे बढ़कर साधना के कदमों में झुकते हुए अमर बोल पड़ा, "अच्छा माँ ! अब हमें इजाजत और मुझे आशीर्वाद दो कि मैं अपनी बहन बसंती को इंसाफ दिलाने के अपने मकसद
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ममता की परीक्षा - 124
"जी सेठ जी, सही कहा आपने ! दरअसल उन लड़कों के बचने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। वारदात के कुछ ही देर बाद तीनों लड़के उसी इलाके से पकड़े गए थे और सबसे बड़ी बात जो इस केस ...Read Moreऔर कमजोर कर रही थी वो ये थी कि जो पीड़ित लड़की थी उसने उनकी पहचान भी कर ली थी। इंसाफ के लिए पीड़ित पक्ष को अब जरूरत थी सिर्फ सबूत जुटाकर केस फाइल करने की जो कि वहाँ का दरोगा करनेवाला भी था। बेहद काइंया था वह दरोगा भी। जब उसने भारी भरकम धनराशि के ऑफर के बावजूद हमारी
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ममता की परीक्षा - 125
जमनादास जी की कार फर्राटे से अपने गंतव्य की तरफ भागी जा रही थी। पतली गली नुमा सड़क से होकर कार अब शहर के चौड़े मुख्यमार्ग पर शहर से बाहर की तरफ जानेवाले रास्ते पर आ गई थी। कार ...Read Moreबैठा अमर कुछ उधेड़बुन में लगा हुआ था। वह बड़ी तन्मयता से एकटक सेठ जमानदास की तरफ देखे जा रहा था और सोचे जा रहा था 'क्या यह वही जमनादास जी हैं जिन्होंने मुझे दो दिन के अंदर यह शहर छोड़ जाने के लिए चेताया था ? और अब वही हमारी मदद के लिए इतना कष्ट उठा रहे हैं, भागदौड़
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ममता की परीक्षा - 126
बसंती की पूरी गाथा सुनते सुनते वकील धर्मदास काफी गमगीन नजर आने लगे थे। अंत में उसके कुएँ में कूदने का वृत्तांत सुनकर वह बेहद भावुक हो गए।आँखों पर से चश्मा हटाकर उसे साफ करने के बहाने अपनी आँखें ...Read Moreहुए धर्मदास जी ने बसंती की कहानी सुना रहे अमर को टोका, " क्या कहा तुमने ? वो दरोगा आकर बसंती के शव को ले गया ? ..मतलब उसका पोस्टमार्टम अवश्य कराया होगा न ?"अमर ने स्पष्ट किया, "जी, उस दरोगा ने यही बताया था जब हम उससे मिले थे। साथ ही उसने यह भी बताया कि बसंती का पोस्टमार्टम
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ममता की परीक्षा - 127
बंगले के नाम पर ध्यान जाते ही अमर का माथा ठनका। बिजली की सी तेजी से उसके मन में विचार कौंधा, 'अग्रवाल विला ?? उसकी मम्मी ने पापा का नाम भी तो गोपालदास अग्रवाल ही बताया था और यह ...Read Moreबताया था कि वो भी इसी शहर में रहते हैं तथा बहुत बड़े व्यवसायी हैं। शेठ जमनादास जी के लंगोटिया यार भी हैं।.. तो क्या यह उनका ही बंगला है ? लेकिन जमनादास जी यहाँ क्यों आये हैं ? जरूर कोई विचार उनके मन में चल रहा होगा। खैर.. देखते हैं आगे क्या होता है।'सोचते हुए अमर जमनादास और बिरजू
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ममता की परीक्षा - 128
कहते हुए गोपाल की आँखें जैसे कहीं शून्य में स्थिर हो गई हों ....मान और अपमान के बीच झूला झूलते और पल पल शर्मिंदगी के साथ मन में उठ रहे भावों से समझौता करके तिल तिल मरने का अहसास ...Read Moreअमेरिका में बिताया एक एक पल किसी फिल्म की रील की मानिंद उसकी आँखों के सामने नृत्य करने लगा और वह पूरा दृश्य जमनादास को यूँ सुनाने लगा जैसे संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का आँखों देखा हाल ज्यों का त्यों सुना दिया था। अपनी बात शुरू करने से पहले गोपाल ने सभी नौकरों को वहाँ से हटा दिया
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ममता की परीक्षा - 129
अचानक गोपाल उठ खड़ा हुआ और जमनादास का हाथ पकड़कर उसे भी उठने का इशारा करते हुए कहने लगा, "चल मेरे यार ! अब और देर न कर। मुझे मेरी साधना के पास ले चल। अब एक पल की ...Read Moreभी सहन नहीं हो रही।"" कहते हुए वह फिर से फफक पड़ा।जमनादास सोफे पर बैठे बैठे ही बोला, "मुझ पर यकीन रख मेरे दोस्त ! मैं भी जल्द से जल्द तुम दोनों को एक दूसरे से मिलवाकर अपने गुनाहों का प्रायश्चित कर लेना चाहता हूँ, लेकिन उससे पहले तुझे मेरा एक छोटा सा काम करना होगा।.. बोल कर पाएगा ?"तड़प
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राज कुमार कांदु

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